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73 साल में राजस्थान विश्वविद्यालय को नहीं मिली स्थाई महिला कुलपति

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Published : Jul 10, 2020, 10:35 PM IST

राजस्थान यूनिवर्सिटी में इन दिनों कुलपति चयन की प्रक्रिया चल रही है. कुलपति आरके कोठारी का 11 जुलाई को कार्यकाल पूरा होने जा रहा हैं. जिसके बाद नए कुलपति के हाथों में जिम्मेदारी होगी. लेकिन इससे पहले कुलपति पद के लिए महिला प्रतिनिधि को चुने जाने की मांग जोर पकड़ रही हैं.

Rajasthan University, Female vice chancellor
महिला कुलपति की उठ रही मांग

जयपुर. महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाले राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की शुरुआत साल 1947 में हुई. लेकिन तब से लेकर अब तक इस विश्वविद्यालय की कमान कभी भी महिला कुलपति के हाथों नहीं रही. हालांकि भैरों सिंह शेखावत के कार्यकाल के दौरान नवंबर 1998 में अजमेर यूनिवर्सिटी के कुलपति रह चुकी कांता आहूजा को अतिरिक्त चार्ज जरूर दिया गया. लेकिन परमानेंट कुलपति के नाम के तौर पर महिला कुलपति नहीं रही.

महिला कुलपति की उठ रही मांग

समय-समय पर यूनिवर्सिटी की महिला शिक्षाविदों ने इस मसले को गंभीरता से उठाया और अपनी मांगों को राज्यपाल तक भी पहुंचाया. लेकिन उनकी मांगों पर अब तक भी गौर नहीं किया गया. फिलहाल एसके दुबे की अध्यक्षता सर्च कमेटी नए कुलपति के लिए कवायद कर रही है. इस बीच महिला शिक्षाविदों की ये मांग दोबारा जोर पकड़ रही है. उनकी मानें तो महिलाओं से जुड़े इश्यू और हायर स्टडीज में गर्ल्स एजुकेशन के मुद्दों पर महिला कुलपतियों का निर्णय बेहतर हो सकता है. इसके साथ ही उन्होंने जेंडर इक्वलिटी का भी तर्क दिया.

पढ़ेंः अब निजी कंपनी करेगी निगम राजस्व के लिए सर्वे, प्रशासन ने तय किया रेवेन्यू टारगेट

राजस्थान विश्वविद्यालय में मौजूदा कुलपति प्रोफेसर आरके कोठारी का 11 जुलाई को 3 साल का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है. इसके बाद नए स्थाई कुलपति की नियुक्ति हो सके, इसे लेकर सर्च कमेटी के सदस्यों के पास आए आवेदनों पर विचार किया जाएगा. जिसमें उनकी 10 साल के प्रोफेसर पद की योग्यता के साथ अनुभवी शिक्षाविद को ही कुलपति पद के लिए शामिल किया जाएगा. सर्च कमेटियों के आवेदनों में महिला प्रोफेसर के आवेदन भी बड़ी संख्या में आते रहे हैं, लेकिन उन्हें लेकर कमेटियों ने कभी कोई रुझान नहीं दिखाया.

पढ़ेंः NRI कोटे की सीट भरने के बाद बची खाली सीटों पर ही हो सकता है मैनेजमेंट कोटे से प्रवेशः HC

जबकि ऐसा नहीं है कि प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में महिला कुलपति ने जिम्मेदारी नहीं संभाली है. मौजूदा समय में भी कई महिला प्रोफेसर कुलपति पद पर जिम्मेदारी निभा रही हैं. जिसमें संस्कृत विश्वविद्यालय भी शामिल है. लेकिन शिक्षाविदों और स्टूडेंट्स का मानना है कि प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में महिला कुलपति की नियुक्ति होती है, तो इससे प्रदेशभर की शिक्षा में महिला सशक्तिकरण की दिशा में सकारात्मक संदेश जाएगा.

बहरहाल, राज्य की उच्च शिक्षा में एक ओर छात्राओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है. जिसे महिला शिक्षा के नजरिए से बेहतर समझा जा सकता है. वहीं ऐसे में प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्था में यदि महिला प्रोफेसर को प्राथमिकता दी जाती है. संभवतः महिला सशक्तिकरण और शिक्षा की दिशा में सकारात्मक रुझान देखने को मिल सकते हैं.

जयपुर. महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाले राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की शुरुआत साल 1947 में हुई. लेकिन तब से लेकर अब तक इस विश्वविद्यालय की कमान कभी भी महिला कुलपति के हाथों नहीं रही. हालांकि भैरों सिंह शेखावत के कार्यकाल के दौरान नवंबर 1998 में अजमेर यूनिवर्सिटी के कुलपति रह चुकी कांता आहूजा को अतिरिक्त चार्ज जरूर दिया गया. लेकिन परमानेंट कुलपति के नाम के तौर पर महिला कुलपति नहीं रही.

महिला कुलपति की उठ रही मांग

समय-समय पर यूनिवर्सिटी की महिला शिक्षाविदों ने इस मसले को गंभीरता से उठाया और अपनी मांगों को राज्यपाल तक भी पहुंचाया. लेकिन उनकी मांगों पर अब तक भी गौर नहीं किया गया. फिलहाल एसके दुबे की अध्यक्षता सर्च कमेटी नए कुलपति के लिए कवायद कर रही है. इस बीच महिला शिक्षाविदों की ये मांग दोबारा जोर पकड़ रही है. उनकी मानें तो महिलाओं से जुड़े इश्यू और हायर स्टडीज में गर्ल्स एजुकेशन के मुद्दों पर महिला कुलपतियों का निर्णय बेहतर हो सकता है. इसके साथ ही उन्होंने जेंडर इक्वलिटी का भी तर्क दिया.

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राजस्थान विश्वविद्यालय में मौजूदा कुलपति प्रोफेसर आरके कोठारी का 11 जुलाई को 3 साल का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है. इसके बाद नए स्थाई कुलपति की नियुक्ति हो सके, इसे लेकर सर्च कमेटी के सदस्यों के पास आए आवेदनों पर विचार किया जाएगा. जिसमें उनकी 10 साल के प्रोफेसर पद की योग्यता के साथ अनुभवी शिक्षाविद को ही कुलपति पद के लिए शामिल किया जाएगा. सर्च कमेटियों के आवेदनों में महिला प्रोफेसर के आवेदन भी बड़ी संख्या में आते रहे हैं, लेकिन उन्हें लेकर कमेटियों ने कभी कोई रुझान नहीं दिखाया.

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जबकि ऐसा नहीं है कि प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में महिला कुलपति ने जिम्मेदारी नहीं संभाली है. मौजूदा समय में भी कई महिला प्रोफेसर कुलपति पद पर जिम्मेदारी निभा रही हैं. जिसमें संस्कृत विश्वविद्यालय भी शामिल है. लेकिन शिक्षाविदों और स्टूडेंट्स का मानना है कि प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में महिला कुलपति की नियुक्ति होती है, तो इससे प्रदेशभर की शिक्षा में महिला सशक्तिकरण की दिशा में सकारात्मक संदेश जाएगा.

बहरहाल, राज्य की उच्च शिक्षा में एक ओर छात्राओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है. जिसे महिला शिक्षा के नजरिए से बेहतर समझा जा सकता है. वहीं ऐसे में प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्था में यदि महिला प्रोफेसर को प्राथमिकता दी जाती है. संभवतः महिला सशक्तिकरण और शिक्षा की दिशा में सकारात्मक रुझान देखने को मिल सकते हैं.

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