जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख स्वास्थ्य सचिव और प्रमुख सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव सहित कार्मिक सचिव को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस के जरिए पूछा गया है कि मेंटल हेल्थ केयर एक्ट- 2017 के प्रावधानों को अब तक लागू क्यों नहीं किया गया है. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने शालिनी श्योराण की जनहित याचिका पर दिए.
जनहित याचिका में कहा गया कि वर्ष 2017 में मेंटल हेल्थ केयर कानून बनाया गया था, जिसे 29 मई 2018 को लागू किया गया. लेकिन इस कानून के क्रियान्वयन के लिए अब तक नियम ही नहीं बने हैं. वहीं, कानून में मानसिक रूप से बीमारों के विभिन्न अधिकारों की बात कही गई है, जिसके तहत उन्हें इलाज का अधिकार, गरिमा पूर्ण जीवन का अधिकार, नियमित हेल्थ प्रोग्राम उपलब्ध कराने का अधिकार सहित अन्य कल्याणकारी अधिकार मिले हुए हैं. लेकिन नियमों के अभाव में अधिनियम लागू नहीं हो पा रहा है.
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याचिका में कहा गया कि कानून के प्रावधानों को लागू करने के लिए अधिनियम की धारा 45 में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के गठन का प्रावधान है. वहीं, मानसिक बीमार को दूसरी जगह रेफर करने के लिए जिलेवार मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है. इसके बावजूद राज्य सरकार ने अब तक न तो प्राधिकरण का गठन किया और ना हीं रिव्यू बोर्ड का कोई अस्तित्व है.
याचिका में डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि देश की 7 फीसदी से अधिक जनसंख्या किसी ना किसी मानसिक बीमारी का सामना कर रही है. वहीं, विश्व के कुल मानसिक बीमारों में 15 फीसदी देश में है. याचिका में गुहार की गई कि कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नियम बनाया जाए और जल्द से जल्द प्राधिकरण और रिव्यू बोर्ड को गठित किया जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब किया है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम- 2013 के तहत पात्र लोगों तक सामग्री वितरण को लेकर दायर याचिका
राजस्थान हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम- 2013 के तहत पात्र लोगों तक सामग्री वितरण को लेकर दायर याचिका में राज्य सरकार को पक्षकार बना लिया है. इसके साथ ही अदालत ने 10 दिन में राज्य सरकार को बताने को कहा है कि कानून के तहत पात्र लोगों तक खाद्य सामग्री वितरण के लिए क्या किया जा रहा है. यहा आदेश मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने हिमाक्षी और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और एफसीआई की ओर से अधिवक्ता इंद्रेश शर्मा ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि केंद्र की योजना का राज्य में प्रभावी क्रियान्वयन का दायित्व राज्य सरकार का होता है. जबकि मामले में राज्य सरकार को पक्षकार ही नहीं बनाया गया है. वहीं, केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि सभी पात्र लोगों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए भेजी जा रही है.
याचिका में कहा गया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा पात्र लोगों की गणना वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर ही की जा रही है, जिसके चलते पिछले 9 साल में पात्र लोगों की सूची में शामिल हुए अन्य लोगों तक खाद्य सामग्री नहीं पहुंच रही है. इस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने मामले में राज्य सरकार को पक्षकार बनाते हुए 10 दिन में जवाब पेश करने को कहा है.
सफाई व्यवस्था को लेकर 8 साल पहले दिए गए 16 बिंदुओं पर दिशा-निर्देश पर क्या किया गया...
राजस्थान हाईकोर्ट ने नगर निगम से पूछा है कि शहर की सफाई व्यवस्था के संबंध में 8 साल पहले 16 बिंदुओं पर दिए दिशा निर्देशों की पालना के लिए क्या किया गया है? मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश शहर को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने के मामले में लिए स्वयं प्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए. वहीं दूसरी ओर मामले में विधायक कालीचरण सराफ ने अवमानना के मामले में अदालत से माफी मांग ली है.
