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बच्चों को समझने की जरूरत, डांटने-पीटने से खराब होता है व्यवहार : मनन चतुर्वेदी

कोरोना संक्रमण के दौर में अकेलेपन के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने कहा है कि बच्चे पिटाई से सुधरते नहीं हैं, बल्कि उनका व्यवहार खराब होने लगता है. उन्होंने कहा कि बच्चों को समझने की जरूरत है.

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बच्चों को समझें, पीटें नहीं...
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Published : Jul 9, 2021, 3:53 PM IST

Updated : Jul 9, 2021, 7:35 PM IST

जयपुर. एक इंटरनेटनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक इन दिनों बच्चों के व्यवहार में बहुत ज्यादा बदलाव आया है. बच्चे बिगड़ते हैं तो माता-पिता अक्सर उनकी पिटाई करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक सजा से बच्चों का व्यवहार सुधरने के बजाय और ज्यादा बिगड़ सकता है. वे हिंसक भी हो सकते हैं.

130 से ज्यादा अनाथ बच्चों के साथ काम कर रही बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी बताती हैं कि माता-पिता मानते हैं कि शारीरिक सजा से बच्चे अनुशासित हो जाएंगे, लेकिन यह सरासर गलत है. बच्चों के साथ मार-पीट करना कोई समाधान नहीं है. यह बच्चों की आवाज को दबाने का एक जरिया हो सकता है.

मनन चतुर्वेदी Exclusive Interview, part-1

वे आगे कहती हैं कि पिटाई जैसी शारीरिक सजा से बच्चे नहीं सुधरते, बल्कि उनमें प्रतिशोध की भावना पैदा होती है. ऐसे में जरूरत है बच्चों को समझने की. नहीं तो वे जिद्दी होने लगते हैं, झूठे और बनावटी काम भी करने लगते हैं.

पढ़ें - अलवर के रामगढ़ में बवाल ! पुलिस ने भांजी लाठियां...जानें क्या है पूरा मामला

मनन चतुर्वेदी कहती हैं कि जिस तरह सुई में धागा डालने के लिए धागे को सुई के आकार की तरह बनाया जाता है, ठीक उसी तरह बच्चों को समझने के लिए बच्चों की तरह सोचना पड़ेगा. मार-पीट का डर दिखाने से बच्चे गलत आचरण अपनाने लगते हैं, झूठ बोलते हैं, बातों को मैन्युप्लेट करने लगते हैं, बच्चों में डर के साथ उनका डवलपमेंट होता है. इसलिए बच्चों को समझने के लिए माता-पिता को बच्चा नना पड़ेगा. बच्चे क्या चाहते हैं, यह बच्चों की नजर से देखना पड़ेगा.

मनन चतुर्वेदी Exclusive Interview, part-2

बच्चों को किसी वस्तु से पीटना, चेहरे सिर या कान पर मारना, थप्पड़ मारना, बच्चे पर कोई वस्तु फेंकना, मुट्ठी मुक्के या पैर से मारना शारीरिक पिटाई में शामिल हैं. इनके अलावा बच्चे का मुंह जबरन धोना, झुलसाना और चाकू या बंदूक से धमकी देना भी शामिल है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने 2006 के कन्वेंशन में कहा था कि वह बच्चों को शारीरिक सजा से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है.

ब्रिटिश मेडिकल मैगजीन 'द लॅसेट' में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. अध्ययन अमेरिका, कनाडा, चीन, जापान, और ब्रिटेन समेत 69 देशों में किया गया है. ग्लोबल पार्टनरशिप टू एंड वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रन के अनुसार 62 देशों में बच्चों को शारीरिक सजा देना अवैध है. 27 देश बच्चों को दी जाने वाली शारीरिक सजा रोकने के लिए प्रतिबद्ध है. 31 देश अब भी अपराधों के लिए बच्चों को कोड़े या बेंत मारने की अनुमति देते हैं. यूनिसेफ की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि दो से चार साल के 25 करोड़ बच्चे उन देशों में रहते हैं, जहां अनुशासित करने के लिए पीटना वैध है.

पढ़ें -कार से कुचलकर पालतू कुत्ते की हत्या, ऊपर से धमकी- जो करना है कर लो, जानवर ही तो था...मर गया तो क्या हुआ

मनन चतुर्वेदी बताती हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान एक रूह कंपा देने वाला मामला सामने आया था. जहां पिता ने अपने मासूम मासूम बेटे को उलटा लटकाकर डेढ़ घंटे तक बेल्ट और चप्पलों से पीटा था. बता दें कि अगर परेंट्स बच्चे को पीटते हैं तो उनके खिलाफ जेजे (जूवनाइल जस्टिस) एक्ट के तहत पुलिस से शिकायत की जा सकती है. बच्चे को चोट पहुंचती है तो आईपीसी के तहत भी केस दर्ज हो सकता है. जेजे ऐक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर 6 महीने तक की सजा हो सकती है.

पैरेंट्स अगर बच्चे को पीटते हैं और उसे चोट लगती है तो उनके खिलाफ धारा 323 के तहत केस दर्ज हो सकता है. इसमें आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होगी और बच्चे को कोर्ट में खुद ही अपना केस लड़ना होगा और जुर्म साबित होने पर परिजनों को जुर्माना या एक साल की कैद हो सकती है. लेकिन बच्चे को नुकीले हथियार से मारने पर धारा 324 लगती है, जिसमें 3 साल तक की सजा का प्रावधान है.

