जयपुर. राज्यपाल कलराज मिश्र के विधानसभा सत्र 14 अगस्त से बुलाए जाने के बाद अब हर किसी की नजर हाईकोर्ट और उसके बाद विधानसभा पर है कि उसमें संभावित फ्लोर टेस्ट में गहलोत सरकार कैसे बहुमत साबित करते हुए अपनी सरकार बचाएगी. अगर आज की स्थिति बिना किसी विवाद के देखी जाए तो सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायकों के वोट पर निर्भर हो गई है. अगर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी राज्यसभा चुनाव की तरह तटस्थ रह जाती है और किसी को वोट नहीं करती है तो ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार 99 के फेर में फंस जाएगी.
हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक बलवान पूनिया ने साफ तौर पर कहा है कि वह कांग्रेस को वोट करेंगे. लेकिन अगर पार्टी व्हिप जारी कर देती है तो उन्हें उस व्हिप को मानना पड़ेगा. नहीं तो उनकी भी सदस्यता पर खतरा आ सकता है. आइए आपको बताते हैं कि विधानसभा सत्र में वह तीन कौन से तरीके हैं, जिनमें सरकार का रहना और जाना निश्चित होगा.
1. आज की स्थिति में कम्युनिस्ट पार्टी तय करेगी कांग्रेस का भविष्य, नहीं तो 99 के फेर में फंस जाएगी गहलोत सरकार
वर्तमान स्थिति की बात की जाए तो अभी कांग्रेस पार्टी के 19 विधायक बगावत कर रहे हैं तो वहीं तीन निर्दलीय विधायक उनके साथ बताए जा रहे हैं. इसी तरह से मास्टर भंवरलाल मेघवाल इतने ज्यादा बीमार हैं कि वे वोट देने नहीं आएंगे. वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अब तक पत्ते नहीं खोले हैं और तटस्थ रहने की बात की है. ऐसे में अगर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों वोट को हटा दिया जाए तो स्पीकर सीपी जोशी समेत कांग्रेस पार्टी के 99 वोट रह जाएंगे. जबकि बहुमत का आंकड़ा 101 है. सीपी जोशी उसी स्थिति में वोट कर सकते हैं, जब आंकड़ा बराबर हो. ऐसी स्थिति में गहलोत सरकार फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाएगी.
अगर कम्युनिस्ट पार्टी वोटिंग में न आए तो बच सकती है गहलोत सरकार?
कम्युनिस्ट पार्टी अगर कांग्रेस पार्टी को वोट न दे तो भी गहलोत सरकार बच सकती है. बशर्ते कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक वोटिंग प्रक्रिया से Absent रह जाएं. ऐसी स्थिति में सदन में वोटों की संख्या 197 रह जाएगी, क्योंकि एक वोट मास्टर भंवरलाल का कम होगा और दो वोट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 99 वोट रह जाएगा जो कांग्रेस पार्टी के पास मौजूद हैं. ऐसे में अब वर्तमान स्थिति में गहलोत सरकार कम्युनिस्ट पार्टी के रवैए पर ही सरकार बचाने की स्थिति में होगी. हालांकि यह साफ है कि भले ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस को वोट न देकर अब्सेंट रह जाए, लेकिन वह भाजपा को मतदान कर सहयोग नहीं देंगे.
2. हाईकोर्ट ने अगर बसपा विधायकों के वोटिंग राइट को किया फ्रिज तो सरकार बहुमत के आंकड़े से रह जाएगी पीछे
सरकार बहुमत पास कर सकेगी या नहीं बहुत कुछ तय करता है हाईकोर्ट में चल रही बसपा विधायकों के कांग्रेस पार्टी में विलय को चुनौती देने वाली याचिका पर. अगर हाईकोर्ट बसपा के विधायकों के इस विलय को गलत मानती है या फिर कोर्ट में जब तक मामला चले तब तक बसपा विधायकों को वोटिंग से महरूम रखते हुए उनके वोटिंग राइट को फ्रीज करती है तो फिर कांग्रेस सरकार गहरे संकट में आ जाएगी. क्योंकि ऐसे में सदस्यों की संख्या घटकर 193 रह जाएगी. क्योंकि 6 वोट बसपा के कम होंगे और एक वोट मास्टर भंवर लाल मेघवाल का.
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ऐसे में कांग्रेस पार्टी को बहुमत के लिए 97 वोट की जरूरत होगी. जबकि कांग्रेस के पास स्पीकर सीपी जोशी समेत संख्या 96 होती है. ऐसे में गहलोत सरकार मुसीबत में फंस जाएगी और कम्युनिस्ट पार्टी के कांग्रेस को वोट करने के बावजूद भी वह सरकार नहीं बचा पाएगी.
3. अगर स्पीकर 14 अगस्त को कांग्रेस पार्टी के व्हीप को मानते हुए 19 विधायकों के वोटिंग राइट नोटिस का जवाब देने तक फ्रीज करते हैं तो आसानी से बच जाएगी कांग्रेस सरकार
हर किसी की नजर जिस तरीके से हाईकोर्ट पर है, उसी तरीके से स्पीकर सीपी जोशी के ऊपर भी है. अगर हाईकोर्ट की ओर से यह कहा जाता है कि बसपा के विधायकों के वोटिंग राइट को निर्णय सुनाए जाने तक फ्रिज किया जाता है तो फिर स्पीकर सीपी जोशी पर ही यह निर्भर करेगा कि सरकार कैसे बचे. ऐसी स्थिति में कांग्रेस पार्टी की ओर से 14 अगस्त की सुबह कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई जाएगी और उसका बकायदा व्हिप भी जारी किया जाएगा.
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ऐसे में अगर 19 विधायक विधानसभा में नहीं आते हैं तो फिर उनको नए सिरे से नोटिस जारी किए जाएंगे और अगर स्पीकर चाहे तो इन 19 विधायकों के मतदान करने के अधिकार को तब तक फ्रीज कर सकते हैं. जब तक की नोटिस का जवाब इन विधायकों के द्वारा नहीं किया जाता है या फिर तीन दिन का फिर समय दिया जाएगा और वोटिंग भी 3 दिन बाद ही रखी जाएगी.
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ऐसे में अगर नोटिस का जवाब स्पीकर को नहीं मिलता है तो पहले 19 विधायकों की सदस्यता समाप्त की जाएगी. उसके बाद बहुमत साबित किया जाएगा. इन दोनों ही स्थितियों में राजस्थान में विधानसभा में सदस्यों की संख्या 174 रह जाएगी और बहुमत का आंकड़ा घटकर 87 रह जाएगा. लेकिन ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास 95 वोट होंगे, जो बहुमत से कहीं ज्यादा होंगे. ऐसे में अब कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी की सरकार प्रदेश में अपना बहुमत साबित करेगी या नहीं. इसका फैसला राजस्थान की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, हाईकोर्ट और स्पीकर सीपी जोशी ही करेंगे.