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Special: श्राद्ध पक्ष में कौवों के घरौंदे हुए लुप्त, भोग लगाने के लिए पितरों के प्रतिनिधियों की तलाश

कर्कश बोली वाले कौवों को हमेशा से ही इंसान अपने से दूर भगाता रहा है. लेकिन जब बात पितृ पक्ष की आती है तो कौवों का महत्व अपने आप ही बढ़ जाता है. कौवों को पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवों ने अगर भोजन कर लिया, तो वो भोजन सीधे पितरों तक पहुंच जाता है. लेकिन इन दिनों गुलाबी नगरी से कौवे विलुप्त होते जा रहे हैं. ऐसे में लोगों को कौवे खोजने के लिए छतों से लेकर दूर-दराज जल-महल और रविन्द्र मंच तक जाना पड़ रहा है. देखें यह खास रिपोर्ट...

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
श्राद्ध पक्ष में कौवों के घरौंदे हुए लुप्त
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Published : Sep 9, 2020, 5:03 PM IST

जयपुर. दिवंगत पितृजनों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की समयावधि श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का दौर चल रहा है. पितरों को प्रसन्न करने, तर्पण, हवन और दान के लिहाज से इसे खास माना जाता है. पितरों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. इसके साथ ही पंचबलि यानी गाय, देवता, चींटियां, कुत्ते और कौवे को भोग लगाया जाता है. इसमें कौवों का विशेष महत्व बताया गया है, लेकिन श्राद पक्ष में पितरों को भोग लगाने के लिए कौवे लुप्त हो गए हैं.

श्राद्ध पक्ष में कौवों के घरौंदे हुए लुप्त

शहर में लुप्त हो रहे कौवे

कौवे, जिनको पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है, लेकिन जब यही पितर इंसानों से रूठ जाएं, तो बने काम बिगड़ जाते हैं. ठीक ऐसा ही हो रहा है, पितृ पक्ष में. जब पितृजनों को खुश करने के लिए कौवों को भोग लगाने के लिए उनकी तलाश की जा रही है. पहले जहां श्राद्ध पक्ष में गुलाबीनगरी में लोग घरों की छतों पर कौवों को भोजन कराते थे, लेकिन शहर में अब छतों पर कौवे ही नजर नहीं आ रहे हैं. लोगों को कौवे खोजने के लिए छतों से लेकर दूर-दराज जल-महल और रविन्द्र मंच तक जाना पड़ रहा है.

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
पहले की तरह छतों पर नजर नहीं आते कौवे

यह भी पढ़ें: पितृ पक्ष : विष्णुपद मंदिर स्थित 16 वेदियों पर पिंडदान का विधान, 100 कुलों का हो जाता है उद्धार!

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष में कौवों ने अगर भोजन कर लिया, तो वो भोजन सीधे पितरों तक पहुंच जाता है. पहले जहां लोग दिवंगत पितृजनों को भोग लगाने के लिए छत पर भोजन रख दिया करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. राजधानी होने के नाते जयपुर शहर में काफी डवलपमेंट हुआ और तेजी से निर्माण कार्यो से भव्य इमारतें खड़ी हो गईं, लेकिन इससे कौवों का घरौंदा खत्म होता चला गया. इसके बाद कौवे शहर से दूर अपने घरौंदे की तलाश में जाने लगे और अब हालात ये है कि लोगों को पितृ पक्ष में कौवों की बाट जोहना पड़ रहा है.

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
गुलाबी नगरी से कम हो रही तादात

यह है मान्यता

ऐसा माना जाता है कि इंसान मृत्यु के बाद सबसे पहले कौवे के रुप में जन्म लेता है. ऐसे में पितरों की कृपा आपके ऊपर है, तो पितृ प्रसन्न हैं, इसके विपरीत अगर कौवे भोजन करने नहीं आए, तो पितर विमुख यानी नाराज हैं. लेकिन अगर ऐसे ही श्राद्ध पक्ष में ही सिर्फ कौवों की आवभगत हुई तो वो दिन दूर नहीं, जब कौवों की प्रजाति ही विलुप्त हो जाएगी.

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
कौवे पितृजनों के माने जाते हैं प्रतिनिधि

साल में केवल एक बार ही कौवों की होती है आवभगत

पर्यावरणविद सुधांशु के मुताबिक साल में अगर एक बार ही कौवों को श्राद्ध के समय भोजन देने के लिए याद करेंगे और पूरे सालभर कुछ नहीं देंगे, तो वो भूख से ही मर जाएंगे. जिसकी वजह से उनकी जनसंख्या भी कम हो रही है. उनका मानना है कि श्राद्ध पक्ष के अलावा रोजाना इनको खाने को दिया जाए, ताकि वो भूख से ना मरें.

