जयपुर. रेत के धोरों प्रदेश यानी राजस्थान में पानी की कमी किसी से छुपी हुई नहीं है. आमजन तो पेयजल की समस्या से दो-चार होता ही है, लेकिन किसानों के लिए यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है.
मानसून में जहां बरसात के पानी धरती की प्यास बुझाने के साथ ही अन्नदाता की फसलों को भी नया जीवन देता है. लेकिन सर्दी के मौसम में किसान को अपने फसलों की बुवाई से लेकर सिंचाई तक के लिए पूरी तरह बोरिंग या ट्यूबवेल के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है. पानी बोरिंग के जरिए इस्तेमाल करना है तो बिजली भी चाहिए लेकिन मजबूरी यह है कि डिस्कॉम कृषि कनेक्शन में बिजली दे तो रहा है, लेकिन 6 घंटे के अलग-अलग ब्लॉक में कोई इसमें रात का ब्लॉक भी शामिल है.ऐसे में किसान कड़ाके की ठंड वाली रातें खेतों में बिताने को मजबूर है.
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ग्रामीण इलाकों में कृषि कनेक्शन में दिन-रात की बिजली के अलग ब्लॉक
ग्रामीण इलाकों में कृषि कनेक्शन में अलग-अलग ब्लॉक में बिजली दी जाती है. जबकि शहरी सीमा में जारी किए गए कृषि कनेक्शन में यथावत बिजली मिलती है, लेकिन जो बिजली दी जाती है वह ट्रिपिंग के साथ यह बात हम नहीं बल्कि शहरी क्षेत्र में रहने वाले किसान कहते हैं वही अन्नदाता का यह भी कहना है कि अब कुएं और बोरिंग में भूमिगत जल स्तर काफी नीचे पहुंच गया है.
लिहाजा बोरिंग के जरिए सिंचाई के पानी का इस्तेमाल उन्हें काफी महंगा पड़ता है, हालांकि सरकार कृषि कनेक्शन पर किसानों को भरपूर अनुदान देती है और कई सालों से कृषि कनेक्शन की भी नहीं बढ़ाई गई. लेकिन किसान की लागत समय के साथ बढ़ती जा रही है क्योंकि पहले जब भूमिगत जलस्तर अच्छा था तब कम बिजली में अच्छी सिंचाई हो जाती थी. लेकिन भूमिगत जलस्तर गिरने से सिंचाई में भी दिक्कत आती है और बिजली का इस्तेमाल भी पहले की तुलना में ज्यादा होता है.
ऊर्जा मंत्री ने कहा- तीन साल में कमी दूर करेंगे
ऐसा नहीं है कि सरकार को अन्य नेताओं की इस परेशानी का ज्ञान नहीं है, पूरी जानकारी भी है. इसके समाधान के लिए सरकार की ओर से प्रयास भी किए जा रहे हैं खुद ऊर्जा मंत्री डॉ बीडी कल्ला बताते हैं कि वर्तमान में अलग-अलग ब्लॉक में कृषि बिजली दी जा रही है, लेकिन हमारा प्रयास है कि कृषि सप्लाई का फीडर अलग किया जाए. कुछ जिलों में इसकी शुरुआत कर दी गई है और आने वाले 3 साल के भीतर पूरे प्रदेश में यह व्यवस्था कर दी जाएगी, तब किसानों को दिन में भी पूरी बिजली मिल पाएगी.
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उत्पादन और लागत पर भी विपरीत असर
पानी की कमी के चलते बोरिंग पर निर्भरता से किसान को सिंचाई के लिए ज्यादा बिजली की आवश्यकता होती है. ऐसे में बिजली का बिल भी ज्यादा आता है. यदि भरपूर पानी नहीं मिल पाए तो उत्पादन भी कम होता है मतलब इस मौसम में किसानों की उपज की लागत ज्यादा ही आती है. हालांकि अलग-अलग स्थान पर भूमिगत जल स्तर की उपलब्धता भिन्न होती है कहीं पानी अच्छी मात्रा में उपलब्ध होता है. कहीं कम है उसके मुताबिक ही फसल की लागत का आंकलन किसान करता है. फिलहाल ऊर्जा मंत्री के बयानों पर गौर किया जाए तो यह माना जा सकता है कि सरकार जल्द से जल्द कृषि कनेक्शन के फीडर अलग करने जा रही है और यदि यह हुआ और अक्षय ऊर्जा यानी सौर ऊर्जा के माध्यम से किसानों को बिजली उपलब्ध कराई गई तो सरकार पर भी सब्सिडी का भार कम आएगा. किसानों को भी दिन में सिंचाई के लिए भरपूर बिजली मिल पाएगी.