जयपुर. नगर निगम में बीते एक साल में कर्मचारी ही नहीं, जनप्रतिनिधि और पार्षद पति भी रिश्वत लेते हुए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने ट्रैप किए. इसका बड़ा कारण निगम में सालों से चला आ रहा कमीशन का खेल बताया जाता है. जिसकी वजह से आज निगम भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है.
हाल ही एसीबी की टीम ने ग्रेटर नगर निगम में जयपुर के एक घूसखोर फाइनेंस एडवाइजर अचलेश्वर मीणा को गिरफ्तार किया. एडवाइजर दो दलालों के जरिए ठेकेदारों से रिश्वत की रकम वसूलता था. मामले में एसीबी ने अफसर के साथ दोनों दलाल धन कुमार जैन और अनिल अग्रवाल को भी ट्रैप किया है.
हालांकि नगर निगम में ये पहला मामला नहीं है. खासकर 2021-22 में तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो मानो नगर निगम हेरिटेज और ग्रेटर के आसपास ही मंडरा रहा था. यही वजह है कि नगर निगम के जनप्रतिनिधि और अधिकारी-कर्मचारी एसीबी (ACB traps Nagar Nigam officials) की जद में ही रहे.
एसीबी ने इन्हें किया ट्रैप:
- हेरिटेज निगम के पशुधन सहायक जितेंद्र वर्मा, कनिष्ठ सहायक अनिल शर्मा, स्लॉटर हाउस ठेकाकर्मी अब्दुल कलीम और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राजकुमार
- हेरिटेज निगम के वार्ड 6 के निर्दलीय पार्षद जाहिद निर्वाण
- ग्रेटर निगम के असिस्टेंट फायर ऑफिसर छोटू राम और चालक फतेह सिंह
- ग्रेटर निगम के राजस्व अधिकारी राहुल कुमार अग्रवाल
- हेरिटेज निगम के हवामहल-आमेर जोन में लगे जमादार नरेश कुमार
- ग्रेटर निगम की निलंबित महापौर सौम्या गुर्जर के पति राजाराम गुर्जर और बीवीजी कंपनी के प्रतिनिधि ओंकार सप्रे
- हेरिटेज निगम के वार्ड 4 पार्षद बरखा सैनी के पति अविनाश सैनी
इन प्रकरणों के सामने आने से निगम जनप्रतिनिधियों और अधिकारी-कर्मचारियों की छवि धूमिल हुई. हालांकि नगर निगम में एसीबी की कार्रवाई होना नया नहीं है. इससे पहले भी कई अधिकारी-कर्मचारी एसीबी की ओर से ट्रैप किए जा चुके हैं. जिसमें सबसे बड़ा मामला करीब 7 साल पहले सामने आया था. इसमें पार्कों की मेंटेनेंस और सुरक्षा के नाम पर भ्रष्टाचार करने वाले आईएएस अफसर एलसी असवाल, आरएएस अफसर जगरूप सिंह और निगम के उद्यान उपायुक्त सहित 17 जनों के खिलाफ एबीसी ने भ्रष्टाचार करने का मुकदमा दर्ज किया था.
भ्रष्टाचार की ये बेल नगर निगम तक सीमित नहीं बल्कि स्वायत्त शासन विभाग और नगरीय विकास एवं आवासन विभाग तक फैली हुई है. हालांकि वर्ष 2018 में भ्रष्टाचार को लेकर आए नए कानून की धारा 17ए ने सरकारी विभागों को भ्रष्टाचार के मामलों में बेखौफ कर दिया. इस कानून के तहत एसीबी मिलने वाली शिकायतों में सीधी जांच नहीं कर सकती. शिकायत मिलने पर संबंधित विभागाध्यक्ष से जांच करने की अनुमति मांगेगी.
अनुमति मिलने के बाद ही एसीबी जांच कर सकती है. इसके चलते स्वायत्त शासन विभाग की 47 शिकायत जबकि नगरीय विकास एवं आवासन विभाग में 23 शिकायत पेंडिंग हैं. इन आंकड़ों को देखने के बाद ऐसा लगता है मानो पूरे कुएं में ही भांग मिली हुई है. एसीबी करप्शन को रोकने के लिए लगातार कार्रवाई कर रही है. जरूरी है कि इस तरह के प्रकरणों में पूरी जांच होने के बाद तथ्यों के आधार पर न्यायिक और प्रशासनिक स्तर पर भी कार्रवाई हो.