यह भी पढ़ें: पितृपक्ष 2020 : मोक्षस्थली बोधगया में इस बार नहीं लगेगा मेला

बिगड़ते पर्यावरण की मार कौवों पर भी पड़ रही है. स्थिति यह है कि श्रद्धा में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौवे तलाशने से भी नहीं मिल रहे. अगर ऐसे ही चलता रहा तो कौवें की कर्ण कर्कश आवाज और उसकी विविधता का जिक्र सिर्फ कागशास्त्र की रचना में ही सीमित रह जाएगा.

जयपुर. दिवंगत पितृजनों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की समयावधि श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का दौर चल रहा है. पितरों को प्रसन्न करने, तर्पण, हवन और दान के लिहाज से इसे खास माना जाता है. पितरों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. इसके साथ ही पंचबलि यानी गाय, देवता, चींटियां, कुत्ते और कौवे को भोग लगाया जाता है. इसमें कौवों का विशेष महत्व बताया गया है, लेकिन श्राद पक्ष में पितरों को भोग लगाने के लिए कौवे लुप्त हो गए हैं.

श्राद्ध पक्ष में कौवों के घरौंदे हुए लुप्त

शहर में लुप्त हो रहे कौवे

कौवे, जिनको पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है, लेकिन जब यही पितर इंसानों से रूठ जाएं, तो बने काम बिगड़ जाते हैं. ठीक ऐसा ही हो रहा है, पितृ पक्ष में. जब पितृजनों को खुश करने के लिए कौवों को भोग लगाने के लिए उनकी तलाश की जा रही है. पहले जहां श्राद्ध पक्ष में गुलाबीनगरी में लोग घरों की छतों पर कौवों को भोजन कराते थे, लेकिन शहर में अब छतों पर कौवे ही नजर नहीं आ रहे हैं. लोगों को कौवे खोजने के लिए छतों से लेकर दूर-दराज जल-महल और रविन्द्र मंच तक जाना पड़ रहा है.

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
पहले की तरह छतों पर नजर नहीं आते कौवे

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष में कौवों ने अगर भोजन कर लिया, तो वो भोजन सीधे पितरों तक पहुंच जाता है. पहले जहां लोग दिवंगत पितृजनों को भोग लगाने के लिए छत पर भोजन रख दिया करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. राजधानी होने के नाते जयपुर शहर में काफी डवलपमेंट हुआ और तेजी से निर्माण कार्यो से भव्य इमारतें खड़ी हो गईं, लेकिन इससे कौवों का घरौंदा खत्म होता चला गया. इसके बाद कौवे शहर से दूर अपने घरौंदे की तलाश में जाने लगे और अब हालात ये है कि लोगों को पितृ पक्ष में कौवों की बाट जोहना पड़ रहा है.

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
गुलाबी नगरी से कम हो रही तादात

यह है मान्यता

ऐसा माना जाता है कि इंसान मृत्यु के बाद सबसे पहले कौवे के रुप में जन्म लेता है. ऐसे में पितरों की कृपा आपके ऊपर है, तो पितृ प्रसन्न हैं, इसके विपरीत अगर कौवे भोजन करने नहीं आए, तो पितर विमुख यानी नाराज हैं. लेकिन अगर ऐसे ही श्राद्ध पक्ष में ही सिर्फ कौवों की आवभगत हुई तो वो दिन दूर नहीं, जब कौवों की प्रजाति ही विलुप्त हो जाएगी.

श्राद्ध पक्ष में कौवों का महत्व,  Importance of Crows in Shraddha Paksha,  Crows are fading from Jaipur
कौवे पितृजनों के माने जाते हैं प्रतिनिधि

साल में केवल एक बार ही कौवों की होती है आवभगत

पर्यावरणविद सुधांशु के मुताबिक साल में अगर एक बार ही कौवों को श्राद्ध के समय भोजन देने के लिए याद करेंगे और पूरे सालभर कुछ नहीं देंगे, तो वो भूख से ही मर जाएंगे. जिसकी वजह से उनकी जनसंख्या भी कम हो रही है. उनका मानना है कि श्राद्ध पक्ष के अलावा रोजाना इनको खाने को दिया जाए, ताकि वो भूख से ना मरें.

यह भी पढ़ें: पितृपक्ष 2020 : मोक्षस्थली बोधगया में इस बार नहीं लगेगा मेला

बिगड़ते पर्यावरण की मार कौवों पर भी पड़ रही है. स्थिति यह है कि श्रद्धा में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौवे तलाशने से भी नहीं मिल रहे. अगर ऐसे ही चलता रहा तो कौवें की कर्ण कर्कश आवाज और उसकी विविधता का जिक्र सिर्फ कागशास्त्र की रचना में ही सीमित रह जाएगा.

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