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SPECIAL: हाथी पालकों पर Lockdown की छाया, धंधा ठप तो गुजारा हुआ मुश्किल

लॉकडाउन के चलते राजस्थान का पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हो गया है. ऐसे में पर्यटन और जलसों पर आधारित हाथी सवारी करवाने वाले महावतों और उनका पालन करने वालों पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. बीते 2 महीने में इन लोगों के लिए काम नहीं होने के कारण हाथियों को जमा पूंजी के जरिए पालना पड़ रहा है. ऐसे हालात में इन लोगों के लिए दिन-ब-दिन मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.

business of elephant tourism, Elephant ride in jaipur
लॉकडाउन से हाथी पालकों पर आर्थिक संकट
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Published : May 14, 2020, 4:28 PM IST

जयपुर. लॉकडाउन के चलते देश भर के व्यवसाय प्रभावित हुए हैं. जिसके लिए सरकार की तरफ से राहत पैकेज के एलान भी हो चुके हैं. लेकिन जयपुर में एक वर्ग का व्यवसाय इस राहत पैकेज से अछूता है. यह वर्ग है जयपुर के पर्यटन और जलसों पर आधारित हाथी सवारी करवाने वाले महावतों का.

इन हाथी पालकों का कहना है कि पर्यटन पर लॉकडाउन की छाया पड़ते ही इनका कामकाज ठप हो चुका है और खर्चा जस का तस है. ऐसे में इन लोगों के लिए हाथियों को पालना मुश्किल हो चुका है. जयपुर शहर में वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत रजिस्टर्ड 103 हाथी हैं, जो विभिन्न आयोजनों में शरीक होकर राजशाही ठाट बाट का प्रतीक बनते हैं. लेकिन इस वक्त हाथियों के पालक उनके लिए दो वक्त का खाना भी मुश्किल से जुटा पा रहे हैं.

लॉकडाउन से हाथी पालकों पर आर्थिक संकट

जयपुर शहर के आमेर किले में अगर कोई सैलानी आता है तो उसकी ख्वाहिश होती है कि वो हाथी की सवारी करते हुए किले का दीदार करे. किले पर मौजूद हाथीपोल से गणेश पोल तक जाने पर हाथी उसे शाही सवारी महसूस करवाता है. इसी तरह से हाथी गांव पर पहुंचने वाले सैलानी भी नजदीक से जंगल के सबसे बड़े प्राणी के साथ फोटो खिंचवाते हैं. उन्हें केले खिलाते हैं और उनकी सवारी करते हैं.

पढ़ें- विशेष: आर्थिक पैकेज का एक ही लक्ष्य बाजार में तरलता बनी रहे: सुनील मेहता

ऐसे में हाथी पालकों की रोजाना 4 से 5 हजार की आय होती है. लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है और पर्यटन उद्योग पर कोरोना वायरस की काली छाया पड़ी है. जयपुर शहर की पर्यटन व्यवसाय की रीढ़ समझे जाने वाले हाथी सवारी के इस परंपरागत काम को ग्रहण लग चुका है. ऐसे में हाथी पालने वाले यह लोग अब हर दिन मुश्किल से बसर कर रहे हैं.

इन लोगों का कहना है कि एक हाथी को पालने के लिए रोजाना तीन से चार हजार रुपए का खर्चा हो जाता है, जो 1 महीने में लगभग एक लाख रुपए पर बैठता है. बीते 2 महीने में इन लोगों के लिए काम नहीं होने के कारण हाथियों को जमा पूंजी के जरिए पालना पड़ रहा है. ऐसे हालात में इन लोगों के लिए दिन-ब-दिन मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.

business of elephant tourism, Elephant ride in jaipur
हाथी गांव में रहते हैं 63 हाथी

हाथी पालकों ने बताया कि अगर एक-दो हफ्ते और ऐसे ही हालात रहे तो वह अब इन हाथियों का पेट भरने में खुद को लाचार महसूस करेंगे. बता दें कि एक हाथी की खुराक रोजाना चारा गन्ना केला और रंजका से पूरी होती है. इसके साथ-साथ सूखे जौ को भी इन हाथियों को परोसा जाता है. अब लॉकडाउन के बाद चारा गोदाम में मौजूद गन्ना और जौ इन हाथियों को दिया जा रहा है. हाथियों का पसंदीदा केला अब इनकी खुराक का हिस्सा नहीं है. कभी कभार नजदीक के खेतों से रंजका मिल जाता है.

पढ़ें- स्पेशल: कश्मीरी प्रवासियों ने जाहिर की पीड़ा, ना मिल रहा राशन और किराया भी वसूला

ऐसे में अब गोदाम भी खाली हो चुके हैं और लंबे समय तक इन हाथियों को पालना मुश्किल हो रहा है. जयपुर शहर में शादियों के साथ-साथ बड़े आयोजनों में भी हाथी लाना एक वर्ग विशेष के लिए सम्मान का प्रतीक समझा जाता है और पर्यटन के साथ-साथ ऐसे आयोजन के जरिए हाथी पालक खुद का गुजारा आराम से कर लेते हैं.

