जयपुर. गंगा जमुनी तहजीब होली के बाजारों में भी देखने को मिलती है. यहां परंपराओं को सहेजने वाला गुलाल गोटा आज भी मुस्लिम समुदाय के लोगों की ओर से ही बनाया जा रहा है. लाख से बने गुलाल गोटा की डिमांड इस बार शहरवासियों के साथ-साथ सैलानियों में भी देखने को मिल रही है.
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जयपुर का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना इतिहास है. गुलाल गोटे का 1727 में महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की. उस समय शाहपुरा के लखेर गांव से आमेर आए हुए कारीगरों को मनिहारों के रास्ते में बसाया गया था. तब से लेकर आज तक ये उन कारीगरों का परिवार ही गुलाल गोटा बनाने का काम कर रहे हैं.
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गुलाल गोटा निर्माता मोहम्मद शमशेर ने बताया कि जयपुर का गुलाल गोटा लाख से निर्मित है. जो 2 से 3 ग्राम का होता है. लाख को पहले धीमी आंच पर नरम किया जाता है. उसके बाद उसकी छोटी-छोटी गोलियों को एक फूंकनी नुमा नलकी में लगाकर फुलाया जाता है. इसके बाद इसे पानी से भरे बर्तन में रख दिया जाता है और आखिर में आरारोट का गुलाल भरकर एक कागज से इसे पैक कर दिया जाता है.
तैयार गुलाल गोटा तकरीबन 15 ग्राम का होता है. चूंकि ये कागज की तरह पतले होते हैं और पूरी तरह हर्बल होते हैं. ऐसे में इनसे किसी तरह का शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचता. बाजारों में ये गुलाल गोटा 15 से ₹20 प्रति नग उपलब्ध है. खास बात ये है कि आज भी मुस्लिम परिवार ही इस हिंदू त्योहार में रंग भरने का काम कर रहे हैं.
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गुलाबी नगरी बसने के समय से गुलाल गोटे केवल पूर्व राजपरिवार और ठिकानेदार ही इस्तेमाल किया करते थे, लेकिन आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक जा पहुंची है. जिसके चलते इसकी मांग भी बढ़ी है.