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SPECIAL : जयपुर का गुलाल गोटा : हाथी पर बैठकर गुलाल गोटे से राजा खेलते थे होली, अब खो रही पहचान - History of Gulal Gota

रंग और उमंग का त्यौहार है होली. यही रंग जयपुर के गुलाल गोटे का हो तो होली का मजा दोगुना हो जाता है. जयपुर में होली पर मनिहारों के रास्ते में कई मुस्लिम परिवार दिन-रात गुलाल गोटे बनाते हैं. लेकिन अब गुलाल गोटे को अपनी पहचान का टोटा सता रहा है.

Holi Gulal Gota of Jaipur,  Muslim artisans of Gulal Gota in Jaipur,  The example of communal harmony Gulal Gota
अब पहचान खो रहा है गुलाल गोटा
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Published : Mar 26, 2021, 6:35 PM IST

जयपुर. गुलाल और रंगों से भरे, मारें तो लगे नहीं...बल्कि रंग के साथ खुशबू चारों और बिखर जाए...ये गुब्बारे नहीं हैं बल्कि ये है अनोखे गुलाल गोटे. कभी जयपुर की होली की शान रहे लाख से बने गुलाल गोटे अब विलुप्त होने के कगार पर है. देखिये ये रिपोर्ट...

सांप्रदायिक सौहर्द की मिसाल है गुलाल गोटा

गुलाल गोटे का प्रयोग केवल सिटी पैलेस और बड़े लोगों की होली तक ही सीमित रह गया है. पहले न गुब्बारे थे और न ही रासायनिक रंग. गुलाबीनगरी की होली शुरू होती थी इन गुलाल गोटों के संग. जयपुर के परकोटे में राजा हाथी पर सवार होकर होली खेलने निकलते और लोगों पर गुलाल गोटे उठा-उठाकर पर फेंका करते थे. इसके बाद ही शहर में आम जनता होली खेलना शुरू करती थी. राजसी होली की पहचान गुलाल गोटों का नाम तक आज प्रजा के लिए अनजाना हो चुका है.

Holi Gulal Gota of Jaipur,  Muslim artisans of Gulal Gota in Jaipur,  The example of communal harmony Gulal Gota
किसी समय राजा हाथी पर बैठकर गुलाल गोटे से खेलते थे होली

गुलाल गोटे बनाने का तरीका सदियों पुराना है. जयपुर के परकोटे में गुलाल गोटे बनाने वाले परिवार मणिहारों के रास्ते में बसते हैं. जो ऑर्डर मिलने पर गुलाल गोटे तैयार करते हैं. मणिहार परवेज मोहम्मद बताते हैं कि लाख के बने इन गुब्बारों का वजन 5 ग्राम होता है. जहां परिवार का एक सदस्य गुलाल गोटे बनाने के लिए गर्म लाख को तैयार करता है तो दूसरा गर्म लाख को विशेष प्रकार की फूंकनी से फुलाता है.

Holi Gulal Gota of Jaipur,  Muslim artisans of Gulal Gota in Jaipur,  The example of communal harmony Gulal Gota
लाख में भरे जाते हैं रंग और अबीर

पढ़ें- पलाश के फूलों से बने हर्बल रंगों से रंगतेरस खेलते हैं आदिवासी....प्रतापगढ़ में बरसते हैं प्राकृतिक रंग

फिर रंग भरकर पैक कर दिया जाता है. समय के साथ साथ गुलाल गोटे बनाने का तरीका तो नहीं बदला लेकिन पैकिंग बदल गई. वैसे तो गुलाल गोटे जयपुर की पहचान हैं, क्योंकि दुनिया में कहीं और गुलाल गोटे नहीं मिलते. वहीं जयपुर में भी खासतौर पर सिटी पैलेस में राजशाही परिवार में ही ये जाते हैं.

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लाख को गर्म कर फुलाया जाता है

गुलाल गोटे में यूं तो रंग है गुलाल का. लेकिन एक खास रंग है साम्प्रदायिक सौहार्द का. जो मुस्लिम मणिहार पिछले 300 सालों से इस कला को संजोए हुए हैं. गंगा जमुनी तहजीब के लिए खास माने जाने वाले गुलाल गोटा मुस्लिम परिवार द्वारा बनाए जाने के बाद सबसे पहले वृंदावन भेजे जाते हैं. जो कि सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करने के लिए काफी है.

पढ़ें- विधायक जाहिदा खान ने मंदिर में खेली लठमार और पुष्प-गुलाल होली, सांप्रदायिक सौहार्द का दिया संदेश

मणिहार अनवर जहां बताती हैं कि होली से पहले उनका पूरा परिवार इस काम में लग जाता है. जहां गुलाल गोटा बनाकर उसमें अरारोट की गुलाब, चमेली और मोगरा के महक की गुलाल इनमें भरी जाती है. गुलाल गोटे बनाने से कुछ खास कमाई नहीं होती लेकिन इसके पीछे का मकसद उनका परंपरा को निभाना है.

