जयपुर. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में आस्था के केंद्र माने जाने वाले मंदिरों के कपाट भी लॉक हो गए. इसके कारण श्रदालुओं का प्रवेश निषेध रहा. ऐसे में जो मंदिर भक्तों के दर्शन पर आने वाली आय पर निर्भर रहते हैं या फिर मंदिर परिसर में बने धर्मशालाओं, किराए पर दिए जाने वाले कमरों और प्रसाद की दुकानों पर निर्भर थे, वो अभी तक लॉक हैं. अनलॉक की प्रक्रिया के बाद भी मंदिर का राजस्व डाउन चल रहा है.
इष्टदेव के दर पर धोक लगाकर हर भक्त मनोकामना पूर्ति का शुभ आशीर्वाद लेता है और दर्शन कर दान पेटी में भेंट चढ़ाता है. दान में आने वाली राशि को मंदिर के जीर्णोद्धार, धर्मशालाओं और प्रसाद की दुकानों पर खर्च किया जाता है. ऐसे में मंदिरों की आय मंदिरों में दर्शन करने वाले भक्तों पर निर्भर रहने के साथ-साथ धर्मशालाओं, प्रसाद की दुकानों और धार्मिक आयोजनों पर दिए जाने वाली किराए की रसोइयों पर टिकी होती है, लेकिन कोविड के चलते ये सब अभी तक बंद पड़े हैं. इससे प्रमुख मंदिरों की आय पर बड़ा असर पड़ा है.
चढ़ावा घटकर हुआ 20 फीसदी
जयपुर के सबसे बड़े प्रसिद्ध खोले के हनुमानजी मंदिर में भी यही हालात है, जहां देश-विदेश से भक्त दर्शन को आते हैं. भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर प्रशासन की ओर से बड़ी-बड़ी 47 रसोइयां बनाई गई है, जहां भक्त सवामणी करके भगवान को भोग लगाकर श्रदालुओं को प्रसाद ग्रहण करवाते हैं. लेकिन कोरोना में लगे लॉकडाउन में मंदिर के द्वार बंद हुए और अब जब मंदिर अनलॉक हो गया है तो भक्तों का आगमन सिर्फ 25 फीसदी ही रह गया है. जिससे मंदिर में आने वाले दान और चढ़ावा भी घटकर 20 फीसदी हो गया है.
आय का सबसे बड़ा साधन रसोइयां
खोले हनुमान जी मंदिर के प्रबंधक बीएम शर्मा ने बताया कि मंदिर में आय का सबसे बड़ा साधना रसोइयां है. जहां सवामणी के लिए किराए पर कमरे, बर्तन सहित अन्य सामान उपलब्ध करवाया जाता है. जब ये रसोइयां किराए पर लगती थी तो एक रसोई में 200 भक्त प्रसादी ग्रहण कर सकते थे, उस हिसाब से देखें तो 8000 से 10,000 लोग मंदिर में सवामणी की प्रसादी लेते थे. इससे मंदिर को काफी राजस्व का भी लाभ होता था.
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इसके अलावा सावन और अधिकमास में तो रसोइयां खाली भी नहीं मिलती थी और आगे की एडवांस बुकिंग लोग करवाते थे. लेकिन इस बार कोई बुकिंग भी नहीं हुई जो हुई उनको भी रद्द करना पड़ा. इसके अलावा मंदिर परिसर में करीब 20 दुकानें प्रसाद, मालाओं और पूजन सामग्री के हैं, लेकिन राज्य सरकार की गाइडलाइन के अनुसार मंदिर में प्रसाद पाबंदी के चलते ये सब भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं.
नहीं है पहले जैसे भीड़
शहर के स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर में कोरोना से पहले सैकड़ों भक्त रोजाना दर्शन करने के लिए आते थे. साथ ही कई भक्त यहां ठहर कर इसका दीदार करने को आतुर रहते थे, लेकिन कोरोना काल में ये सब कुछ आंखों से ओझल हो गया. अभी ना तो कोई श्रदालु है और ना ही पहले जैसी भीड़ है. यही वजह है कि मंदिर प्रबंधन की ओर से धर्मशालाओं में दिए जाने वाले करीब 20 कमरों और धार्मिक पूजा-पाठ की पुस्तकों की दुकानों पर अब तक ताला लटका हुआ है. ऐसे में जिन संसाधनों से मंदिर को लाखों रुपयों का राजस्व प्राप्त होता था, वो अब नहीं हो रहा है. जिसके चलते मंदिर में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या में भी कटौती कर दी गई है.
दुकानदारों के सामने आर्थिक संकट
जयपुर के आराध्य देव गोविंद देव और प्रथम पूज्य मोती डूंगरी गणेश मंदिर के बाहर पूजन सामग्री की दुकान लगाने वालों के भी कमोवेश यही हालात हैं. यहां दुकानदार अपना किराया भरना तो दूर दो वक्त की रोटी के लिए भी जद्दोजहद कर रहे हैं.
कोरोना काल में आर्थिक स्थिति खराब
दुकानदार चंद्रप्रकाश सोनी ने बताया कि ना जानें कब इस महामारी से छुटकारा मिलेगा, जिसकी वजह से उनका व्यापार चौपट हो रखा है. पहले लॉकडाउन में मंदिर के कपाट लॉक थे और अब जब अनलॉक हुए तो राज्य सरकार ने प्रसाद और पूजन सामग्री भी मंदिर में ले जाने पर रोक लगा दी है. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई है.
फिलहाल, राज्य सरकार ने मंदिरों में होने वाले विशेष आयोजनों पर रोक लगा रखी है. सरकार की ओर से जारी की गई गाइडलाइन के अनुसार ही प्रदेश में बड़े धार्मिक कार्यक्रम नहीं किए जा रहे हैं. अभी अनलॉक की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है, लेकिन मंदिर परिसर की धर्मशालाएं, कमरें, रसोइयां और दुकानें सब कुछ अभी भी वीरान पड़े हुए हैं. इसका असर मंदिर के राजस्व पर भी पड़ा है.