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हेरिटेज सिटी जयपुर का हाल बेहाल, साल बदले... पर ना सोच बदली और ना ही शौचालय

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Published : Oct 29, 2020, 2:14 PM IST

राजधानी जयपुर की स्थापना 1727 में हुई थी. उस समय की हवेलियां और घरों के एक कोने में तारत हुआ करते थे. जो आज शौचालय के नाम से जाने जाते हैं. लेकिन 292 साल बाद आज की स्थिति जयपुर की छवि को दागदार करने वाली है. जयपुर को भले ही वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का तमगा मिला हो, लेकिन इसी हेरिटेज सिटी के बाजारों में टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधा का अभाव है. देखें विस्तृत रिपोर्ट...

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हेरिटेज सिटी में नहीं है सार्वजनिक शौचालय

जयपुर: 292 साल तक अपनी विरासत को संजोए रखने के बाद जयपुर को हेरिटेज सिटी का दर्जा मिला है. पिंक सिटी के किले, महल, दरवाजे, बरामदे, बाजार, रास्ते आज भी विरासत को समेटे हुए हैं.महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18 नवंबर 1727 को जयपुर की नींव रखी थी और जयपुर नाम भी उन्होंने ही दिया था. गुलाबी नगरी का डिजाइन बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य से करवाया था.

हेरिटेज सिटी में नहीं है सार्वजनिक शौचालय

उस दौर में जयपुर में सवाई जयसिंह द्वितीय ने नगरीय व्यवस्था के तहत तारत की व्यवस्था सुनिश्चित की थी. जिसे घरेलू शौचालय कहते हैं. ये तारत सभी हवेली और घरों के एक हिस्से में हुआ करता था. वहीं जयसिंह ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि लोगों को खुले में शौच जाना ही नहीं पड़ता था. लेकिन आज के जयपुर शहर में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है.

शौच के लिए तय करनी पड़ती है 1 किमी की दूरी

आलम ये है कि किशनपोल और अजमेरी गेट के पास महज एक सुलभ शौचालय है. ऐसे में छोटी चौपड़ के दुकानदार और ग्राहकों को शौचालय के लिए 1 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. कोतवाली थाने के पास बने सार्वजनिक शौचालय का रुख करते हैं, वो भी अमूमन गंदा ही पड़ा रहता है. वहीं महिलाओं के लिए तो ये व्यवस्था भी नहीं है.

पढ़ें: Special: सरकारी भवन की दीवारें और चौराहे देंगे कोरोना से बचाव के संदेश, मेवाड़ शैली में की जाएगी चित्रकारी

निगम प्रशासन के अनुसार जयपुर ग्रेटर में 97 पब्लिक टॉयलेट और 36 कम्युनिटी टॉयलेट, जबकि जयपुर हेरीटेज क्षेत्र में 109 पब्लिक टॉयलेट जबकि 21 कम्युनिटी टॉयलेट की व्यवस्था है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि शहर के हेरिटेज बाजारों में इक्का-दुक्का टॉयलेट ही नजर आते हैं. जब त्रिपोलिया बाजार की ओर नजर घुमाते हैं, तो यहां गली के नुक्कड़ पर बने दो टॉयलेट से पुरुष वर्ग तो गुजारा कर लेता है. लेकिन इस बाजार से हर दिन सैकड़ों महिलाएं गुजरती हैं. कई खरीददार तो कई बतौर टूरिस्ट इस बाजार में घंटों बिताती हैं. इनमें से कुछ को टॉयलेट की जरूरत भी पड़ती है. कुछ संकोच वश पूछती नहीं, और जो पूछती भी हैं उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है.

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क्या कहते हैं आंकड़े

प्रशासन का ये है कहना

हालांकि निगम प्रशासन का अपना ही दावा है. नगर निगम एडिशनल कमिश्नर अरुण गर्ग के मुताबिक नगर निगम क्षेत्र में कुल 185 पब्लिक टॉयलेट हैं. जिनमें महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था रहती है. इसी तरह प्रशासन द्वारा 580 सामुदायिक टॉयलेट भी बनाए गए हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर किसी बाजार से टॉयलेट निर्माण को लेकर मांग आती है, और यदि वहां जगह उपलब्ध कराई जाती है, तो निगम प्रशासन द्वारा टॉयलेट का निर्माण करा सकता है और जहां तक महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था की बात है, तो अगर मौका मिलेगा तो इनका निर्माण भी कराया जाएगा.

