जयपुर. राजस्थान विधानसभा में कार्यरत अतुल पंड्या और उनकी पत्नी छाया पंड्या, जिन्हें एक प्राइवेट एनजीओ द्वारा इस बार दिव्यांग रत्न से सम्मानित किया जा रहा है. अतुल लंबे समय से विधानसभा में सेवाएं दे रहे हैं और अपने परिवार का भी बखूबी पालन पोषण करते हैं. दोपहिया वाहन में साइड व्हील लगवाकर वो ऑफिस भी जाते हैं और काम भी कर लेते हैं. यही नहीं समाज सेवा के नाते पति-पत्नी दोनों निःशुल्क एक्यूप्रेशर का उपचार भी देते हैं. लेकिन सिस्टम से नाखुश हैं. उनकी मानें तो सरकारी नौकरियों में दिव्यांगजनों का जो आरक्षित कोटा है, उसके अनुसार उन्हें लाभ नहीं मिल पाता. इसी तरह प्रमोशन में भी आरक्षण का मामला, फिलहाल कोर्ट में अटका पड़ा है.
दरअसल, सरकारी नौकरियों में भले ही दिव्यांगों को चार फीसदी आरक्षण है. लेकिन इसका फायदा उन्हें सहजता और सरलता से मिल नहीं पाता. आर्थिक रूप से उन्हें बढ़ाने के लिए प्राइवेट जॉब्स में भी पांच फीसदी तक आरक्षण है. लेकिन इस निमित्त राजस्थान में कोई नियम-अधिनियम पारित नहीं किया गया है. यही वजह है कि दिव्यांगों के लिए जॉब सिर्फ कागजों में होने के आरोप भी लगते हैं.
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बीसीए कर चुके आसिम खान ने बताया कि दिव्यांगों के लिए रियल लाइफ में जॉब के कोई ऑप्शन ही नहीं है. प्राइवेट में तो बिल्कुल ही नहीं. सरकारी में आरक्षण फिर भी है, लेकिन वहां आरक्षण के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी पसरा हुआ है. यही वजह है कि उन्हें पूरा हक नहीं मिल पाता. उन्होंने बताया कि कई बार सरकारी नौकरी के लिए एग्जाम फाइट कर चुके हैं. उनकी पढ़ाई में कहीं कमी नहीं है, कमी सिस्टम में है. वहीं रवि प्रकाश ने बताया कि दिव्यांग को जो फायदे मिलने चाहिए, वो कुछ हद तक ही मिल पाते हैं. सरकारी नौकरी में आरक्षण प्रतिशत बहुत कम है और कई बार तो सेलेक्शन होने के बाद भी रिश्वत के खेल के चलते उन जैसे लोग पीछे रह जाते हैं.
हालांकि, दिव्यांगजनों के रोजगार के क्रम में विशेष योग्यजन न्यायालय से श्रम एवं रोजगार विभाग को कई पत्र लिखे गए हैं, लेकिन नतीजा नहीं निकला. दिव्यांग अधिकार महासंघ के हेमंत भाई गोयल की मानें तो सामान्य व्यक्तियों की तरह ही दिव्यांग जनों के लिए भी कौशल विकास की योजना है. लेकिन इसमें भी उन्हें लाभ नहीं मिल पाता. कारण साफ है कि कौशल विकास योजनाओं को लेकर जो एजेंसियां काम करती हैं, उन्हें दिव्यांग जनों के लिए अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है, जिसकी कॉस्टिंग भी ज्यादा होती है. ऐसे में ये संस्थाएं दिव्यांग जनों को कौशल विकास योजना से जोड़ने में रुचि नहीं दिखाते. दिव्यांग अधिकार अधिनियम के तहत आरक्षण जरूर प्राप्त है, और स्वरोजगार के लिए सरकार लोन भी देती है. लेकिन उसमें भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि योजना कई हैं, लेकिन धरातल पर क्रियान्वित नहीं हो पाती.
बहरहाल, राजनीतिक और सामाजिक मंचों से दिव्यांगजन के हित में कई कसीदे गढ़े जाते हैं. लेकिन जब तक सरकार द्वारा दिव्यांग को आर्थिक रूप से संबंध बनाने का काम नहीं किया जाता, तब तक वो राष्ट्र की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाएंगे.