जयपुर. राजधानी के जवाहर कला केंद्र में सोमवार को मंचित नाटक 'मोहन से महात्मा' में वर्ष 1917 में हुआ 'चम्पारण सत्याग्रह' फिर से जीवंत हो गया. नाटक में महात्मा गांधी के राजनेता छवि से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित होने का बखूबी चित्रण किया गया. नाटक में 'चम्पारण सत्याग्रह' को ना सिर्फ राजनीतिक आंदोलन के रूप में, बल्कि इसके व्यापक प्रभाव को दर्शाते हुए इसमें सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक सुधारों के दूरगामी परिणाम भी शामिल किए गए.
नाटक के आरम्भ में बताया गया कि महात्मा गांधी अपनी आत्मकथा 'माइ एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रूथ' लिखने के लिए 'चम्पारण सत्याग्रह' के संस्मरणों को फिर से याद करते हैं. नाटक के दौरान गांधीजी के 10 अप्रैल 1917 को पटना पहुंचने से लेकर आंदोलन के सफलतापूर्वक समापन होने तक की विभिन्न घटनाओं को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया. नाटक में इस सत्याग्रह से जुड़े डॉ राजेंद्र प्रसाद के विवेचन को भी शामिल किया गया.
राजनीतिक दृष्टि से इस नाटक में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत के संघर्ष को पुनः परिभाषित करने में गांधीजी की केंद्रीय भूमिका को दर्शाया गया. इसमें बताया गया कि गांधीजी द्वारा भारत की आम जनता को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने के लिए किस प्रकार प्रयास किए गए. इसी प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बिहार के लोगों, किसानों एवं बुद्धिजीवियों के योगदान को भी खूबसूरती से रेखांकित किया गया.
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बता दें कि इस नाटक की पटकथा लेखन एवं निर्देशन डॉ. एम सईद आलम एवं वैभव श्रीवास्तव ने किया. नाटक में एम. सईद आलम के अतिरिक्त अभिनय करने वाले कलाकारों में पवनेश चाहर, आशुतोष मिश्रा, समन सलमान, हिमांशु श्रीवास्तव, जसकिरण चोपड़ा, मनीष सिंह, हेमांक सोनी, बिलाल मीर, राहुल पासवान, आरिफा खानम, अंकित महेंद्रू शामिल थे.