जयपुर. देश-प्रदेश में कोरोना मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. आम से लेकर खास तक इससे अछूता नहीं है. इस बीच राज्य सहकारी क्रय विक्रय संघ किसानों से सरसों और चने की समर्थन मूल्य पर खरीदी कर रहा है. दोनों ही फसलों की सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए 1348 खरीद केंद्र स्थापित किए गए हैं. लेकिन इन केंद्रों पर अपनी उपज बेचने के लिए किसानों की आवाजाही नहीं के बराबर है.
क्यों सरकारी केंद्रों पर नहीं पहुंच रहे किसान?
आपको लग रहा होगा कि शायद कोरोना महामारी के कारण किसान अपनी फसलें बेचने नहीं आ रहे होंगे लेकिन ऐसा नहीं है. इस बार किसानों को उनकी सरसों और चने की उपज का समर्थन मूल्य से ज्यादा भाव बाजारों में मिल रहा है. यही वजह है कि वह एमएसपी पर अपनी उपज बेचने के लिए सरकारी केंद्रों पर नहीं पहुंच रहे हैं बल्कि बाजार में अपना माल बेच रहे हैं.
एक नजर मौजूदा एमएसपी और बाजार मूल्य पर
- सरसों का समर्थन मूल्य 4650 रु/क्विंटल
बाजार मूल्य 7000 से 7500 रु/क्विंटल
- चना का समर्थन मूल्य 5100 रु/क्विंटल
बाजार मूल्य 5800 रु/क्विंटल तक दाम
1 अप्रैल से सरकारी खरीद शुरू लेकिन किसान MSP पर फसल बेचने को तैयार नहीं
राजस्थान में सरसों और चने की समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए 25 मार्च से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ. 1 अप्रैल से शुरू हुई सरकारी खरीदी 29 जून तक जारी रहेगी. सहकारिता विभाग ने इस बार चना की 6 लाख 14 हजार 900 मीट्रिक टन और सरसों की 12 लाख 22 हजार 775 मीट्रिक टन खरीदी का टारगेट रखा है. लेकिन सरकारी खरीद शुरू होने के 41 दिन गुजर जाने के बाद भी एक भी पंजीकृत किसान ने अपनी सरसों की फसल समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद केंद्र पर नहीं बेची. हालांकि कुछ किसानों ने चने की 4196.17 मीट्रिक टन उपज एमएसपी पर बेची लेकिन यह आंकड़ा ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. मतलब बेहद कम है.
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'सरकारी नीतियां जिम्मेदार'
किसान महापंचायत के प्रदेश अध्यक्ष रामपाल जाट इसका बड़ा कारण सरकार की नीतियां बताते हैं. जाट के मुताबिक कई सालों से पॉम ऑयल जो अखाद्य है, उसे खाद्य तेलों में मिलाए जाने की बाध्यता थी. जिसे हाल ही में सरकार ने हटाया. वहीं आयात-निर्यात की जो नीतियां थीं, किसान आंदोलन के कारण उसमें भी बदलाव किया. जिसका यह असर है कि किसानों को बाजार में ही उनकी उपज के समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत मिल रही है.
सरकारी खरीद के लिए पंजीकृत किसानों की संख्या
- सरसों:- समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद के लिए वर्तमान में 2188 किसानों ने ही अपनी उपज बेचने के लिए सहकारिता विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि इस बार 12 लाख 22 हजार 775 मीट्रिक टन सरसों की खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.
- चना :- समर्थन मूल्य पर चना की खरीदी के लिए वर्तमान में 80 हजार 690 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि इस बार 6 लाख 14 हजार 900 मीट्रिक टन चने की खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.
आम मंडियों का रूख कर रहे किसान
किसान सरकारी क्रय-विक्रय के खरीद केंद्रों पर भले ही ना जा रहा हो लेकिन उसका रूख आम मंडियों की ओर जरूर है हालांकि कोरोना महामारी के चलते प्रदेश में करीब 30 मंडिया बंद हैं. मंडियों का समय भी सुबह 6 बजे से 11 बजे तक ही किया गया है.
'मंडी का समय बढ़े तो और किसान पहुंचेंगे'
राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता के मुताबिक यदि समय बढ़ता है तो बड़ी संख्या में किसान अपनी उपज बेचने मंडी तक पहुंच सकते हैं. इस बार सरसों और चने की बंपर फसल राजस्थान में हुई है. किसानों को भी उसका अच्छा मूल्य मिल रहा है.
क्या पूरा होगा सरकारी खरीदी का टारगेट ?
बहरहाल प्रदेश में सहकारिता विभाग ने सरसों के लिए 674 और चने के लिए भी 674 खरीद केंद्र बनाए हैं. सरकारी स्तर पर समर्थन मूल्य पर खरीद का यह काम 29 जून तक चलेगा लेकिन जिस तरह बाजार में सरसों और चने की डिमांड है, उसके बाद किसान अपनी उपज कम समर्थन मूल्य पर बेचे इसकी संभावना कम है. यह भी लगभग तय है कि इस बार राजस्थान में सरसों और चने की जो सरकारी खरीद के लिए लक्ष्य रखा गया है वो भी पूरा नहीं होगा.