ETV Bharat / state

Pitra Paksha 2024: कौवे के बिना अधूरा होता है श्राद्ध, जाने कारण और मान्यता - Pitra Paksha 2024 - PITRA PAKSHA 2024

पितृपक्ष के दौरान कौवे को ग्रास दिया जाता है. मान्यता है कि इसके बिना श्राद्ध कर्म अधूरा होता है. माना जाता है कि यदि कौवा भोजन ग्रहण कर लेता है, तो पितर प्रसन्न हो जाते हैं.

Pitra Paksha 2024
पितृपक्ष 2024 (ETV Bharat Kuchaman City)
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 22, 2024, 10:43 PM IST

कुचामनसिटी: पितृपक्ष के दौरान कौवों का महत्व बढ़ जाता है. माना जाता है कि इसको ग्रास न दें, तो श्राद्ध कर्म पूरा ही नहीं होता. उसे अधूरा ही माना जाता है. इसलिए उन्हें भोजन खिलाने का विधान है.

श्राद्ध कर्म में कौवे को क्यों दिया जाता है ग्रास (ETV Bharat Kuchaman City)

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध एवं पितृ पक्ष कहलाता है. श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न करने का एक उत्सव है. इन 16 दिनों में (श्राद्ध पक्ष) पितरों के अलावा देव, गाय, श्वान, कौए और चींटी को भोजन खिलाने की परंपरा है. गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है. इसलिए गाय का महत्व है. वहीं पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप होते हैं. श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परम्पराएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं. ऐसी ही एक परम्परा है, जिसमें कौवों को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाते हैं. पितृपक्ष में कौओं को भोजन देने का विशेष महत्व होता है. कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लेता है, तो पितर प्रसन्न और तृप्त माने जाते हैं.

पढ़ें: श्राद्ध पक्ष में बिना कौए को भोग लगाए पूरा नहीं होता अनुष्ठान, मान्यता के चलते काक को तलाश रहे लोग - Shradh Paksha 2024

पंडित छोटूलाल आचार्य ने बताया कि पुराण, रामायण, महाकाव्यों एवं अन्य धर्म शास्त्र और प्राचीन ग्रन्थों में पितृपक्ष में कौवे की महत्ता को विस्तृत रूप से बताया गया है. इससे जुड़ी कई रोचक कथाएं एवं मान्यताएं वर्णित हैं. आचार्य ने बताया कि पुरातन मान्यता है कि एक ऋषि ने कौए को अमृत खोजने भेजा था. उसे यह समझाया कि सिर्फ अमृत की जानकारी ही लेना उसे पीना नहीं. काफी परिश्रम के बाद कौए को अमृत की जानकारी मिली और पीने की लालसा वह नहीं रोक पाया और अमृतपान कर लिया और बाद में इसकी जानकारी ऋषि को दी. इस पर ऋषि ने क्रोधित होते हुए उसे श्राप दिया कि तूने मेरे वचन को भंग कर अपवित्र चोंच से अमृत को भ्रष्ट कर दिया. इसलिए तुम्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाएगा. लेकिन अश्विन मास में 16 दिन पितरों का प्रतीक समझकर सम्मान दिया जाएगा.

पढ़ें: जीवन में कामनाओं को पूरा करने के लिए किए जाते हैं विभिन्न प्रकार के श्राद्ध, जानिए कैसे - Pitra Paksha 2024

पितृ दूत है कौवा: शास्त्रों में वर्णित है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है. यदि पितरों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं. कौआ सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर यदि वह कांव-कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है. धर्म शास्त्र श्राद्ध परिजात में वर्णन है कि पितृपक्ष में गौ ग्रास के साथ काक बलि प्रदान करने की मान्यता है. इसके बिना तर्पण अधूरा है. मृत्यु लोक के प्राणी द्वारा काक बलि के तौर पर कौओं को दिया गया. भोजन पितरों को प्राप्त होता है. कौआ यमस्वरूप है. इसे देव पुत्र कहा जाता है. रामायण में काग भुसुंडी का वर्णन मिलता है.

कुचामनसिटी: पितृपक्ष के दौरान कौवों का महत्व बढ़ जाता है. माना जाता है कि इसको ग्रास न दें, तो श्राद्ध कर्म पूरा ही नहीं होता. उसे अधूरा ही माना जाता है. इसलिए उन्हें भोजन खिलाने का विधान है.

श्राद्ध कर्म में कौवे को क्यों दिया जाता है ग्रास (ETV Bharat Kuchaman City)

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध एवं पितृ पक्ष कहलाता है. श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न करने का एक उत्सव है. इन 16 दिनों में (श्राद्ध पक्ष) पितरों के अलावा देव, गाय, श्वान, कौए और चींटी को भोजन खिलाने की परंपरा है. गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है. इसलिए गाय का महत्व है. वहीं पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप होते हैं. श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परम्पराएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं. ऐसी ही एक परम्परा है, जिसमें कौवों को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाते हैं. पितृपक्ष में कौओं को भोजन देने का विशेष महत्व होता है. कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लेता है, तो पितर प्रसन्न और तृप्त माने जाते हैं.

पढ़ें: श्राद्ध पक्ष में बिना कौए को भोग लगाए पूरा नहीं होता अनुष्ठान, मान्यता के चलते काक को तलाश रहे लोग - Shradh Paksha 2024

पंडित छोटूलाल आचार्य ने बताया कि पुराण, रामायण, महाकाव्यों एवं अन्य धर्म शास्त्र और प्राचीन ग्रन्थों में पितृपक्ष में कौवे की महत्ता को विस्तृत रूप से बताया गया है. इससे जुड़ी कई रोचक कथाएं एवं मान्यताएं वर्णित हैं. आचार्य ने बताया कि पुरातन मान्यता है कि एक ऋषि ने कौए को अमृत खोजने भेजा था. उसे यह समझाया कि सिर्फ अमृत की जानकारी ही लेना उसे पीना नहीं. काफी परिश्रम के बाद कौए को अमृत की जानकारी मिली और पीने की लालसा वह नहीं रोक पाया और अमृतपान कर लिया और बाद में इसकी जानकारी ऋषि को दी. इस पर ऋषि ने क्रोधित होते हुए उसे श्राप दिया कि तूने मेरे वचन को भंग कर अपवित्र चोंच से अमृत को भ्रष्ट कर दिया. इसलिए तुम्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाएगा. लेकिन अश्विन मास में 16 दिन पितरों का प्रतीक समझकर सम्मान दिया जाएगा.

पढ़ें: जीवन में कामनाओं को पूरा करने के लिए किए जाते हैं विभिन्न प्रकार के श्राद्ध, जानिए कैसे - Pitra Paksha 2024

पितृ दूत है कौवा: शास्त्रों में वर्णित है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है. यदि पितरों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं. कौआ सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर यदि वह कांव-कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है. धर्म शास्त्र श्राद्ध परिजात में वर्णन है कि पितृपक्ष में गौ ग्रास के साथ काक बलि प्रदान करने की मान्यता है. इसके बिना तर्पण अधूरा है. मृत्यु लोक के प्राणी द्वारा काक बलि के तौर पर कौओं को दिया गया. भोजन पितरों को प्राप्त होता है. कौआ यमस्वरूप है. इसे देव पुत्र कहा जाता है. रामायण में काग भुसुंडी का वर्णन मिलता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.