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इस विधानसभा सत्र में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए पूछे 58 सवाल, तोड़ी ये परंपरा

सदन में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सवाल नहीं उठाने की परंपरा को गुलाबचंद कटारिया ने तोड़ दिया है. पिछले कार्यकाल में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ही नहीं और भी कई नेताओं को पीछे छोड़ दिया है. इस सत्र में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए इक्का-दुक्का सवाल नहीं, बल्कि पूरे 58 सवाल पूछे हैं.

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Published : Jul 31, 2019, 8:18 PM IST

जयपुर. विधायक अपने क्षेत्र की समस्या अगर किसी माध्यम से उठाते हैं तो वह है विधानसभा में सवाल. अगर किसी विधायक के क्षेत्र में कोई समस्या हो तो उसे दूर करने के लिए इसी माध्यम का इस्तेमाल विधायक अक्सर करते हुए दिखाई देते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं जो विधायक होने के बाद भी अपने क्षेत्र की समस्याओं के सवाल नहीं लगा पाते हैं. इनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री शामिल होते हैं. क्योंकि मुख्यमंत्री और मंत्री स्वयं सत्ता के भाग होते हैं और उन पर पूरे प्रदेश की समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी होती है ऐसे में मंत्री और मुख्यमंत्री सवाल नहीं लगाते हैं.

इस सत्र विधानसभा में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए पूछे कुल 58 सवाल

हालांकि विपक्ष के विधायक सवालों के माध्यम से न केवल अपने क्षेत्र की समस्या उठाते हैं बल्कि सत्ता पक्ष को भी गिरने का काम करते हैं लेकिन विपक्ष में भी एक पथ नेता प्रतिपक्ष का ऐसा होता है जिस पर आसीन नेता सवाल लगाने से बसते हैं. कम से कम बीते दो कार्यकाल तो ऐसे दिखाई दे रहे हैं जब पिछली भाजपा सरकार के समय कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और उससे पहले भाजपा की नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे ने एक भी सवाल सदन में नहीं लगाया था, तो वहीं संभवत अब तक सभी नेता प्रतिपक्ष रहे नेताओं ने सवाल सदन में नहीं लगाए, लेकिन अब इस परंपरा को वर्तमान नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने तोड़ दिया है जिन्होंने इस सत्र में सवाल लगाए हैं और सरकार को न केवल अपने विधायकों के सवालों के जरिए बल्कि खुद अपने सवालों के जरिए भी गिरने का काम किया है.

ये भी पढ़ें: सेना का भूतपूर्व जवान बता कर OLX पर युवक से की रॉयल इनफिल्ड मोटरसाइकिल सौदे में ठगी

इस सत्र में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए इक्का-दुक्का सवाल नहीं बल्कि पूरे 58 सवाल पूछे हैं. पहले सत्र में भी गुलाब चंद्र कटारिया ने 13 सवाल पूछे थे हालांकि अब तक माना जाता है कि जो विधायक मंत्री नहीं होते हैं उनके सवाल ही उनके क्षेत्र की जनता के प्रति संवेदनशीलता दर्शाते हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सवाल पूछने का दौर शुरू करके कटारिया ने एक नई मिसाल पेश कर दी है जो आगे आने वाले नेता प्रतिपक्ष के लिए भी एक उदाहरण बनेगी. खाली नेता प्रतिपक्ष ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने नेता प्रतिपक्ष के पद पर हुए बगैर भी बनाए रखी सवालों से दूरी.

आपको बता दें, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद जब सत्ता गवाही तो विपक्ष में रहते हुए कवि विधानसभा में अपने क्षेत्र का सवाल नहीं लगाया था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चौधरी विधानसभा और वसुंधरा राजे ने 13वीं विधानसभा और वर्तमान में चल रही 15वीं विधानसभा में अब तक के दो सत्रों में एक भी सवाल नहीं लगाया है.

जयपुर. विधायक अपने क्षेत्र की समस्या अगर किसी माध्यम से उठाते हैं तो वह है विधानसभा में सवाल. अगर किसी विधायक के क्षेत्र में कोई समस्या हो तो उसे दूर करने के लिए इसी माध्यम का इस्तेमाल विधायक अक्सर करते हुए दिखाई देते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं जो विधायक होने के बाद भी अपने क्षेत्र की समस्याओं के सवाल नहीं लगा पाते हैं. इनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री शामिल होते हैं. क्योंकि मुख्यमंत्री और मंत्री स्वयं सत्ता के भाग होते हैं और उन पर पूरे प्रदेश की समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी होती है ऐसे में मंत्री और मुख्यमंत्री सवाल नहीं लगाते हैं.

इस सत्र विधानसभा में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए पूछे कुल 58 सवाल

हालांकि विपक्ष के विधायक सवालों के माध्यम से न केवल अपने क्षेत्र की समस्या उठाते हैं बल्कि सत्ता पक्ष को भी गिरने का काम करते हैं लेकिन विपक्ष में भी एक पथ नेता प्रतिपक्ष का ऐसा होता है जिस पर आसीन नेता सवाल लगाने से बसते हैं. कम से कम बीते दो कार्यकाल तो ऐसे दिखाई दे रहे हैं जब पिछली भाजपा सरकार के समय कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और उससे पहले भाजपा की नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे ने एक भी सवाल सदन में नहीं लगाया था, तो वहीं संभवत अब तक सभी नेता प्रतिपक्ष रहे नेताओं ने सवाल सदन में नहीं लगाए, लेकिन अब इस परंपरा को वर्तमान नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने तोड़ दिया है जिन्होंने इस सत्र में सवाल लगाए हैं और सरकार को न केवल अपने विधायकों के सवालों के जरिए बल्कि खुद अपने सवालों के जरिए भी गिरने का काम किया है.

