जयपुर. राजधानी जयपुर के राजा पार्क में महावारी एक वरदान नाटक का मंचन किया गया. जिसके माध्यम से बालिकाओं को महामारी के दौरान होने वाली समस्याओ की जानकारी दी गई. कार्यक्रम में सेनेटरी नैपकिन के प्रयोग से होने वाले लाभ और उपयोग नहीं करने पर होने वाली हानि के बारे में भी जानकारी दी गई. कार्यक्रम के दौरान मौजूद बालिकाओं और महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के साथ राशन किट भी वितरित किए गए. महावारी एक वरदान नुक्कड़ नाटक के मुख्य पात्र के रूप में क्रिएचर फाउंडेशन के सभी महिला वर्ग के सदस्यों ने भाग लिया. इस मौके पर कार्यक्रम संयोजक विभूति सिंह और जेबा खान ने बालिकाओं को विभिन्न समस्याओं के बारे में जागरूक किया.
कार्यक्रम में राजस्थान हाईकोर्ट के एडवोकेट ललित शर्मा, समाजसेवी कपिल शर्मा और मॉडल विद्या शुक्ला भी मौजूद रही. मॉडल विद्या शुक्ला ने कहा कि देश में महिलाओं को सैनिटरी पैड्स के बारे में जानकारी देकर सशक्त बनाना चाहिए. ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि महावारी से जुड़े हर विषय को महिलाओं तक पहुंचाएं. मासिक धर्म महावारी से जुड़े बहुत से मिथ्य हैं जो हर महीने महिलाओं को प्रताड़ित करने जैसे हैं. अब समय आ गया है कि ऐसी अवधारणाओं को जड़ से उखाड़ फेंके और बिना शर्माए अपने जीवन को बेहतर बनाएं.
कार्यक्रम संयोजक विभूति सिंह और जेबा खान ने कहा कि महावारी को लेकर कई अवधारणाएं रहती हैं. जैसे महावारी एक रोग है, पौधे में पानी नहीं देना चाहिए खासकर तुलसी में, महावारी के समय बाल नहीं धोना, माहवारी के दौरान पूजा ना करना अथवा मंदिर नहीं जाना, रसोई घर नहीं जाना, शारीरिक श्रम नहीं करना, माहवारी के समय दूसरी महिला को ना छूना जैसी कई मिथ्य अवधारणाएं हैं. जिनको दूर करना आवश्यक है. महावारी अभिशाप नहीं बल्कि जिंदगी देने का वरदान है.
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महावारी के दौरान महिला को अपवित्र मानने के बजाय उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. महामारी के प्रति नकारात्मक सोच रखने वाले लोगों को यह समझने की जरूरत है कि महावारी के कारण ही एक महिला नई जिंदगी को जन्म देती है. महिला में इतनी शक्ति है कि वह हर दर्द को झेलती है और समाज अपनी रूढ़िवादी सोच से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने का काम करता है.
इस दौरान महिलाओं और बालिकाओं ने भी महावारी पर खुलकर चर्चा की महावारी होने के अपने अनुभव को भी साझा किया. महिलाओं ने कहा कि महावारी को लेकर आज भी कई लोगों में पुरानी सोच है, जो कि अजीब दृष्टिकोण से देखा जाता है. महिलाओं को मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरह से सहयोग की जरूरत होती है. जो उन्हें नहीं मिल पाता है. महावारी को अभिशाप नहीं बल्कि वरदान समझे. महावारी को लेकर बच्चियों और महिलाओं में जागरूकता होनी चाहिए ताकि बालिकाओं में झिझक और डर को दूर किया जा सके. हर महिला अपनी बेटी को इस दौरान मजबूत बनाएं. महिलाओं के बिना यह संसार नहीं चल सकता. इसलिए महिलाओं से जुड़ी हर चीज का समाज को सम्मान करना चाहिए.