जयपुर. राजस्थान के निकाय और निगम चुनाव में हाइब्रिड सिस्टम को लेकर 'ना जीत और ना हार' वाली स्थिति दिखाई दे रही है. इस मुद्दे पर हुए अंतिम फैसले को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार पूरी तरह से गरम हो गया है.
दरअसल, स्वायत शासन विभाग की ओर से स्थानीय निकायों में हाइब्रिड सिस्टम से चुनाव करवाने का निर्णय लिया गया था. जिसके तहत चुने हुए पार्षदों के बाहर से भी मेयर सभापति या चेयरमैन बनाए जा सकते थे. इस निर्णय का कांग्रेस पार्टी के अंदर से ही खुद राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने विरोध कर दिया. विरोध भी इतना कड़ा कि उन्होंने इसे अलोकतांत्रिक तक करार दे दिया. ऐसे में शुक्रवार को जब आचार संहिता लागू हुई उससे ठीक पहले पायलट ने फिर कहा कि संगठन ने सरकार बनाई है, जो साफ तौर पर संकेत था कि संगठन की कही बात को पायलट मनवाना चाह रहे थे.
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ऐसे में शांति धारीवाल की ओर से एक प्रेस नोट जारी किया गया, जिसमें यह लिखा गया कि भाजपा जनता के बीच यह भ्रम फैला रही है. लेकिन, हकीकत यह है कि निकाय ने जो प्रावधान किया है उसमें पार्षदों के बाहर से किसी को मेयर, सभापति या चेयरमैन नहीं बनाकर केवल विशेष परिस्थितियों में ही इसका इस्तेमाल करेगी. अगर उस वर्ग का कोई प्रतिनिधि उस पार्टी का जीतकर नहीं पहुंचा तो ही इसका इस्तेमाल किया जाएगा.
धारीवाल ने अपने प्रेस नोट में कहा कि राजनीतिक पार्टियों को उस कैटेगरी के नेता के नहीं जीतने की स्थिति में यह अधिकार दिया गया है कि वह पार्षदों के बाहर से भी नेता का चुनाव कर सके. लेकिन, इस प्रेस नोट में नीचे साफ तौर पर यह भी लिखा गया है अभी भी किसी बाहरी व्यक्ति को नगर पालिका परिषद निगम, सभापति, अध्यक्ष और महापौर चुने जाने पर कोई संवैधानिक प्रतिबंध नहीं होगा. हालांकि, अब यह बात साफ हो गई है कि अगर ऐसी कोई विशेष परिस्थिति बनती है तो पार्टी के पास ही अधिकार होगा कि वह बाहर के किसी व्यक्ति को इन पदों पर चुन सकें. ऐसे में कांग्रेस पार्टी में अगर ऐसी परिस्थिति बनती है तो खुद सचिन पायलट के पास ही कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते यह अधिकार होगा कि वह किसे चुनते हैं.
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वहीं, इस प्रेस नोट के सामने आने के बाद पायलट की ओर से भी इस पर खुशी जताई गई. उन्होंने कहा कि पार्षद चुने बगैर अगर कोई व्यक्ति सभापति, पालिका अध्यक्ष या चेयरमैन बनता है तो यह अलोकतांत्रिक होता. उन्होंने खुशी जताई कि सरकार की ओर से इस फैसले पर पुनर्विचार किया गया. इस निर्णय के बीच राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा भी बनी रही कि इस मुद्दे पर ना पायलट की जीत हुई है और ना ही धारीवाल की हार. इस मुद्दे पर निकले अंतिम निष्कर्ष को लेकर जहां सियासी चर्चाओं का बाजार गरम है वहीं, कई कयास भी लगाए जा रहे हैं.