जयपुर. जयपुर चिड़ियाघर के उप वन संरक्षक उपकार बोराना के खिलाफ लोकायुक्त में परिवाद पेश किया गया है. नाहरगढ़ किले में अवैध व्यवसायिक गतिविधियों पर कार्रवाई नहीं करने पर उनके खिलाफ परिवाद पेश हुआ है. इस मामले में परिवादी राजेंद्र तिवारी की ओर से लोकायुक्त में पेश किए गए परिवाद में आरोप लगाया गया है कि उप वन संरक्षक वन्यजीव जयपुर उपकार बोराना की मिलीभगत से नाहरगढ़ किले में अवैध व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हो रही है.
राजधानी जयपुर के नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण के बीचोंबीच स्थित नाहरगढ़ किले में पुरातत्व विभाग और राजस्थान टूरिज्म डेवलपमेंट काउंसिल (आरटीडीसी) की ओर से कई दशकों से अवैध व्यवसायिक गतिविधियां संचालित की जा रही है. परिवादी की ओर से 19 जनवरी 2020 को वन विभाग में इन गतिविधियों के खिलाफ परिवाद पेश किया गया. वन विभाग ने 7 फरवरी 2020 को परिवाद की जांच सहायक वन संरक्षक वन्यजीव को सौंपी और सहायक वन संरक्षक ने 8 जुलाई को रिपोर्ट उप वन संरक्षक को सौंप दी थी. रिपोर्ट में परिवादी के सभी आरोपों को सही पाया गया. इसके बावजूद वन संरक्षक उपकार बोराना जांच रिपोर्ट को दबाए बैठे रहे.
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परिवाद में बताया गया है कि गंभीर मामला होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होना, इस बात का प्रमाण है कि इस मामले में अधिकारियों की मिलीभगत है. अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग कर अन्य वन अधिकारियों को बचाने के साथ-साथ बेरोकटोक कमर्शियल गतिविधियां संचालित होने दी जा रही है. उपकार बोराणा की ओर से न तो जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई की गई और ना ही अवैध गतिविधियों को रोका गया. नाहरगढ़ किले को अतिक्रमण मुक्त कराने के प्रयास भी नहीं किया गया. जबकि यह सभी कार्रवाई उनके अधिकार क्षेत्र में आती है. वह जब चाहते रिपोर्ट आने के बाद तुरंत कार्रवाई कर सकते थे लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. वन अभ्यारण की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर नहीं है.
साथ ही परिवाद में कहा गया कि राज्य सरकार के विभिन्न विभाग और उपक्रम अभ्यारण में वन और वन्यजीव अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं. इनमें पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग प्रमुख है. आरटीडीसी यहां बार और रेस्टोरेंट संचालित कर रहा है. विद्युत अधिकारी मिलीभगत कर कनेक्शन जारी कर रहे हैं. आबकारी विभाग ने बार का लाइसेंस दे रखा है. आमेर विकास प्राधिकरण अवैध रूप से निर्माण कार्य करने और पेड़ों का कटान कर वाणिज्यिक उपयोग के लिए वन भूमि पर अतिक्रमण करने में लगा है. नाहरगढ़ अधीक्षक का भी अतिक्रमण और वाणिज्यिक गतिविधियों में पूरा सहयोग है. नाहरगढ़ किले में नाइट टूरिज्म कराया जाता है. हालांकि, अभी जन अनुशासन पखवाड़े के चलते, यहां पर्यटन बंद है.
वन अधिकारी पर अभ्यारण्य नष्ट करने का आरोप
परिवादी ने आरोप लगाया है कि वन अधिकारी इस अभ्यारण को मिली भगत से नष्ट करने पर तुले हुए हैं. ऐसे में तो यह अभ्यारण कागजों में ही रह जाएगा और यहां के वन्यजीव समाप्त हो जाएंगे या फिर उनका शिकार हो जाएगा. ऐसे में नाहरगढ़ फोर्ट में व्यवसायिक गतिविधियां रुकवाने के लिए जांच रिपोर्ट के अनुरूप कार्रवाई की जाए. वन विभाग समेत सभी विभागों और उपक्रमों के दोषी अधिकारियों के खिलाफ वन एवं वन्य जीव अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कराई जाए. व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को सीज कर के कानूनी कार्रवाई की जाए.
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जिला कलेक्टर की ओर से 21 अगस्त 1998 को इसे नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण घोषित किया गया और वन क्षेत्र के किसी भी भाग को पृथक नहीं किया गया. नाहरगढ़ किला अभ्यारण के आरक्षित क्षेत्र के बीच में स्थित है. जिसे 1962 की अधिसूचना के तहत प्रत्येक नहीं किया गया है. ऐसे में यह किला अभ्यारण का हिस्सा है. पुरातत्व विभाग यदि किले को अपनी संपत्ति मानता है तो उसे स्वामित्व दस्तावेज पेश करने होंगे. हेरीटेज प्रॉपर्टी होने से किला पुरातत्व विभाग का नहीं हो जाता है. प्रदेश में कई हेरीटेज प्रॉपर्टी अभ्यारण में है और वन विभाग के स्वामित्व में आती है.
परिवादी राजेंद्र तिवारी ने परिवाद के साथ दस्तावेज भी पेश किए हैं. जिसमें बताया गया है कि राज्य सरकार ने आदेश जारी कर 15 जनवरी 1962 को नाहरगढ़ के वन क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित करते हुए नोटिफिकेशन जारी किया था. अगस्त 1980 में इसे वन्यजीव अभ्यारण घोषित किया गया. नारगढ़ वन्यजीव अभ्यारण का नाम दिया गया. अब इस पूरे मामले में लोकायुक्त के फैसले का इंतजार है.