जयपुर. प्रदेश में संस्कृत शिक्षा के हाल बेहाल है. संस्कृत कॉलेजों में आधे से ज्यादा प्रिंसिपल और प्रोफेसरों के पद रिक्त चल रहे है. प्रदेश के 11 संस्कृत आचार्य कॉलेजों में से 7 कॉलेज ऐसे है, जहां ना तो प्रिंसिपल है और ना ही वहां बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई प्रोफेसर.
आचार्य स्तर के कॉलेजों में संस्कृत के कई विषयों पर प्रोफेसर के पदों को ही समाप्त कर दिया गया है. शास्त्रीय स्तर के कॉलेजों की हालत भी ठीक नहीं है. यहां भी संस्कृत शास्त्री कॉलेजों में से 13 में प्रिंसिपल के पद खाली पड़े है. प्रदेश में संस्कृत शिक्षा का बजट 400 करोड़ रुपए का बताया जाता है. इसके बावजूद हालात सुधर नहीं पा रहे है.
संस्कृत कॉलेजों और स्कूलों की संख्या
- प्रदेश में आचार्य संस्कृत कॉलेज (स्नातकोत्तर) - 11
- शास्त्री कॉलेज (स्नातक) - 19
- वरिष्ठ उपाध्याय स्कूल (12वीं तक) - 142
- प्रवेशिका स्कूल (दसवीं तक) - 229
- उच्च प्राथमिक स्कूल (आठवीं तक) - 969
- प्राथमिक स्कूल (पांचवी तक) - 425
- कॉलेजों की स्थिति
- भरतपुर, कोटा, अजमेर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चिराना और जोधपुर के संस्कृत आचार्य कॉलेजों में प्रिंसिपल और प्रोफेसर नहीं है.
- जयपुर के संस्कृत आचार्य कॉलेज में प्रिंसिपल और एक प्रोफेसर है.
- सीकर मनोहरपुर के संस्कृत आचार्य कॉलेज में प्रिंसिपल और 2-2 प्रोफेसर है.
- बीकानेर के संस्कृत आचार्य कॉलेज में प्रिंसिपल और 3 प्रोसेसर है.
व्याख्याताओं के 112 पद है रिक्त
संस्कृत आचार्य कॉलेजों में शास्त्री स्तर की पढ़ाई कराई जाती है. इनके अलावा प्रदेश में 19 शास्त्री स्तर के संस्कृत कॉलेज है. जिनमें छह कॉलेजों में ही प्रिंसिपल काम कर रहे है. शेष 13 में प्रिंसिपल का पद खाली है. वहीं व्याख्याताओं के 185 पद स्वीकृत है. इनमें से महज 73 पदों पर ही व्याख्याता कार्यरत है. जबकि 12 पद खाली पड़े है.
इन पदों को किया जा चुका है समाप्त
व्याकरण शास्त्र, साहित्य शास्त्र, ज्योतिष (गणित), ज्योतिष (फलित), धर्मशास्त्र, न्याय दर्शन, सामान्य दर्शन, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, शुक्ल यजुर्वेद, पुराणेतिहास
15 साल से नहीं हुई भर्ती, पद है रिक्त
संस्कृत महाविद्यालय शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष डॉ. कमल सैनी ने बताया कि 2005 तक तो डीपीसी से पदों को भरा जा रहा था. लेकिन 2005 के बाद से संस्कृत महाविद्यालयों में एक भी भर्ती नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में पद रिक्त है और डीपीसी से पद भरे नहीं जा सकते. क्योंकि, यूजीसी के नए नियम लागू हो चुके है.
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उन्होंने कहा कि संस्कृत स्कूलों के नियम में 2015 से बदलाव किए जा चुके है, लेकिन कॉलेज शिक्षा में अभी तक बदलाव नहीं किए गए है. वहीं पदनाम में भी बदलाव नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा है.
उधर, संस्कृत शिक्षा शासन सचिव प्रदीप कुमार बोरड़ ने बताया कि स्कूलों और कॉलेजों को साथ चलाया जा रहा है तो कई नियमों में बदलाव होने के चलते ये समस्या आ रही थी. लेकिन, अब डीओपी और वित्त विभाग ने सभी नियमों को साफ कर दिया है और जल्द ही कैबिनेट की मुहर लग जाएगी. जिसके बाद कॉलेज शिक्षा में जल्द ही प्रमोशन और नई भर्तियां संभव हो सकेंगी.