जयपुर. परिवारवाद की परिभाषा सुविधानुसार विभिन्न दल बदलते रहते हैं. जड़ें गहरी हैं. कुछ अपनी तो कुछ बेगानी पार्टी की शोभा बढ़ाते हैं (Political Families Of Rajasthan). प्रदेश में कुछ उदाहरण तो ऐसे भी हैं ,जिसमें परिवार के सदस्य ही आपस में चुनाव लड़ते रहे हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा राजस्थान के राज परिवारों से आते हैं. ऐसे दिग्गजों की कमी नहीं जो अपने जीवन काल में ही दूसरी पार्टी में शिफ्ट हुए या फिर उनके परिवार का कोई मेंबर दूसरी पार्टी में चला गया. अब इसे भले ही संपत्ति बचाने के लिए सत्ता के साथ रहने का फार्मूला समझा जाए या फिर सत्ता की आदत! लेकिन इक्का-दुक्का को छोड़कर ज्यादातर राज परिवारों ने सत्ता के साथ संबंध बनाए रखा.
1. जयपुर राजपरिवार की गायत्री देवी -भवानी सिंह- दीया कुमारी: जयपुर राजपरिवार की पूर्व राजमाता गायत्री देवी स्वतंत्रता पार्टी से जयपुर लोकसभा सीट की तीन बार सांसद बनीं तो उनके सौतेले बेटे जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह कांग्रेस के टिकट पर जयपुर से चुनाव लड़े. हालांकि उन्हें चुनाव में जीत नहीं मिली, तो वहीं जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह की बेटी दीया कुमारी भाजपा के टिकट पर पहले विधायक बनी और अब वर्तमान में राजसमंद से सांसद हैं. खास बात यह है कि जिन गायत्री देवी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़े और जीते, उन्हीं गायत्री देवी के सौतेले बेटे भवानी सिंह ने उसी कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा, तो वही जो भवानी सिंह भाजपा के सामने चुनाव हारे उनकी बेटी अब उसी भाजपा से चुनाव लड़ती हैं.
2. अलवर राजपरिवार महारानी महेंद्र कुमारी और भंवर जितेंद्र सिंह: अलवर राज परिवार की पूर्व महारानी महेंद्र कुमारी भाजपा से सांसद रहीं (powerful political Family Of Rajasthan). फिर उन्होंने साल 1999 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. अब उनके बेटे भंवर जितेंद्र सिंह कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं. भंवर जितेंद्र कांग्रेस पार्टी से विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं जिन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था.
3. नाथूराम मिर्धा-भानु प्रकाश मिर्धा-ज्योति मिर्धा: राजस्थान की राजनीति में मिर्धा परिवार की नागौर में पकड़ किसी से छिपी नहीं है. इनमें भी नाथूराम मिर्धा कांग्रेस और जनता दल के सांसद रहे तो उनके बेटे भानु प्रकाश मिर्धा भारतीय जनता पार्टी से नागौर के लोकसभा उपचुनाव में सांसद बने. लेकिन मिर्धा परिवार में भानु प्रकाश मिर्धा की भतीजी ज्योति मिर्धा ने फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया और वो न केवल कांग्रेस से नागौर लोकसभा सांसद बनीं बल्कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल हैं.
पढ़ें-राजस्थान में राज परिवारों का सियासी सफर : अवसर के साथ रियासतें बदलती रहीं सियासत...
4. जसवंत सिंह और मानवेन्द्र सिंह: देश के पूर्व वित्त मंत्री रहे जसवंत सिंह भाजपा से 5 बार राज्यसभा और 4 बार राज्यसभा के सांसद रहे. उनके नक्शे कदम बेटे मानवेंद्र सिंह भी चले और भाजपा से एक बार सांसद और एक बार विधायक बने. लेकिन साल 2014 में जसवंत सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने पर उन्होंने भाजपा विधायक होते हुए भी अपने पिता का साथ दिया, जिसके चलते उन्हें भाजपा से निष्कासित किया गया. साल 2017 में मानवेंद्र सिंह ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन थामा और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ झालावाड़ से चुनाव लड़े, हालांकि वह चुनाव हारे लेकिन आज मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल हैं.
5. भरतपुर राज परिवार- मानसिंह द्वितीय, विश्वेंद्र सिंह ,कृष्णेंद्र कौर दीपा: भरतपुर के पूर्व महाराजा मानसिंह 1952 से 1984 तक निर्दलीय सांसद बने तो उनकी बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा भाजपा सरकार में मंत्री भी रहे. भरतपुर के पूर्व महाराज विश्वेंद्र सिंह साल 1989 में जनता दल के टिकट पर सांसद बने. उसके बाद 1999 और 2004 में भी भाजपा के सांसद बने, लेकिन साल 2008 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. हालांकि 2008 में विश्वेंद्र सिंह चुनाव हार गए. 2013 और 2018 में वह कांग्रेस के विधायक बने और वर्तमान में विश्वेंद्र सिंह गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री है तो वही विश्वेंद्र सिंह की चचेरी बहन कृष्णेंद्र कौर दीपा भाजपा में हैं. वो भाजपा सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं. विश्वेंद्र सिंह की पत्नी भी भाजपा सांसद रह चुकी हैं.
6. रामदेव महरिया-सुभाष महरिया: कांग्रेस पार्टी के सीकर के कद्दावर नेता रामदेव महरिया राजस्थान सरकार में कांग्रेस के मंत्री रहे (Political Families Of Rajasthan). उनके भतीजे सुभाष महरिया ने भाजपा का दामन थामा और वह तीन बार भाजपा के सांसद रहे और केंद्रीय मंत्री भी बने. हालांकि साल 2016 में सुभाष महरिया ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और वर्तमान में वह कांग्रेस पार्टी में ही हैं लेकिन यह साथ कब तक रहेगा इस पर हमेशा प्रश्नचिन्ह रहता है.
