जयपुर. राजधानी के एक निजी स्कूल में, फिर झुंझुनू और भीलवाड़ा, इसके बाद जालौर..ये वो जिले हैं जहां इसी सप्ताह स्कूलों में सरकारी और निजी स्कूलों में नाबालिग बालिकाओं को यौन शोषण (Sexual abuse in government and private schools) का शिकार होना पड़ा.
राजस्थान में करीब डेढ़ साल बाद स्कूल खुले. स्कूल खुलने के साथ एक के बाद एक स्कूली बच्चियों के साथ यौन प्रताड़ना (sexual harassment of schoolgirls) की घटनाओं ने लाडो की सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़े किये हैं. प्रदेश में आठ साल में स्कूलों में ऐसी घटनाओं की बढ़ोतरी से अभिभावकों का चिंतित होना लाजिमी है.
इन घटनाओं ने डरा दिया है..
सामाजिक कार्यकर्ता और एक बेटी की मां मनीषा सिंह कहती हैं कि जिस तरह से पिछले कुछ साल में स्कूलों में बेटियों को लेकर जो घटनाएं हुई हैं, उन्होंने डरा दिया है. घर, मोहल्लों और सार्वजनिक स्थान पर तो बच्चियों का ख्याल रखा जा सकता है, लेकिन स्कूल में, जहां बच्चियां घर के बाद सबसे ज्यादा समय बिताती है, वहां कैसे इन हवस के भेड़ियों से अपनी मासूम बच्चियों को बचाएं.
प्रदेश में पिछले आठ साल में स्कूलों में छात्राओं के साथ दुष्कर्म या यौन प्रताडना से जुड़े मामलों में एकाएक बढ़ोतरी हुई है. राज्य पुलिस मुख्यालय (State Police Headquarters) के आंकड़ों के हिसाब से हर वर्ष करीब दो दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज किये जा रहे हैं. इनमें भी ग्रामीण इलाकों में निजी विद्यालयों में इस तरह के मामले ज्यादा हुए हैं. पिछले दिनों ही जयपुर, झुंझुनू, भीलवाड़ा और जालौर जिले के निजी और सरकारी विद्यालय में शिक्षक ने नाबालिग मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न (rape of minor girls) किया. ये तो वे घटनाएं हैं जो डेढ़ साल बाद स्कूल खुलने के साथ ही सामने आई हैं.
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किस वर्ष में कितने मामले दर्ज किए गए
वर्ष 2017 में 14 वीं विधानसभा के 8 वें सत्र में विधायक अभिषेक मटोरिया (MLA Abhishek Matoria) ने स्कूली बच्चियों के यौन उत्पीड़न के आंकड़ों की जानकारी मांगी तो सामने आया कि पांच साल में 129 प्रकरण दर्ज हुए. इनमें से 95 प्रकरणों में 138 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में पेश हुई. जबकि 31 मामलों को जांच के बाद झूठा मानते हुए एफआर लगाई गई. वहीं 2 मामलों की जांच पेंडिंग बताई गई. इसी प्रकार जनवरी 2021 में 15 वीं विधानसभा के चौथे और छठे सत्र में विधायक संयम लोढ़ा (MLA Sanyam Lodha) की ओर से मांगी गई तीन साल की रिपोर्ट में सामने आया कि वर्ष 2018 से 2020 तक 29 मामले दर्ज हुए. खास बात ये है कि पिछले डेढ़ साल से कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल बंद हैं, लेकिन स्कूल खुलने के बाद करीब आधा दर्जन मामले स्कूल में यौन उत्पीड़न के सामने आ चुके हैं.
ये तो वे मामले जो सामने आ रहे..
बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि यह चिंता की बात है कि प्रदेश में पिछले कुछ साल में स्कूलों में शिक्षक ही मासूम बच्चियों को यौन उत्पीड़न का शिकार बना रहे हैं. विजय गोयल कहते हैं कि यह तो वे मामले हैं जिनमें बच्चियों और उनके परिजनों ने हिम्मत जुटाकर मुकदमे दर्ज करा पाए, लेकिन अभी कई मामलों को दबाया जा रहा है. ऐसे में जरूरत है कि सरकार के स्तर पर स्कूलों में अभियान के जरिये बच्चियों को यौन उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ जागरूक किया जाए.
बाल संरक्षण आयोग कर रहा प्रयास
राजस्थान बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल (Rajasthan Child Protection Commission chairperson Sangeeta Beniwal) कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के दिशा निर्देशों और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत बने नियमों का ज्यादातर स्कूल पालन नहीं कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में हाल ही बाल आयोग ने एक पोस्टर का विमोचन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) से कराया है. जिसमें पॉक्सो एक्ट की जानकारी के साथ बच्चियों को 'गुड टच बेड टच' (good touch bad touch) के बारे में जागरूक किया जाएगा. साथ प्रदेश के सभी विद्यालयों में शिकायत पेटी लगाई जाएगी. जहां बच्चे अपने साथ प्रताड़ना से जुड़ी शिकायत कर सकती हैं.
सरकार के स्तर पर स्कूलों में छात्राओं को सुरक्षित और भयमुक्त रखने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं. उन्हें अच्छा स्पर्श और खराब स्पर्श से जुड़े मसलों से भी अवगत कराया जा रहा है. इसके लिए स्कूली छात्राओं को जागरूक करने के लिए सामाजिक संगठनों की भी मदद ली जा रही है. इसके बावजूद बच्चियों के साथ होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर तो अंकुश लग ही नहीं पा रहा है. यह परिजनों के साथ ही समाज के लिए भी चिंता का सबब है.