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राजस्थान हाईकोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के लिए सीट आरक्षित करने पर मांगा जवाब - civic elections

राजस्थान हाईकोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित करने के मामले में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत निर्वाचन आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव सहित प्रमुख स्वायत्त शासन सचिव को नोटिस जारी कर 7 नवंबर तक जवाब तलब किया है.

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Published : Oct 21, 2019, 4:29 PM IST

जयपुर. स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित करने के मामले में राजस्थान सरकार ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारतीय निर्वाचन आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव से जवाब तलब किया है.

हाई कोर्ट ने ओबीसी वर्ग के लिए सीट आरक्षित करने पर मांगा जवाब

बता दें कि मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहंती और न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खंडपीठ ने यह आदेश समता आंदोलन समिति और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. याचिका में अधिवक्ता शोभित तिवारी ने अदालत को बताया कि संविधान के 102वें संशोधन के तहत ओबीसी को परिभाषित किया गया है. संशोधन में कहा गया है कि ओबीसी वर्ग में वही जाति शामिल होगी, जिसे राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो. याचिका में कहा गया कि यह संविधान संशोधन 14 अगस्त 2018 से लागू हो गया है, लेकिन राष्ट्रपति की ओर से अभी तक ओबीसी की जातियों को अधिसूचित नहीं किया गया है. ऐसी स्थिति में ओबीसी वर्ग की लिस्ट के अभाव में ओबीसी आरक्षण का मौजूदा समय में कोई अस्तित्व ही नहीं है.

पढ़ेंः CRPF की रैपिड एक्शन फोर्स ने मनाया पुलिस स्मरण दिवस, शहीदों को श्रद्धांजलि देकर शहादत को किया याद

वहीं याचिका में यह भी कहा गया कि नगरपालिका अधिनियम 2009 में कहा गया है कि राज्य सरकार जिसे ओबीसी वर्ग में शामिल करेगी उसे ओबीसी माना जाएगा.1 यह प्रावधान संविधान संशोधन के विपरीत है, क्योंकि संविधान संशोधन के बाद अब केवल ओबीसी की सूची राष्ट्रपति अधिसूचित कर सकते हैं. ऐसे में इस प्रावधान को भी अवैध घोषित किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

जयपुर. स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित करने के मामले में राजस्थान सरकार ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारतीय निर्वाचन आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव से जवाब तलब किया है.

हाई कोर्ट ने ओबीसी वर्ग के लिए सीट आरक्षित करने पर मांगा जवाब

बता दें कि मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहंती और न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खंडपीठ ने यह आदेश समता आंदोलन समिति और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. याचिका में अधिवक्ता शोभित तिवारी ने अदालत को बताया कि संविधान के 102वें संशोधन के तहत ओबीसी को परिभाषित किया गया है. संशोधन में कहा गया है कि ओबीसी वर्ग में वही जाति शामिल होगी, जिसे राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो. याचिका में कहा गया कि यह संविधान संशोधन 14 अगस्त 2018 से लागू हो गया है, लेकिन राष्ट्रपति की ओर से अभी तक ओबीसी की जातियों को अधिसूचित नहीं किया गया है. ऐसी स्थिति में ओबीसी वर्ग की लिस्ट के अभाव में ओबीसी आरक्षण का मौजूदा समय में कोई अस्तित्व ही नहीं है.

पढ़ेंः CRPF की रैपिड एक्शन फोर्स ने मनाया पुलिस स्मरण दिवस, शहीदों को श्रद्धांजलि देकर शहादत को किया याद

वहीं याचिका में यह भी कहा गया कि नगरपालिका अधिनियम 2009 में कहा गया है कि राज्य सरकार जिसे ओबीसी वर्ग में शामिल करेगी उसे ओबीसी माना जाएगा.1 यह प्रावधान संविधान संशोधन के विपरीत है, क्योंकि संविधान संशोधन के बाद अब केवल ओबीसी की सूची राष्ट्रपति अधिसूचित कर सकते हैं. ऐसे में इस प्रावधान को भी अवैध घोषित किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

Intro:बाईट- याचिकाकर्ता के वकील शोभित तिवाड़ी

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित करने के मामले में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारतीय निर्वाचन आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव सहित प्रमुख स्वायत्त शासन सचिव को नोटिस जारी कर 7 नवंबर तक जवाब तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहंती और न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खंडपीठ ने यह आदेश समता आंदोलन समिति व अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
Body:याचिका में अधिवक्ता शोभित तिवाडी ने अदालत को बताया कि संविधान के 102वें संशोधन के तहत ओबीसी को परिभाषित किया गया है। संशोधन में कहा गया है कि ओबीसी वर्ग में वही जाति शामिल होगी, जिसे राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया गया हो। याचिका में कहा गया कि यह संविधान संशोधन 14 अगस्त 2018 से लागू हो गया है, लेकिन राष्ट्रपति की ओर से अभी तक ओबीसी की जातियों को अधिसूचित नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में ओबीसी वर्ग की लिस्ट के अभाव में ओबीसी आरक्षण का मौजूदा समय में कोई अस्तित्व ही नहीं है। याचिका में यह भी कहा गया कि नगरपालिका अधिनियम 2009 में कहा गया है कि राज्य सरकार जिसे ओबीसी वर्ग में शामिल करेगी उसे ओबीसी माना जाएगा। यह प्रावधान संविधान संशोधन के विपरीत है, क्योंकि संविधान संशोधन के बाद अब केवल ओबीसी की सूची राष्ट्रपति अधिसूचित कर सकते हैं। ऐसे में इस प्रावधान को भी अवैध घोषित किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।Conclusion:
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