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इस सत्र में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए इक्का-दुक्का सवाल नहीं बल्कि पूरे 58 सवाल पूछे हैं. पहले सत्र में भी गुलाब चंद्र कटारिया ने 13 सवाल पूछे थे हालांकि अब तक माना जाता है कि जो विधायक मंत्री नहीं होते हैं उनके सवाल ही उनके क्षेत्र की जनता के प्रति संवेदनशीलता दर्शाते हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सवाल पूछने का दौर शुरू करके कटारिया ने एक नई मिसाल पेश कर दी है जो आगे आने वाले नेता प्रतिपक्ष के लिए भी एक उदाहरण बनेगी. खाली नेता प्रतिपक्ष ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने नेता प्रतिपक्ष के पद पर हुए बगैर भी बनाए रखी सवालों से दूरी.

आपको बता दें, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद जब सत्ता गवाही तो विपक्ष में रहते हुए कवि विधानसभा में अपने क्षेत्र का सवाल नहीं लगाया था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चौधरी विधानसभा और वसुंधरा राजे ने 13वीं विधानसभा और वर्तमान में चल रही 15वीं विधानसभा में अब तक के दो सत्रों में एक भी सवाल नहीं लगाया है.

Intro:सदन में नेता प्रतिपक्ष के सवाल नहीं उठाने की परंपरा को तोड़ा गुलाब कटारिया ने सदन में सवाल लगाकर ना तो पिछले कार्यकाल में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी नाही पहले नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे ने लगाया था नेता प्रतिपक्ष होते हुए सवाल तो वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने नेता प्रतिपक्ष नहीं होते हुए भी बनाई सवालों से दूरी


Body:विधायक अपने क्षेत्र की समस्या अगर किसी माध्यम से उठाते हैं तो वह है विधानसभा में सवाल अगर किसी विधायक के क्षेत्र में कोई समस्या हो तो उसे दूर करने के लिए इसी माध्यम का इस्तेमाल विधायक अक्सर करते हुए दिखाई देते हैं लेकिन कुछ नहीं था ऐसे भी होते हैं जो विधायक होने के बाद भी अपने क्षेत्र की समस्याओं के सवाल नहीं लगा पाते हैं इनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री शामिल होते हैं क्योंकि मुख्यमंत्री और मंत्री स्वयं सत्ता के भाग होते हैं और उन पर पूरे प्रदेश की समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी होती है ऐसे में मंत्री और मुख्यमंत्री सवाल नहीं लगाते हैं हालांकि विपक्ष के विधायक सवालों के माध्यम से न केवल अपने क्षेत्र की समस्या उठाते हैं बल्कि सत्ता पक्ष को भी गिरने का काम करते हैं लेकिन विपक्ष में भी एक पथ नेता प्रतिपक्ष का ऐसा होता है जिस पर आसीन नेता सवाल लगाने से बसते हैं कम से कम बीते दो कार्यकाल तो ऐसे दिखाई दे रहे हैं जब पिछली भाजपा सरकार के समय कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और उससे पहले भाजपा की नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे ने एक भी सवाल सदन में नहीं लगाया था तो वही संभवत अब तक सभी नेता प्रतिपक्ष रहे नेताओं ने सवाल सदन में नहीं लगाए लेकिन अब इस परंपरा को वर्तमान नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने तोड़ दिया है जिन्होंने इस सत्र में सवाल लगाए हैं और सरकार को न केवल अपने विधायकों के सवालों के जरिए बल्कि खुद अपने सवालों के जरिए भी गिरने का काम किया है इस सत्र में कटारिया ने नेता प्रतिपक्ष होते हुए इक्का-दुक्का सवाल नहीं बल्कि पूरे 58 सवाल पूछे हैं पहले सत्र में भी गुलाब कटारिया ने 13 सवाल पूछे थे हालांकि अब तक माना जाता है कि जो विधायक मंत्री नहीं होते हैं उनके सवाल ही उनके क्षेत्र की जनता के प्रति संवेदनशीलता दर्शाते हैं लेकिन नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सवाल पूछने का दौर शुरू करके कटारिया ने एक नई मिसाल पेश कर दी है जो आगे आने वाले नेता प्रतिपक्ष के लिए भी एक उदाहरण बनेगी
खाली नेता प्रतिपक्ष ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने नेता प्रतिपक्ष के पद पर हुए बगैर भी बनाए रखी सवालों से दूरी
वैसे तो नेता प्रतिपक्ष का सवाल नहीं लगाना किसी को नहीं आ करता है लेकिन आपको बता दें कि कुछ नहीं था ऐसे भी हैं जिन को पूरा प्रदेश ना केवल जानता है बल्कि सत्ता में रहने पर पिछले 20 साल से वह मुख्यमंत्री भी राजस्थान के बने हैं जी हां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद जब सत्ता गवाही तो विपक्ष में रहते हुए कवि विधानसभा में अपने क्षेत्र का सवाल नहीं लगाया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चौधरी विधानसभा और वसुंधरा राजे ने 13वीं विधानसभा और वर्तमान में चल रही 15 वी विधानसभा में अब तक के दो सत्रों में एक भी सवाल नहीं लगाया है
वाइट गुलाब चंद कटारिया नेता प्रतिपक्ष


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