लेकिन अब लॉक डाउन के चलते हावी हुई मंदी ने इन लोगों की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है. ऐसे में हाथी पालक सरकार के तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. जयपुर के आमेर स्थित हाथी गांव में कुल 63 हाथी रहते हैं. वहीं, बाहर के हिस्सों में भी 40 के करीब हाथी मौजूद है और इन सब लोगों के लिए फिलहाल मुश्किलें पहाड़ बनकर खड़ी हैं.

जयपुर. लॉकडाउन के चलते देश भर के व्यवसाय प्रभावित हुए हैं. जिसके लिए सरकार की तरफ से राहत पैकेज के एलान भी हो चुके हैं. लेकिन जयपुर में एक वर्ग का व्यवसाय इस राहत पैकेज से अछूता है. यह वर्ग है जयपुर के पर्यटन और जलसों पर आधारित हाथी सवारी करवाने वाले महावतों का.

इन हाथी पालकों का कहना है कि पर्यटन पर लॉकडाउन की छाया पड़ते ही इनका कामकाज ठप हो चुका है और खर्चा जस का तस है. ऐसे में इन लोगों के लिए हाथियों को पालना मुश्किल हो चुका है. जयपुर शहर में वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत रजिस्टर्ड 103 हाथी हैं, जो विभिन्न आयोजनों में शरीक होकर राजशाही ठाट बाट का प्रतीक बनते हैं. लेकिन इस वक्त हाथियों के पालक उनके लिए दो वक्त का खाना भी मुश्किल से जुटा पा रहे हैं.

लॉकडाउन से हाथी पालकों पर आर्थिक संकट

जयपुर शहर के आमेर किले में अगर कोई सैलानी आता है तो उसकी ख्वाहिश होती है कि वो हाथी की सवारी करते हुए किले का दीदार करे. किले पर मौजूद हाथीपोल से गणेश पोल तक जाने पर हाथी उसे शाही सवारी महसूस करवाता है. इसी तरह से हाथी गांव पर पहुंचने वाले सैलानी भी नजदीक से जंगल के सबसे बड़े प्राणी के साथ फोटो खिंचवाते हैं. उन्हें केले खिलाते हैं और उनकी सवारी करते हैं.

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ऐसे में हाथी पालकों की रोजाना 4 से 5 हजार की आय होती है. लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है और पर्यटन उद्योग पर कोरोना वायरस की काली छाया पड़ी है. जयपुर शहर की पर्यटन व्यवसाय की रीढ़ समझे जाने वाले हाथी सवारी के इस परंपरागत काम को ग्रहण लग चुका है. ऐसे में हाथी पालने वाले यह लोग अब हर दिन मुश्किल से बसर कर रहे हैं.

इन लोगों का कहना है कि एक हाथी को पालने के लिए रोजाना तीन से चार हजार रुपए का खर्चा हो जाता है, जो 1 महीने में लगभग एक लाख रुपए पर बैठता है. बीते 2 महीने में इन लोगों के लिए काम नहीं होने के कारण हाथियों को जमा पूंजी के जरिए पालना पड़ रहा है. ऐसे हालात में इन लोगों के लिए दिन-ब-दिन मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.

business of elephant tourism, Elephant ride in jaipur
हाथी गांव में रहते हैं 63 हाथी

हाथी पालकों ने बताया कि अगर एक-दो हफ्ते और ऐसे ही हालात रहे तो वह अब इन हाथियों का पेट भरने में खुद को लाचार महसूस करेंगे. बता दें कि एक हाथी की खुराक रोजाना चारा गन्ना केला और रंजका से पूरी होती है. इसके साथ-साथ सूखे जौ को भी इन हाथियों को परोसा जाता है. अब लॉकडाउन के बाद चारा गोदाम में मौजूद गन्ना और जौ इन हाथियों को दिया जा रहा है. हाथियों का पसंदीदा केला अब इनकी खुराक का हिस्सा नहीं है. कभी कभार नजदीक के खेतों से रंजका मिल जाता है.

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ऐसे में अब गोदाम भी खाली हो चुके हैं और लंबे समय तक इन हाथियों को पालना मुश्किल हो रहा है. जयपुर शहर में शादियों के साथ-साथ बड़े आयोजनों में भी हाथी लाना एक वर्ग विशेष के लिए सम्मान का प्रतीक समझा जाता है और पर्यटन के साथ-साथ ऐसे आयोजन के जरिए हाथी पालक खुद का गुजारा आराम से कर लेते हैं.

लेकिन अब लॉक डाउन के चलते हावी हुई मंदी ने इन लोगों की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है. ऐसे में हाथी पालक सरकार के तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. जयपुर के आमेर स्थित हाथी गांव में कुल 63 हाथी रहते हैं. वहीं, बाहर के हिस्सों में भी 40 के करीब हाथी मौजूद है और इन सब लोगों के लिए फिलहाल मुश्किलें पहाड़ बनकर खड़ी हैं.

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