सुनवाई के दौरान न्याय मित्र विमल चौधरी ने प्रार्थना पत्र दायर कर कहा कि शहर में कचरा पात्रों का अभाव है, जिसके चलते जगह-जगह कचरे के ढेर पड़े हुए हैं, जिनमें आवारा पशु मुंह मारते फिरते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि वे इसकी वास्तविकता जानने के लिए कमिश्नर नियुक्त कर देते हैं.
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वहीं, न्याय मित्र की ओर से कहा गया कि 31 मई 2012 को हाईकोर्ट ने शहर में सिंगल टायर सफाई व्यवस्था, हर वार्ड में कम से कम 100 सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति, कार्रवाई के लिए चार मजिस्ट्रेट नियुक्त करने और डोर टू डोर कचरा एकत्रित करने सहित कुल 16 निर्देश दे रखे हैं. इन निर्देशों की पालना आज तक नहीं हुई है. इस पर कोर्ट ने नगर निगम से पूछा कि इन निर्देशों की पालना के लिए क्या किया जा रहा है.
साथ ही आवारा पशुओं को पकड़ने और अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में बाधा पहुंचाने के मामले में विधायक कालीचरण सराफ बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि उनका कभी भी अदालती आदेश की अवमानना का मानस नहीं रहा है. उनकी ओर से निगम कर्मचारियों के काम में भी बाधा नहीं पहुंचाई गई थी. जबकी मामले में विधायक रफीक खान की ओर से जवाब पेश करने के लिए समय मांगा गया.
गौरतलब है कि अदालती आदेश पर अतिक्रमण हटाने और आवारा पशुओं को पकड़ने के दौरान विधायक रफीक खान और कालीचरण सराफ ने विरोध दर्ज कराया था. इस पर न्याय मित्र विमल चौधरी की ओर से दोनों के खिलाफ प्रार्थना पत्र पेश कर अवमानना की कार्रवाई करने की गुहार की गई है.
जेल के अंदर रहे निगरानी तो बाहर भी कम होंगे अपराध- हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने जेल में कैदियों के पास आए दिन मोबाइल मिलने के मामले में डीजी जेल को कहा है कि जेल में बंद कैदी मोबाइल फोन के जरिए जेल के बाहर अपनी गैंग चला रहे हैं। यदि इन कैदियों पर जेल में पर्याप्त निगरानी रखी जाए तो बाहर अपराध भी कम होंगे.
अदालत ने कहा कि जेल कर्मी कैदियों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. इसलिए उनका नियमित अंतराल पर तबादला होते रहना चाहिए. वहीं अदालत ने डीजी जेल से पूछा है कि मामले में अदालत की ओर से पूर्व में 45 बिंदुओं पर दिए निर्देशों की पालना के लिए क्या किया गया है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता ने यह आदेश प्रकरण में लिए प्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान डीजी जेल वीसी के जरिए अदालत से जुड़े. अदालत ने डीजी को कहा कि जेल में आए दिन मोबाइल मिल रहे हैं. कैदी आए दिन ना केवल शराब पी रहे हैं, बल्कि उनकी फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं. वहीं डीजी जेल की ओर से शपथ पत्र पेश कर कहा गया कि वार्डन के 527 पदों पर भर्ती के लिए राज्य सरकार को प्रशासनिक स्वीकृति के लिए मामला भेजा गया है. इसके अलावा जेलों की सुरक्षा के लिए विशेष बटालियन का गठन भी किया गया है. वहीं मोबाइल और मादक पदार्थों की बरामदगी के लिए जेलों में सघन तलाशी अभियान चलाया गया है. ऐसी घटनाओं में शामिल जेल स्टाफ पर भी कार्रवाई की गई है. शपथ पत्र में कहा गया कि जयपुर केंद्रीय कारागार के लिए चार स्निफर डॉग से भी खरीदे जाएंगे. शपथ पत्र को रिकॉर्ड पर लेते हुए खंडपीठ ने पूर्व में दिए दिशा निर्देशों की पालना रिपोर्ट पेश करने को कहा है.