जयपुर. कोरोना के बाद 23 सितंबर को जब मेट्रो का संचालन शुरू किया गया. तब शुरू में राइडरशिप काफी कम रही. रोजाना करीब दो से तीन हजार यात्री ही सफर किया करते थे. हालांकि, अब राइडरशिप 14 हजार तक पहुंची है. लेकिन कोरोना से पहले की 20 हजार राइडरशिप से अभी काफी कम है. इन उपभोक्ताओं को भी पूरी सुविधा नहीं मिल पा रही.
राजधानी में 11 मेट्रो स्टेशन हैं, इनमें छोटी चौपड़ और बड़ी चौपड़ पर चार-चार एंट्री गेट हैं. जबकि बाकी नौ मेट्रो स्टेशन पर दो-दो एंट्री गेट हैं. Etv Bharat की टीम ने जब इन मेट्रो स्टेशन का जायजा लिया तो सामने आया कि इन 11 मेट्रो स्टेशन में से महज मानसरोवर और सिंधी कैंप मेट्रो स्टेशन पर ही दोनों एंट्री गेट खुले हुए हैं. इससे लगते हुए एस्केलेटर और लिफ्ट संचालित हैं. बाकी मेट्रो स्टेशन पर आधी सुविधाएं ही उपलब्ध हैं.
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वहीं राज्य और केंद्र सरकार के निर्देशों के बावजूद जयपुर मेट्रो में सफर करने वाले यात्री कोरोना गाइडलाइन की पालना नहीं कर रहे. मेट्रो स्टेशन तक तो मास्क से नाक और मुंह लोग ढक लेते हैं. लेकिन मेट्रो ट्रेन में जाते ही अधिकतर के नाक मुंह की जगह ये मास्क गले पर देखने को मिला. वहीं भूमिगत मेट्रो तक जब पहुंचे, तो यहां एक बार फिर वही पुरानी मोबाइल नेटवर्क की समस्या देखने को मिली.
क्या कहना है एमडी मुकेश सिंघल का?
मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के एमडी मुकेश सिंघल ने बताया कि राइडरशिप बढ़ाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं. वहीं पैसेंजर से यही अनुरोध किया जाता है कि मेट्रो स्टेशन और ट्रेन में भी मास्क लगाकर रखें. स्टेशन पर बिना मास्क के एंट्री नहीं है. लेकिन यदि यात्री मेट्रो ट्रेन के अंदर उनका भी कर्तव्य बनता है कि वो मास्क लगाए रखें और सोशल डिस्टेंसिंग की भी पालना करें. वहीं उन्होंने दावा किया कि सभी मेट्रो स्टेशन पर लिफ्ट और एस्केलेटर वर्किंग कंडीशन में हैं.
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उन्होंने तर्क दिया कि कोरोना काल के दौरान राइडरशिप कम है, इसलिए कुछ स्टेशनों पर एक एंट्री बंद कर रखी है. ऐसे में जिस तरफ एंट्री बंद है, उस तरफ के एस्केलेटर बंद किए हुए हैं. वहीं चांदपोल से बड़ी चौपड़ तक मेट्रो में मोबाइल नेटवर्क नहीं आने की कमी पर उन्होंने पक्ष रखते हुए कहा कि, जब भूमिगत मेट्रो की शुरुआत की गई थी. उस वक्त ही मोबाइल नेटवर्क का पूरा प्रावधान किया गया था और जिस ऑपरेटर को ये पूरा काम दे रखा है, वो सभी मोबाइल नेटवर्क से कोआर्डिनेशन की कोशिश में लगा है. अभी महज जियो की फ्रीक्वेंसी पर काम हो सका है.
हालांकि, जयपुर मेट्रो में अभी पैसेंजर्स की संख्या को देखते हुए रिजर्व सीट का कोई झमेला नहीं है. लेकिन मेट्रो के सामने चुनौती भी यही है कि आखिर कैसे घाटे से उबरते हुए जयपुर मेट्रो में फुटफॉल बढ़ाया जाए. कैसे तमाम व्यवस्थाओं को पहले की भांति पूरी तरह अनलॉक किया जाए.