जयपुर. प्रदेश में जब करीब 2 साल पहले कोरोना के मामले सामने आने लगे तब लॉकडाउन लगाया गया और इस दौरान इंटरनेट, व्यवसाय, शिक्षा संस्थान, मनोरंजन और सूचनाओं के आदान-प्रदान का एकमात्र साधन रहा. कोरोना के दौरान बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन के माध्यम से होने लगी और धीरे-धीरे बच्चों को इंटरनेट की लत लगने लगी और इंटरनेट के माध्यम से बच्चे इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर का भी शिकार होने लगे. अब इस तरह से डिसऑर्डर के मामलों में एकाएक बढ़ोतरी (Increase in Internet gaming disorder patients) हुई है.
चिकित्सकों की मानें तो कोरोना के दौरान बच्चे इंटरनेट का उपयोग अधिक करने लगे, तो इंटरनेट गेमिंग ने भी बच्चों को अपनी जकड़ में ले लिया. हाल ही में इंटरनेट गेमिंग के कारण हुई घटनाएं पेरेंट्स और समाज के लिए एक चुनौती के रूप में सामने आ रही हैं. मामले को लेकर ईएसआई मॉडल हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अखिलेश जैन का कहना है कि कोरोना काल के दौरान बच्चों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के मामले सामने आ रहे हैं. कुछ दिनों से गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार बच्चों की संख्या में भी अचानक वृद्धि हुई है.
क्या हैं लक्षण...
डॉक्टर जैन का कहना है कि जो बच्चा इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाता है, वह अधिकांश समय सिर्फ गेमिंग के बारे में ही सोचता है. उसके व्यवहार में अचानक बदलाव आने लगता है और छोटी-छोटी बातों पर बच्चा गुस्सा करना शुरू कर देता है. इस दौरान बच्चा आउटडोर गेम्स खेलना छोड़ देता है. ऐसे बच्चों में हाइपरएक्टिविटी और रोमांच के प्रति लगाव हो जाता है और वह इन गेम्स से भावनात्मक रूप से भी जुड़ जाता है. इसके बाद समस्याएं सामने आना शुरू होती हैं.
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कुछ समय पहले नागौर के लाडनूं में एक ऐसा ही मामला सामने आया था. इसमें इंटरनेट गेम्स की उधारी चुकाने के लिए एक 16 साल के नाबालिग ने अपने चचेरे भाई का गला दबाकर हत्या कर दी थी. इसके अलावा जयपुर में कई ऐसे मामले सामने आए थे, जहां परिजनों ने ऑनलाइन गेम्स खेलने से बच्चों को रोका तो उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की. इसके अलावा इंटरनेट गेम्स के चक्कर में बच्चों के घर में चोरी के मामले भी सामने आए थे.
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चिकित्सकीय सलाह जरूरी...
डॉ. जैन का कहना है कि हाल ही में उनके सामने बच्चों में गेमिंग डिसऑर्डर के कुछ मामले सामने आए हैं. हालांकि, सीधे तौर पर बच्चों की यह लत छुड़वाना काफी मुश्किल है, लेकिन चिकित्सकीय सलाह ली जाए तो बच्चों को इस डिसऑर्डर से बाहर निकाला जा सकता है. ऐसे मामले कोरोना के दौरान सबसे ज्यादा सामने आने लगे हैं.