जयपुर. राजधानी का बगरू कस्बा इस वक्त पूरे देश में चर्चित हो रहा है. जिसका खास कारण बगरू के डॉक्टर फिरोज खान हैं, जिनका बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत प्रोफेसर पद पर चयन हुआ था. जॉइनिंग के पहले दिन ही डॉक्टर फिरोज को मुस्लिम होने के कारण विरोध का सामना करना पड़ा और इसके बाद यह विरोध पूरे देश में तालीम के बीच मजहब के नाम पर फर्क का विषय और बहस का मुद्दा बन गया.
इस बीच ईटीवी भारत बगरू में उस स्कूल पर पहुंचा, जहां फिरोज ने संस्कृत की बुनियादी तालीम हासिल की थी. स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी फिरोज के सहपाठी और पड़ोसी मिले जिन्होंने बताया कि फिरोज और उसका परिवार धर्म के लिहाज से कभी भी फर्क करने वाला नहीं बल्कि, सहिष्णुता का संदेश देने वाला था.
वह हाथ उठाकर और हाथ जोड़कर सजदा भी करते थे, भजन भी गाते थे और उसी शिद्दत से मंदिर और मस्जिद के सारे कर्तव्य भी निभाते थे. फिरोज के बारे में स्कूल के लोगों ने बताया कि वह काफी मिलनसार और दूसरों की मदद में हमेशा आगे रहने वाला था. वहीं, स्थानीय लोगों के मुताबिक फिरोज को कभी भी किसी कट्टर छवि के रूप में उन्होंने नहीं देखा.
फिरोज के दोस्तों के मुताबिक वह अच्छे तबला वादक हैं और कई बार वक्त मिलने पर वह अपने पिता के साथ भजनों में तबले से संगत भी किया करते थे. इसी तरह फिरोज के पड़ोसियों ने बताया कि मोहल्ले में हिंदू और मुस्लिम परिवार का फर्क उनको पता नहीं था.
बनारस में उठे विवाद के बाद ही यह चर्चा क्यों है यह उन लोगों को समझ नहीं आया. बगरू कस्बे के साथ-साथ उनके स्कूल में भी पूरे दिन बनारस के विश्वविद्यालय में मजहब के नाम पर उठा बहस का यह मुद्दा गरमाया हुआ था. हर कोई इस बात से परेशान था कि जब फिरोज ने पूरी प्रक्रिया को निभाकर नियुक्ति पाई है, तो फिर क्यों मजहब के नाम पर एतराज किया जा रहा है.