जयपुर. कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोकल फॉर लोकल की बात कहते हुए घरेलू उत्पादों को बढ़ावा देने की बात कही थी. उनका कहना था कि आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए लोकल प्रोडक्ट को बढ़ावा देना होगा. उन्होंने नागरिकों से अपील की थी कि लोकल के लिए वोकल भी बनें. इसके बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में लोगों ने काम शुरू कर दिया है.
देश में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार की ओर से लॉकडाउन लगाया गया था. इसके कारण लाखों लोग बेरोजगार हो गए. इस लॉकडाउन के दौरान जयपुर के दो दोस्तों ने वोकल फॉर लोकल के तहत एक पहल की है. एक और लॉकडाउन में लाखों लोगों की नौकरियां चली गई तो कई बेरोजगार हो गए, लेकिन जयपुर के श्रीकृष्ण महर्षि और रोशन वर्मा की जोड़ी ने कई लोगों को रोजगार दिया है. यहां सबसे ज्यादा दिव्यांग महिला-पुरुष अपना हुनर दिखा रहे हैं.
मजबूरी को मजबूती में बदलकर पेट पाल रहे...
एक तरफ राजधानी के फुटपाथ पर दिव्यांग रोटी मांगकर खाने को मजबूर हैं, लेकिन इसी मजबूरी को मजबूती में बदलकर कई दिव्यांग मेहनत से पेट पाल रहे हैं. दिव्यांग कारीगर कल्पना का कहना है कि लॉकडाउन से पहले वो सिलाई का काम करती थी, लेकिन कोरोना की वजह से वो काम चल नहीं सका. ऐसे में उन्होंने फील्ड चेंज कर मूर्तियों के काम का प्रशिक्षण लिया और अपने हुनर को पंख लगाया.
पढ़ें- Special: मल्टीनेशनल ब्रैंड्स और खादी, किस ओर है युवाओं का रूझान? देखें ये रिपोर्ट
दिव्यांग कारीगर कल्पना का कहना है कि इस काम के लिए उन्हें दो दोस्तों की जोड़ी हमेशा प्रेरित करती है. कल्पना ने दिव्यांगों को भी अपना संदेश देते हुए कहा कि भले ही हमारे पैर नहीं हैं, लेकिन हमारे हाथ जरूर हैं. उन्होंने कहा कि हम दोनों हाथ से मेहनत कर और कमा कर खा सकते हैं और अपना परिवार चला सकते हैं.
6 कारीगरों की टीम जुटी है...
लॉकडाउन के बाद जयपुर में एक किराए के मकान के अंदर दो दोस्तों के साथ करीब 6 कारीगरों की टीम जुटी हुई है, जिसमें सबसे ज्यादा दिव्यांग कारीगर हैं. ये कारीगर पोलिरेग्जिन से बुधा, लक्ष्मीजी, गणेशजी, दीपक सहित अन्य मूर्तियां बनाते हैं. जिनकी साइज 2 इंच से लेकर 21 इंच तक है.
पूरी नहीं कर पा रहे डिमांड
लॉकडाउन से पहले इसका मैटीरियल पूरी चाइना से इंपोर्ट होता था और अब यहां पर उपलब्ध होने लगा है, जिसका रुझान भी काफी अच्छा आ रहा है. हालांकि शुरुआत में ये सभी दिव्यांग कारीगर इस काम में कुशल नहीं थे, लेकिन इनके बुलंद हौसले और लगन से आज ये सबके लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं. यही वजह है कि मूर्तियों की डिमांड इतनी है कि पूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं.
पढ़ें- Special : स्मार्ट सिटी और बड़े-बड़े ख्वाब...यहां तो खुले में शौच करने को मजबूर लोग
स्वदेशी लोकल फॉर वोकल के जरिए ड्रेगन का सामना करने के लिए दिव्यांगों की ये टीम तैयार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का ही असर है कि ये कारीगर पिछले 4 महीनों से जुटे हैं और मूर्तियां बना रहे हैं. कारीगरों ने लोगों से अपील की है कि इस दीपावली चीन सामान का पूर्णतयः बहिष्कार करेंगे और सिर्फ लोकल फॉर वोकल से बने सामानों की खरीद करेंगे.