जयपुर. चिर-परिचित गालीबाजी शैली में ढूंढाड़ भाषा का इस्तेमाल करते हुए अशोक पांड्या ने एक गीत तैयार किया है. गीत में मनोरंजन तो है ही, लेकिन इसके साथ छुपा है एक संदेश. जो विपदा की इस घड़ी में लोगों में एक जोश भरता है, जिससे कोराना की यह जंग जीती जा सके.
गीत के बोल 'काम काज सब छुटया सगला बैठया खावे छे, कोरोनो को जीव ये हाबु...घणा सतावे छै' है, जिसे मौजूदा परिस्थितियों को कुछ इस तरह संजोया गया है कि जो सुने सुनता रह जाए.'
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अशोक पांड्या ऐसे तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं. लेकिन उससे ज्यादा इनकी पहचान इनके गीत-संगीत से जुड़ी कला से है. पांड्या का कहना है कि संकट की इस घड़ी में उनके गीत से लोगों का मनोरंजन भी होगा और सकारात्मक संदेश हो जाएगा.
बहरहाल, राजस्थान की अपनी सांस्कृतिक विरासत है और इसमें लोक-संगीत का अपना स्थान है. अब जब लॉकडाउन के चलते लोग घरों में हैं तो इस शैली का मनोरंजन और जागरुकता संबंधित संदेश देने में भी बखूबी इस्तेमाल भी किया जा रहा है.