जयपुर. नगर निगम इतिहास में महापौर और कमिश्नर के बीच तनातनी कोई नई बात नहीं है, लेकिन ये पहली मर्तबा है, जब मामले में राज्य सरकार ने दखल देते हुए महापौर को सस्पेंड कर दिया हो. जिसके बाद से बीजेपी और कांग्रेस में जुबानी जंग छिड़ गई है. वहीं ग्रेटर नगर निगम में सत्ता परिवर्तन के कयास भी लगाए जा रहे हैं. इन सबके बीच ईटीवी भारत से पूरे प्रकरण में नियम-कायदों को समझते हुए निगम में दो बार कमिश्नर रहे पूर्व आईएएस अधिकारी दामोदर शर्मा ने कहा कि इस प्रकरण में मेयर को सस्पेंड करने जैसा कोई विषय बनता ही नहीं, लेकिन मामला राजनीतिक है. उन्होंने सवाल भी किया कि यदि मामले का कोर्ट में ही निपटारा होना है, तो मेयर को सस्पेंड करने की जल्दबाजी क्यों.
निगम का विवादों से पुराना नाता
जयपुर नगर निगम शहर में सफाई, स्ट्रीट लाइट, कंस्ट्रक्शन वर्क स्वीकृत करने, पट्टे जारी करने जैसी जिम्मेदारी निभाता आया है, लेकिन निगम में चुने हुए जनप्रतिनिधियों की अपनी भूमिका है. जहां तक विवाद की बात है, निगम में ये नई बात नहीं. ज्योति खंडेलवाल के महापौर रहते हुए तो जगरूप सिंह यादव, लोकनाथ सोनी और राजेश यादव जैसे आईएएस अधिकारियों के साथ विवाद होते रहे हैं, लेकिन इस बार विवाद शहर के साधारण आदमी से जुड़ा हुआ है. क्योंकि बीवीजी कंपनी शहर में कचरा उठाने का काम करती है. जिसमें डोर टू डोर कचरा संग्रहण से लेकर उसके निस्तारण तक की प्रक्रिया शामिल है. लेकिन बीवीजी कंपनी के भुगतान को लेकर महापौर और कमिश्नर में विवाद छिड़ा. जिसके कुछ राजनीतिक मायने भी हैं. कारण साफ है, बोर्ड बीजेपी का है और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की.
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समितियों के गठन के साथ ही शुरू हो गए थे विवाद
मेयर और कमिश्नर की शक्तियों को लेकर कानूनी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट है. कमिश्नर का काम प्रशासन को संभालना है, जबकि मेयर का काम पार्षदों के साथ मिलकर नीतिगत निर्णय लेने का है, लेकिन निगम की आर्थिक स्थिति खराब होना समस्या की मुख्य जड़ है. सस्ती लोकप्रियता के लिए निगम टैक्स नहीं लगाता. जिसकी वजह से रेवेन्यू जनरेट नहीं होता, लेकिन साफ सफाई, स्ट्रीट लाइट, वेतन और दूसरे कई खर्चे निगम को करने ही होते हैं और इस बार विवाद का कारण भी बीवीजी कंपनी के भुगतान से जुड़ा हुआ ही है. ये स्पष्ट है कि यदि कंपनी निगम के लिए काम कर रही है, तो जरूरी है उसको भुगतान भी किया जाए. यदि निगम के पास पैसा नहीं है, तो राज्य सरकार से पैसा लेकर भुगतान किया जाना चाहिए.
वित्तीय समिति के पास जाना चाहिए था मामला
निगम को 200 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान करना था, तो कमिश्नर इसे रिकमेंड करके भेजते. निगम में वित्तीय समिति बनी हुई है, उसकी अध्यक्ष पूर्व महापौर भी रही हैं. ऐसे में इस मसले को वित्तीय समिति में भेजा जाना चाहिए था, जहां से ये मेयर के पास आती, लेकिन अप्रूव करने का प्रोसेस ही प्रॉपर फॉलो नहीं किया गया.
प्रकरण में मेयर को सस्पेंड करने का विषय ही नहीं बनता
नगर पालिका में राज्य सरकार को कुछ विशेष परिस्थितियों में मेयर और पार्षद को सस्पेंड करने के अधिकार तो हैं, लेकिन ये अधिकार तब है, जब कोई जांच कराई जाए. वर्तमान रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने एक आरएएस अधिकारी को लगाकर जांच कराई, जो आईएएस और महापौर की जांच कर रही है और प्रशासनिक जांच के बाद भी ये कहा जा रहा है कि न्यायिक जांच कराई जाएगी. यदि न्यायिक जांच की घोषणा पहले ही कर दी जाती तो ये विवाद पहले ही थम जाता. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रकरण में मेयर को सस्पेंड करने जैसा कोई विषय बनता ही नहीं, लेकिन मामला राजनीति है और यदि मामले का कोर्ट में ही निपटारा होना है, तो मेयर को सस्पेंड करने की जल्दबाजी क्यों.
पूर्व आईएएस ने ये स्पष्ट किया कि ये विवाद न तो जयपुर के हित में है, न निगम के, और न ही जयपुर वासियों के हित में है. इस बात को मंत्री स्तर पर बैठक कर सुलझाया जा सकता था. बहरहाल, बातचीत से जो मसला हल हो सकता था, वो अब कोर्ट में सुलझने के लिए पहुंचेगा.