जानलेवा चोट पहुंचाने पर 326 के तहत मुकदमा दर्ज होगा, जिसमें 10 साल तक या उम्रकैद तक सजा हो सकती है. मारपीट के दौरान अगर बच्चे के सिर पर चोट लगी तो धारा 308 के तहत गैर-इरादतन हत्या की कोशिश का का केस बनेगा, जिसके तहत 3 से 7 साल तक कैद हो सकती है.

जयपुर. एक इंटरनेटनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक इन दिनों बच्चों के व्यवहार में बहुत ज्यादा बदलाव आया है. बच्चे बिगड़ते हैं तो माता-पिता अक्सर उनकी पिटाई करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक सजा से बच्चों का व्यवहार सुधरने के बजाय और ज्यादा बिगड़ सकता है. वे हिंसक भी हो सकते हैं.

130 से ज्यादा अनाथ बच्चों के साथ काम कर रही बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी बताती हैं कि माता-पिता मानते हैं कि शारीरिक सजा से बच्चे अनुशासित हो जाएंगे, लेकिन यह सरासर गलत है. बच्चों के साथ मार-पीट करना कोई समाधान नहीं है. यह बच्चों की आवाज को दबाने का एक जरिया हो सकता है.

मनन चतुर्वेदी Exclusive Interview, part-1

वे आगे कहती हैं कि पिटाई जैसी शारीरिक सजा से बच्चे नहीं सुधरते, बल्कि उनमें प्रतिशोध की भावना पैदा होती है. ऐसे में जरूरत है बच्चों को समझने की. नहीं तो वे जिद्दी होने लगते हैं, झूठे और बनावटी काम भी करने लगते हैं.

पढ़ें - अलवर के रामगढ़ में बवाल ! पुलिस ने भांजी लाठियां...जानें क्या है पूरा मामला

मनन चतुर्वेदी कहती हैं कि जिस तरह सुई में धागा डालने के लिए धागे को सुई के आकार की तरह बनाया जाता है, ठीक उसी तरह बच्चों को समझने के लिए बच्चों की तरह सोचना पड़ेगा. मार-पीट का डर दिखाने से बच्चे गलत आचरण अपनाने लगते हैं, झूठ बोलते हैं, बातों को मैन्युप्लेट करने लगते हैं, बच्चों में डर के साथ उनका डवलपमेंट होता है. इसलिए बच्चों को समझने के लिए माता-पिता को बच्चा नना पड़ेगा. बच्चे क्या चाहते हैं, यह बच्चों की नजर से देखना पड़ेगा.

मनन चतुर्वेदी Exclusive Interview, part-2

बच्चों को किसी वस्तु से पीटना, चेहरे सिर या कान पर मारना, थप्पड़ मारना, बच्चे पर कोई वस्तु फेंकना, मुट्ठी मुक्के या पैर से मारना शारीरिक पिटाई में शामिल हैं. इनके अलावा बच्चे का मुंह जबरन धोना, झुलसाना और चाकू या बंदूक से धमकी देना भी शामिल है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने 2006 के कन्वेंशन में कहा था कि वह बच्चों को शारीरिक सजा से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है.

ब्रिटिश मेडिकल मैगजीन 'द लॅसेट' में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. अध्ययन अमेरिका, कनाडा, चीन, जापान, और ब्रिटेन समेत 69 देशों में किया गया है. ग्लोबल पार्टनरशिप टू एंड वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रन के अनुसार 62 देशों में बच्चों को शारीरिक सजा देना अवैध है. 27 देश बच्चों को दी जाने वाली शारीरिक सजा रोकने के लिए प्रतिबद्ध है. 31 देश अब भी अपराधों के लिए बच्चों को कोड़े या बेंत मारने की अनुमति देते हैं. यूनिसेफ की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि दो से चार साल के 25 करोड़ बच्चे उन देशों में रहते हैं, जहां अनुशासित करने के लिए पीटना वैध है.

पढ़ें -कार से कुचलकर पालतू कुत्ते की हत्या, ऊपर से धमकी- जो करना है कर लो, जानवर ही तो था...मर गया तो क्या हुआ

मनन चतुर्वेदी बताती हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान एक रूह कंपा देने वाला मामला सामने आया था. जहां पिता ने अपने मासूम मासूम बेटे को उलटा लटकाकर डेढ़ घंटे तक बेल्ट और चप्पलों से पीटा था. बता दें कि अगर परेंट्स बच्चे को पीटते हैं तो उनके खिलाफ जेजे (जूवनाइल जस्टिस) एक्ट के तहत पुलिस से शिकायत की जा सकती है. बच्चे को चोट पहुंचती है तो आईपीसी के तहत भी केस दर्ज हो सकता है. जेजे ऐक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर 6 महीने तक की सजा हो सकती है.

पैरेंट्स अगर बच्चे को पीटते हैं और उसे चोट लगती है तो उनके खिलाफ धारा 323 के तहत केस दर्ज हो सकता है. इसमें आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होगी और बच्चे को कोर्ट में खुद ही अपना केस लड़ना होगा और जुर्म साबित होने पर परिजनों को जुर्माना या एक साल की कैद हो सकती है. लेकिन बच्चे को नुकीले हथियार से मारने पर धारा 324 लगती है, जिसमें 3 साल तक की सजा का प्रावधान है.

जानलेवा चोट पहुंचाने पर 326 के तहत मुकदमा दर्ज होगा, जिसमें 10 साल तक या उम्रकैद तक सजा हो सकती है. मारपीट के दौरान अगर बच्चे के सिर पर चोट लगी तो धारा 308 के तहत गैर-इरादतन हत्या की कोशिश का का केस बनेगा, जिसके तहत 3 से 7 साल तक कैद हो सकती है.

Last Updated : Jul 9, 2021, 7:35 PM IST
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