पढ़ें: Special: आवाज बन गई पहचान, सीकर में कक्षा आठ की छात्रा बनी रेडियो जॉकी

ऐसा नहीं है कि शहर के बाजारों में टॉयलेट बनाने का स्थान नहीं है. लेकिन हकीकत ये है कि प्रशासन इसे लेकर गंभीर नहीं है. आश्चर्य की बात तो यह है कि जयपुर एक तरफ तो वर्ल्ड हेरिटेज के तमगे के साथ स्मार्ट होता जा रहा है. लेकिन यहां के बाजार और इन बाजारों में आने वाले पर्यटक और खरीददार खासकर महिलाएं आज भी मूलभूत सुविधाओं की राह ताक रहे हैं.

जयपुर: 292 साल तक अपनी विरासत को संजोए रखने के बाद जयपुर को हेरिटेज सिटी का दर्जा मिला है. पिंक सिटी के किले, महल, दरवाजे, बरामदे, बाजार, रास्ते आज भी विरासत को समेटे हुए हैं.महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18 नवंबर 1727 को जयपुर की नींव रखी थी और जयपुर नाम भी उन्होंने ही दिया था. गुलाबी नगरी का डिजाइन बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य से करवाया था.

हेरिटेज सिटी में नहीं है सार्वजनिक शौचालय

उस दौर में जयपुर में सवाई जयसिंह द्वितीय ने नगरीय व्यवस्था के तहत तारत की व्यवस्था सुनिश्चित की थी. जिसे घरेलू शौचालय कहते हैं. ये तारत सभी हवेली और घरों के एक हिस्से में हुआ करता था. वहीं जयसिंह ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि लोगों को खुले में शौच जाना ही नहीं पड़ता था. लेकिन आज के जयपुर शहर में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है.

शौच के लिए तय करनी पड़ती है 1 किमी की दूरी

आलम ये है कि किशनपोल और अजमेरी गेट के पास महज एक सुलभ शौचालय है. ऐसे में छोटी चौपड़ के दुकानदार और ग्राहकों को शौचालय के लिए 1 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. कोतवाली थाने के पास बने सार्वजनिक शौचालय का रुख करते हैं, वो भी अमूमन गंदा ही पड़ा रहता है. वहीं महिलाओं के लिए तो ये व्यवस्था भी नहीं है.

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निगम प्रशासन के अनुसार जयपुर ग्रेटर में 97 पब्लिक टॉयलेट और 36 कम्युनिटी टॉयलेट, जबकि जयपुर हेरीटेज क्षेत्र में 109 पब्लिक टॉयलेट जबकि 21 कम्युनिटी टॉयलेट की व्यवस्था है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि शहर के हेरिटेज बाजारों में इक्का-दुक्का टॉयलेट ही नजर आते हैं. जब त्रिपोलिया बाजार की ओर नजर घुमाते हैं, तो यहां गली के नुक्कड़ पर बने दो टॉयलेट से पुरुष वर्ग तो गुजारा कर लेता है. लेकिन इस बाजार से हर दिन सैकड़ों महिलाएं गुजरती हैं. कई खरीददार तो कई बतौर टूरिस्ट इस बाजार में घंटों बिताती हैं. इनमें से कुछ को टॉयलेट की जरूरत भी पड़ती है. कुछ संकोच वश पूछती नहीं, और जो पूछती भी हैं उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है.

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क्या कहते हैं आंकड़े

प्रशासन का ये है कहना

हालांकि निगम प्रशासन का अपना ही दावा है. नगर निगम एडिशनल कमिश्नर अरुण गर्ग के मुताबिक नगर निगम क्षेत्र में कुल 185 पब्लिक टॉयलेट हैं. जिनमें महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था रहती है. इसी तरह प्रशासन द्वारा 580 सामुदायिक टॉयलेट भी बनाए गए हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर किसी बाजार से टॉयलेट निर्माण को लेकर मांग आती है, और यदि वहां जगह उपलब्ध कराई जाती है, तो निगम प्रशासन द्वारा टॉयलेट का निर्माण करा सकता है और जहां तक महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था की बात है, तो अगर मौका मिलेगा तो इनका निर्माण भी कराया जाएगा.

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ऐसा नहीं है कि शहर के बाजारों में टॉयलेट बनाने का स्थान नहीं है. लेकिन हकीकत ये है कि प्रशासन इसे लेकर गंभीर नहीं है. आश्चर्य की बात तो यह है कि जयपुर एक तरफ तो वर्ल्ड हेरिटेज के तमगे के साथ स्मार्ट होता जा रहा है. लेकिन यहां के बाजार और इन बाजारों में आने वाले पर्यटक और खरीददार खासकर महिलाएं आज भी मूलभूत सुविधाओं की राह ताक रहे हैं.

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