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अब पहचान खो रहा है गुलाल गोटा

होली के बाकी दिनों में मणिहारे चूड़ियां बनाते हैं और गुलाल गोटे बनाना इनका मूल पेशा नहीं है. 5 ग्राम के एक गुलाल गोटे की लागत करीब 10 रुपये आती है और लगभग इसी कीमत में बेच भी दिया जाता है. गुलाल गोटे बनाने वाला मुस्लिम समुदाय के ये लोग मुनाफे से ज्यादा तवज्जों कला और परंपरा को देते हैं.

जयपुर. गुलाल और रंगों से भरे, मारें तो लगे नहीं...बल्कि रंग के साथ खुशबू चारों और बिखर जाए...ये गुब्बारे नहीं हैं बल्कि ये है अनोखे गुलाल गोटे. कभी जयपुर की होली की शान रहे लाख से बने गुलाल गोटे अब विलुप्त होने के कगार पर है. देखिये ये रिपोर्ट...

सांप्रदायिक सौहर्द की मिसाल है गुलाल गोटा

गुलाल गोटे का प्रयोग केवल सिटी पैलेस और बड़े लोगों की होली तक ही सीमित रह गया है. पहले न गुब्बारे थे और न ही रासायनिक रंग. गुलाबीनगरी की होली शुरू होती थी इन गुलाल गोटों के संग. जयपुर के परकोटे में राजा हाथी पर सवार होकर होली खेलने निकलते और लोगों पर गुलाल गोटे उठा-उठाकर पर फेंका करते थे. इसके बाद ही शहर में आम जनता होली खेलना शुरू करती थी. राजसी होली की पहचान गुलाल गोटों का नाम तक आज प्रजा के लिए अनजाना हो चुका है.

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किसी समय राजा हाथी पर बैठकर गुलाल गोटे से खेलते थे होली

गुलाल गोटे बनाने का तरीका सदियों पुराना है. जयपुर के परकोटे में गुलाल गोटे बनाने वाले परिवार मणिहारों के रास्ते में बसते हैं. जो ऑर्डर मिलने पर गुलाल गोटे तैयार करते हैं. मणिहार परवेज मोहम्मद बताते हैं कि लाख के बने इन गुब्बारों का वजन 5 ग्राम होता है. जहां परिवार का एक सदस्य गुलाल गोटे बनाने के लिए गर्म लाख को तैयार करता है तो दूसरा गर्म लाख को विशेष प्रकार की फूंकनी से फुलाता है.

Holi Gulal Gota of Jaipur,  Muslim artisans of Gulal Gota in Jaipur,  The example of communal harmony Gulal Gota
लाख में भरे जाते हैं रंग और अबीर

पढ़ें- पलाश के फूलों से बने हर्बल रंगों से रंगतेरस खेलते हैं आदिवासी....प्रतापगढ़ में बरसते हैं प्राकृतिक रंग

फिर रंग भरकर पैक कर दिया जाता है. समय के साथ साथ गुलाल गोटे बनाने का तरीका तो नहीं बदला लेकिन पैकिंग बदल गई. वैसे तो गुलाल गोटे जयपुर की पहचान हैं, क्योंकि दुनिया में कहीं और गुलाल गोटे नहीं मिलते. वहीं जयपुर में भी खासतौर पर सिटी पैलेस में राजशाही परिवार में ही ये जाते हैं.

Holi Gulal Gota of Jaipur,  Muslim artisans of Gulal Gota in Jaipur,  The example of communal harmony Gulal Gota
लाख को गर्म कर फुलाया जाता है

गुलाल गोटे में यूं तो रंग है गुलाल का. लेकिन एक खास रंग है साम्प्रदायिक सौहार्द का. जो मुस्लिम मणिहार पिछले 300 सालों से इस कला को संजोए हुए हैं. गंगा जमुनी तहजीब के लिए खास माने जाने वाले गुलाल गोटा मुस्लिम परिवार द्वारा बनाए जाने के बाद सबसे पहले वृंदावन भेजे जाते हैं. जो कि सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करने के लिए काफी है.

पढ़ें- विधायक जाहिदा खान ने मंदिर में खेली लठमार और पुष्प-गुलाल होली, सांप्रदायिक सौहार्द का दिया संदेश

मणिहार अनवर जहां बताती हैं कि होली से पहले उनका पूरा परिवार इस काम में लग जाता है. जहां गुलाल गोटा बनाकर उसमें अरारोट की गुलाब, चमेली और मोगरा के महक की गुलाल इनमें भरी जाती है. गुलाल गोटे बनाने से कुछ खास कमाई नहीं होती लेकिन इसके पीछे का मकसद उनका परंपरा को निभाना है.

Holi Gulal Gota of Jaipur,  Muslim artisans of Gulal Gota in Jaipur,  The example of communal harmony Gulal Gota
अब पहचान खो रहा है गुलाल गोटा

होली के बाकी दिनों में मणिहारे चूड़ियां बनाते हैं और गुलाल गोटे बनाना इनका मूल पेशा नहीं है. 5 ग्राम के एक गुलाल गोटे की लागत करीब 10 रुपये आती है और लगभग इसी कीमत में बेच भी दिया जाता है. गुलाल गोटे बनाने वाला मुस्लिम समुदाय के ये लोग मुनाफे से ज्यादा तवज्जों कला और परंपरा को देते हैं.

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