7.राम रघुनाथ चौधरी: राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता रहे, वह तीन बार विधायक और दो बार सांसद बने लेकिन उनके बेटे अजय सिंह किलक ने भाजपा का दामन थामा. वह पूर्वर्ती वसुंधरा सरकार में मंत्री भी बने. वहीं राम रघुनाथ चौधरी की बेटी बिंदु चौधरी भी भाजपा की जिला प्रमुख बनीं. अब बिंदु चौधरी ने वापस कांग्रेस का दामन थाम लिया है.
8. नमोनारायन मीणा-हरीश मीना: नमो नारायण मीणा और हरीश मीणा सगे भाई हैं. लेकिन साल 2014 में दौसा लोकसभा से कांग्रेस पार्टी के पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे ,नमो नारायण मीणा के सामने उनके भाई हरीश मीणा ने ही भाजपा से ताल ठोक दी. हरीश मीणा ने राजनीति में अपने से वरिष्ठ रहे भाई को इस चुनाव में हरा भी दिया ,हालांकि हरीश मीणा ने साल 2017 में भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया और वर्तमान में वह कांग्रेस के विधायक हैं.
9. रामदेव चौधरी और हनुमान बेनीवाल: रामदेव चौधरी लोकदल के विधायक रहे तो उनके बेटे हनुमान बेनीवाल पहले भाजपा के विधायक बने और अब उन्होंने अपनी खुद की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर लिया है. वर्तमान में हनुमान बेनीवाल आरएलपी के सांसद हैं.
10. गौरी पूनिया और उषा पूनिया: गौरी पूनिया कांग्रेस पार्टी की कई बार विधायक बनी तो वही गोरी पूनिया की पुत्रवधू उषा पूनिया भाजपा से विधायक बनीं और वह भाजपा में वसुंधरा राजे के कार्यकाल के दौरान पर्यटन मंत्री भी रहीं. हालांकि अभी उषा पुनिया कांग्रेस के साथ जुड़ गई हैं.
11. जोधपुर राज परिवार कृष्णा कुमारी- गज सिंह और चंद्रेश कुमारी: जोधपुर राज परिवार की पूर्व राजमाता कृष्णा कुमारी निर्दलीय जोधपुर की सांसद रहीं, जिन्होंने कांग्रेस को चुनाव हराया. उनके बेटे जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह ने राजनीति से दूरी रखी. साल 1990 में राज्यसभा से सांसद बने. गज सिंह की बहन चंद्रेश कुमारी कटोच न केवल जोधपुर से सांसद बनीं बल्कि केंद्र में मंत्री भी बनीं.
12. राजेंद्र गुढ़ा और रणवीर गुढ़ा: राजेंद्र गुढ़ा कांग्रेस सरकार में दो बार मंत्री रह चुके हैं. दोनों बार उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल होकर मंत्री बन गए. राजेंद्र गुढ़ा के छोटे भाई रणवीर गुढ़ा भी लोक जनशक्ति पार्टी से विधायक रह चुके हैं.
13. विनोद लीलावली और कृष्ण कड़वा: कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री विनोद कुमार लीलावाली कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उनके छोटे भाई भाजपा के पूर्व विधायक कृष्ण कुमार कड़वा हैं. विनोद कुमार लीलावली हनुमानगढ़ से विधायक बने तो वहीं कृष्ण कड़वा संगरिया से भाजपा के टिकट पर विधायक रह चुके हैं. कृष्ण कड़वा और विनोद लीलावली हनुमानगढ़ से पूर्व विधायक रहे चौधरी आत्मा राम के बेटे हैं और कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी बलराम जाखड़ के भांजे हैं.
14. बृज सुंदर शर्मा और ममता शर्मा: कांग्रेस के हाड़ौती के दिग्गज नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री बृज सुंदर शर्मा सात बार विधायक रहे, तो वही बृज सुंदर शर्मा की पुत्रवधू ममता शर्मा भी कांग्रेस की बड़ी नेता रहीं. साल 2017 में ममता शर्मा ने कांग्रेस छोड़ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वो असफल रहीं.
15. कोटा राज परिवार इज्यराज सिंह और कल्पना राजे: कोटा राज परिवार के पूर्व महाराज इज्यराज सिंह कोटा के सांसद रहे (Royal Families Of Rajasthan in Politics). साल 2017 में उन्होंने भी कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने इज्यराज सिंह की पत्नी कल्पना राजे को टिकट दिया जो अभी भाजपा से विधायक हैं.
16. ओंकार सिंह खींवसर और गजेंद्र सिंह खींवसर: लोहावट से पूर्व विधायक और वसुंधरा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गजेंद्र सिंह खींवसर के पिता ओंकार सिंह खींवसर कांग्रेस पार्टी से विधायक थे. ओंकार सिंह के बेटे गजेंद्र सिंह खींवसर ने भाजपा का दामन थामा और कैबिनेट मंत्री भी बने.
17. नटवर सिंह और जगत सिंह: कांग्रेस पार्टी के कवि कद्दावर नेता रहे देश के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल थे. हालांकि बाद में सोनिया गांधी से विवाद के चलते उन्होंने कांग्रेस से दूरी बना ली, यहां तक कि उनके बेटे जगत सिंह भाजपा की टिकट पर विधायक बने और वर्तमान में भी जगत सिंह भरतपुर से भाजपा के जिला प्रमुख हैं.