जयपुर. राजस्थान की 4 राज्यसभा सीटों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 31 मई है. अभी तक दोनों पार्टियां भाजपा व कांग्रेस राज्यसभा के लिए प्रत्याशी तय कर रही हैं. जैसे ही प्रत्याशी तय हो जाएंगे और 31 मई को साफ हो जाएगा कि दोनों पार्टियों ने किसे उम्मीदवार बनाया है. उसके बाद अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए कांग्रेस हो या भाजपा वोटों की जुगत में लग जाएगी. अगर चार राज्यसभा सीटों पर चार ही नेता उतरे तो मतदान की आवश्यकता नहीं होगी और चुनाव निर्विरोध संपन्न हो जाएगा.
लेकिन अगर पांचवा प्रत्याशी उतरता है तो फिर राजस्थान में राज्यसभा सीटों के लिए मतदान भी होगा और अपने-अपने वोटों को बचाए रखने के लिए एक बार फिर से बाड़ाबंदी भी होगी. यह तय माना जा रहा है कि 4 से ज्यादा उम्मीदवार इस बार राज्यसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाएंगे. ऐसे में कम से कम कांग्रेस पार्टी तो अपने विधायकों की बाड़ाबंदी जरूर करेगी. भले ही कांग्रेस के नेता यह कहते हुए दिखाई दे रहे हों कि बाड़ेबंदी की आवश्यकता कांग्रेस को नहीं, अलग अलग गुटों में बटीं भाजपा को है.
लेकिन हकीकत यह है कि जिस तरीके से तीसरी सीट जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी निर्दलीय और समर्थक दलों पर निर्भर है, ऐसे में सभी विधायकों को एकजुट एक साथ बाड़ाबंदी में रखना कांग्रेस की मजबूरी होगी. राजस्थान कांग्रेस के विधायकों के साथ ही निर्दलीय और कांग्रेस समर्थित दलों के विधायकों की यह तीसरी बाड़ेबंदी होगी. इससे पहले पिछले राजयसभा चुनावों और 2020 में सियासी उठापटक के चलते दो बार राजस्थान कांग्रेस के विधायकों, निर्दलीयों और कांग्रेस समर्थक विधायकों की बाड़ेबंदी हो चुकी है.
इन राज्यों के प्रत्याशियों का हो चुका है पॉलिटिकल टूरिज्मः राजस्थान में इस बार गहलोत सरकार किसी सियासी चर्चा का प्रमुख हिस्सा बनी है तो वह है राजस्थान में अलग-अलग राज्यों के विधायकों का पॉलिटिकल टूरिज्म. जब से गहलोत सरकार बनी है, तब से कांग्रेस शासित और गैर कांग्रेस शासित राज्यों के कांग्रेस विधायकों के लिए राजस्थान पॉलिटिकल टूरिज्म का प्रमुख केंद्र बन गया है .राजस्थान में गहलोत सरकार के समय सियासी बाड़ेबंदी की शुरुआत नवंबर 2019 में हुई.
जब महाराष्ट्र के कांग्रेस विधायकों को खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए जयपुर के ब्यूना विस्टा रिसॉर्ट में लाया गया. इसके बाद जब कांग्रेस शासित मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद हिचकोले खाने लगी तो मध्यप्रदेश कांग्रेस के विधायकों को राजधानी जयपुर के उसी रिसॉर्ट ब्यूना विस्टा और ट्री हाउस में रखा गया. इसके बाद गुजरात में राज्यसभा चुनावों से पहले कांग्रेस विधायकों की बाड़ेबंदी की गई और सबसे अंत में असम के विधायक प्रत्याशियों को जयपुर के होटल फेयरमाउंट में चुनाव के बाद होने वाली संभावित तोड़फोड़ से बचने के लिए लाया गया.
बाड़ेबंदी कब रही सफल और कब रही असफल
महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायकः नवंबर 2019 में महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायकों को तोड़फोड़ और खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए जयपुर के ब्यूना विस्ता रिसॉर्ट में पॉलिटिकल टूरिज्म के लिए लाया गया. उस पॉलिटिकल टूरिज्म का नतीजा सकारात्मक निकला और बाद में कांग्रेस के सहयोग से महाराष्ट्र में सरकार बनी.
मध्यप्रदेश कांग्रेस विधायकः फरवरी 2020 में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस के मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार हिचकोले खाने लगी. तत्कालीन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी राजस्थान और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत याद आए. यही कारण था कि उन्होंने अपने समर्थक विधायकों को राजस्थान भेजा. हालांकि, राजस्थान में सफलतापूर्वक सियासी बाड़ाबंदी होने के बावजूद मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बचाने में नाकामयाब रही.
गुजरात कांग्रेस विधायकः फरवरी 2020 में गुजरात कांग्रेस के विधायकों को जयपुर के शिव विलास रिसॉर्ट में सियासी बाड़ेबंदी के तहत लाया गया. लेकिन इस बार मकसद सरकार बचाने का नहीं था, बल्कि राज्यसभा में अपनी सीट बचाने का था. गुजरात विधायकों ने राजस्थान में बिना किसी परेशानी के पॉलिटिकल टूरिज्म किया, लेकिन कांग्रेस गुजरात में दो में से एक ही सीट राज्यसभा की बचा सकी.
असम में समर्थक दल एआईयूडीएफ विधायकः अप्रैल 2021 को राजस्थान में एक और राज्य के नेताओं की सियासी बाड़ाबंदी की गई. लेकिन इस बार बाड़ाबंदी कांग्रेस या विधायकों की नही थी बल्कि कांग्रेस समर्थित एआईयूडीएफ के उन नेताओं की हुई है, जिनके चुनाव के नतीजे भी नहीं आए. लेकिन कोई खरीद-फरोख्त या तोड़फोड़ और दबाव की राजनीति असम में ना हो इससे बचने के लिए कांग्रेस ने पहले ही अपना दांव खेल दिया.
राजस्थान कांग्रेस विधायकों की 2 बार हुई बाड़ेबंदीः ऐसा नहीं है कि राजस्थान में केवल दूसरे राज्यों के विधायकों या विधायक प्रत्याशियों को सियासी तोड़फोड़ से बचाने के लिए पॉलिटिकल टूरिज्म करवाया गया. बल्कि राजस्थान में भी सत्ताधारी दल कांग्रेस अब तक दो बार अपने ही विधायकों को बड़ाबंदी में रख चुकी है. एक बार तो मार्च 2020 में राज्यसभा चुनाव के समय और फिर जुलाई 2020 में राजनीतिक उठापटक के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने ही विधायकों की बाड़ेबंदी कर चुकी है.
जुलाई 2020 में अब तक दूसरे राज्यों के कांग्रेस विधायकों की सियासी बाडाबंदी सफलतापूर्वक करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बगावती तेवर के चलते अपने गुट के विधायकों की बाड़ेबंदी करनी पड़ी. इन विधायकों को पहले जयपुर के फेयरमाउंट रिसॉर्ट में और फिर उसके बाद जैसलमेर के सूर्यगढ़ में रखा गया . राजनीति के जादूगर गहलोत ने अपनी सरकार बचाने में सफलता प्राप्त की.