जयपुर. पूर्व विदेश, रक्षा और वित्त मंत्री रहे कद्दावर नेता जसवंत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी कई यादें हैं, जो देश और प्रदेश की राजनीति में हमेशा जहन में ताजा रहेगी. राजस्थान की सियासत में जसवंत सिंह को लेकर कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनकी स्मृतियां ही अब शेष हैं.
सेना में मेजर पद से इस्तीफा देकर राजनीति के मैदान में आए स्वर्गीय जसवंत सिंह की पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी मित्र थे और राजनीति में उन्हें अटल जी के 'हनुमान' के नाम से भी जाना जाता था.
सेना का मैदान छोड़ राजनीति के मैदान में आए...
जसवंत सिंह 1960 में सेना के मेजर के पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक मैदान में उतरे थे. बताया जाता है कि उन्हें राजनीति में लाने वाले राजस्थान के दिग्गज राजनेता और पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरो सिंह शेखावत थे. तत्कालिक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में जसवंत सिंह जसोल अपने राजनीतिक करियर के शीर्ष पर थे. 1998 से लेकर 2004 तक वाजपेयी शासन काल में उन्होंने वित्त रक्षा और विदेश मंत्रालय का नेतृत्व किया.
राजनीतिक करियर में आए कई उतार-चढ़ाव...
जसवंत सिंह राजनीतिक कैरियर में शीर्ष पर भी रहे और अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के साथ उनकी मित्रता भी जग जाहिर थी लेकिन अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव के दौर से भी उन्हें गुजरना पड़ा और विवादों से भी उनका चोली दामन का साथ रहा.
साल 1999 में एयर इंडिया के विमान के यात्रियों को छुड़वाने के लिए आतंकवादियों के साथ गांधार जाने के मामले में उनकी काफी आलोचना हुई. मुस्ताक अहमद उमर सईद शेख और मौलाना मसूद अजहर को कंधार तक छोड़ने के लिए तब के विदेश मंत्री जसवंत सिंह गए थे. इसके पहले साल 1998 के दौरान जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया था, तब भी जसवंत सिंह अमेरिका के साथ बातचीत करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के पहले मंत्री थे.
साल 1999 के दौरान पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारत के क्षेत्र में हमला किया तो भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में जसवंत सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. भाजपा ने उनको उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन कांग्रेस के हामिद अंसारी के सामने वे चुनाव हार गए.
प्रभावशाली नेता होने के बावजूद पार्टी से बाहर हुए...
जसवंत सिंह जसोल ने अपनी पुस्तक में मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ भी की थी, जिसके बाद भाजपा ने उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. साल 2010 में जसवंत सिंह की भाजपा में वापस वापसी हुई लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उनको पार्टी ने टिकट नहीं देकर, यहां से कर्नल सोनाराम को उम्मीदवार बनाया और सोनाराम सांसद का चुनाव जीते. इससे नाराज होकर जसवंत सिंह ने फिर से भाजपा छोड़ दी.
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साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा लेकिन भाजपा के उम्मीदवार कर्नल सोनाराम के सामने वह चुनाव हार गए. उसके कुछ ही समय बाद बाथरूम में गिरने के कारण उनके सिर में चोट लगी और तभी से जसवंत सिंह कोमा में चले गए और आज वह हमारे बीच में नहीं रहे.
वसुंधरा राजे और जसवंत सिंह की अदावत के किस्से भी रहेंगे याद...
साल 2007 बाड़मेर के जसोल गांव मीडिया की सुर्खियों में आया था. कारण था जसवंत सिंह जसोल के घर रियाण का कार्यक्रम. ये कार्यक्रम स्थानीय परंपराओं के अनुरूप था, लेकिन एकदम निजी भी था. इसी कार्यक्रम में वसुंधरा राजे का विरोधी खेमे से जुड़े तमाम नेता एक जगह एकत्रित हुए. इनमें घनश्याम तिवाड़ी, कैलाश मेघवाल, नरपत सिंह राजवी, ललित किशोर चतुर्वेदी, महावीर जैन, रघुवीर कौशल आदि नेता शामिल थे, केवल नहीं थीं तो वसुंधरा राजे.
बता दें कि पश्चिमी राजस्थान की परंपरा है कि रियाण कार्यक्रम में मेहमानों का अफीम की मनुहार के साथ स्वागत किया जाता है. जसवंत सिंह जसोल के इस कार्यक्रम में भी कुछ ऐसा ही हुआ लेकिन ये मामला उठ गया और मीडिया में सुर्खियां भी बना.
हालात ये बन गए कि जसवंत सिंह सहित कार्यक्रम में शामिल तमाम नेताओं के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हो गए लेकिन इन मुकदमों को जसवंत सिंह और उनके खेमे से जुड़े नेताओं ने वसुंधरा राजे के पलटवार के रूप में लिया. अगले ही चुनाव में प्रदेश में भाजपा सरकार नहीं बन पाई.
हालांकि, इसके बाद साल 2014 में जब आपस प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह जसोल ने बाड़मेर जैसलमेर से टिकट मांगा, लेकिन तब वसुंधरा राजे से चल रही अदावत के कारण उन्हें टिकट नहीं मिल पाया और निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा और वो हार गए.