जयपुर. सनातन धर्म में निर्जला एकादशी व्रत को सबसे कठिन व्रतों की श्रेणी में रखा गया है. मान्यता है कि यदि किसी ने निर्जला एकादशी कर ली, तो सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाता है. हालांकि हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार दो दिन निर्जला एकादशी है. हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है. लेकिन इस बार एकादशी तिथि दो दिन है. यानि 10 और 11 जून दो दिन इसे किया जा सकता (Nirjala Ekadashi on two dates this year) है. लेकिन ज्योतिष की मानें, तो उद्यान के समय एकादशी का महत्व अधिक रहता है. ऐसे में 11 जून को किया गया व्रत ज्यादा श्रेष्ठ फलदाई रहेगा.
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 10 जून, 2022 शुक्रवार सुबह 7:27 बजे से शुरू हुई और दूसरे दिन 11 जून को भी सूर्योदय तिथि में 5:46 तक रहेगी. ज्योतिषाचार्य राजेश्वर के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत 11 जून शनिवार को रखा जाएगा. वैष्णव लोग (जिन्होंने कंठी माला तुलसी लेकर गुरु दीक्षा ली है) उदियात के समय रहने वाली तिथि को मान्य मानते हैं. उसी के अनुसार व्रत आदि करते हैं. उनका व्रत कल रहेगा. निर्जला एकादशी का फल सभी एकादशी में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. ये तक कहा जाता है कि कोई व्यक्ति यदि सभी एकादशी का व्रत नहीं करता और निर्जला एकादशी का व्रत कर लेता है, उसे पूरे वर्ष की एकादशी का फल मिलता है.
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पौराणिक कथा के अनुसार पांडु पुत्र भीम कभी कोई व्रत नहीं रखते थे. इस पर वेद व्यास जी ने उन्हें कहा कि यदि नरक में जाने से बचना है, तो वर्षभर एकादशी का व्रत करना होगा. इस पर भीम ने यह कहकर मना कर दिया कि उनके उदर में वृक अग्नि है, जो महज भोजन से ही शांत हो सकती है. इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के व्रत का महत्व समझाते हुए कहा कि इससे सभी एकादशी का व्रत पुण्य प्राप्त होगा. तब भीम ने इस व्रत को किया. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.
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आपको बता दें कि निर्जला एकादशी में पूरे दिन बिना जल के व्रत करना होता है. इस दिन जल केवल स्नान और आचमन के लिए ही ग्रहण किया जाता है. इस दिन जल का दान करना पुण्य माना जाता है. पितरों की तृप्ति के लिए भी जल का दान किया जाता है. घड़े में जल भरकर सफेद कपड़े से उसे ढक कर दान करने से पुण्य प्राप्ति होती है. इसके साथ ही पंखी का भी दान किया जाता है.