जयपुर. राजस्थान विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन केंद्र में भारत की विदेश नीति के ढांचे में गांधी का पुनरावलोकन विषय पर व्याख्यान का आयोजन हुआ. मुख्य वक्ता विद्यासागर यूनिवर्सिटी पश्चिम बंगाल के प्रोफेसर राजकुमार कोठारी ने कहा कि भारत की विदेश नीति के निर्माताओं पर गांधी दर्शन ने एक गहरी छाप छोड़ी है.
गांधीवादी मूल्य न सिर्फ महत्वपूर्ण है, बल्कि विश्व के लिए अनुकरणीय है. गांधी के प्रत्येक प्रयोग का दायरा राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय था. महात्मा गांधी ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान सत्याग्रह तैयार किए. जिनका भारत की विदेश नीति पर गहरा प्रभाव पड़ा.
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स्वतंत्रता के बाद विदेश नीति के निर्माताओं ने पंचशील गुटनिरपेक्षता की नीति अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण संबंध के आधार पर हल करने में गांधीवाद का रास्ता अपनाया. महात्मा गांधी से सीखा जा सकता है कि आंदोलन अहिंसक होकर कैसे लड़ा जा सकता है, अहिंसा सफल कैसे हो सकती है, सविनय अवज्ञा, असहयोग, चंपारण, खेड़ा सहित शांति वादी आंदोलन का प्रभाव भारत की विदेश नीति पर प्रमुख रूप से पड़ा है.
गांधी के सत्य और अहिंसा की वजह से उसे शांति का महत्वपूर्ण आधार बनाया गया है. विदेश नीति में राष्ट्रहित की सबसे बड़ी अहमियत होती है. जिसका अपवाद भारत भी नहीं है, इसलिए विदेश नीति के अंतर्गत आदर्शवादी उपागम के साथ-साथ व्यवहारवादी उपागम को प्रमुख स्थान दिया गया है. भारतीय विदेश नीति में गांधी की विचारधारा को एक प्रमुख विकल्प या उपगम के रूप में अपनाया गया है.
गांधी दर्शन के भारत की विदेश नीति पर साम्राज्यवाद, रंगभेद और वर्ग भेद के विरूद्ध प्रभाव छोड़ा. विश्व शांति को आगे बढ़ाने की दिशा में गांधी के विचारों को परमाणु निशस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ाने और इसके साथ-साथ विदेश नीति के पंचशील सिद्धांतों में गांधी के दर्शन का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है.
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केंद्र के निदेशक डॉ. राजेश कुमार शर्मा ने कहा कि भारत की विदेश नीति में आज भी गांधी दर्शन पर विशेष बल देकर वैश्विक पटल पर अहम भूमिका निभाई जा सकती है. 21वीं सदी में व्याप्त वैश्विक समस्याओं के समाधान का गांधीवादी तरीका सर्वाधिक उपयुक्त माल हो सकता है. गांधी के विचारों में एक देश नहीं बल्कि पूरा विश्व समाया हुआ है. इसलिए उनके विचारों को आज पूरा विश्व अपना रहा है.