जयपुर. देश 72वां आर्मी डे मना रहा है. ऐसे में देश के उन वीर सेनानियों को याद किया जा रहा है, जिन्होंने अपनी जान देकर देश की सीमाओं की रक्षा की है. देश के हर उस जवान को सलाम है. राजस्थान ने भी एक से बढ़कर एक वीर सपूत देश को दिए हैं. जिन्हें राजस्थान ही नहीं भारत भी हमेशा याद करेगा.
परमवीर चक्र मेजर शैतान सिंह
इनमें सबसे पहले आते हैं परमवीर चक्र मेजर शैतान सिंह. यह नाम जब भी लिया जाता है तो सेना के साथ हर देशवासी का सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है. हमारी आर्मी में ऐसे वीर योद्धा रहे हैं, जो युद्ध भूमि छोड़ने के बजाए दुश्मन से लड़ते हुए वीरगति को पाना बेहतर मानते थे. ऐसे ही अदम्य साहस के प्रतीक 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट के 123 जवानों के सेनानायक मेजर शैतान सिंह भाटी थे.
याक को भेजकर था गोलियां खत्म करने का प्लान
मेजर शैतान सिंह भाटी भारत-चीन युद्ध के दौरान समुद्र तल से 16,404 फीट ऊपर चुशूल क्षेत्र में विपरीत परिस्थितियों में तैनात थे. चीनी सेना को यह जानकारी थी, कि इस पोस्ट पर केवल 123 सैनिक तैनात थे. जिनके पास करीब 400 राउंड गोलियां और करीब 1000 हथ गोले हैं. ऐसे में चीनियों ने लाल लाइट बांधकर याक को भारतीय पोस्ट की ओर दौड़ा दिया. जिसके चलते भारतीय सैनिकों ने याक को ही अपना दुश्मन मान कर हमला कर दिया, लेकिन कुछ ही देर में मेजर शैतान सिंह को एहसास हो गया, कि वह जिसे चीनी सैनिक मानकर हमला कर रहे हैं, वह सैनिक नहीं है और इस योजना से चीनी सेना रेजीमेंट के हथियार खत्म करना चाहती है.
फिर भी नहीं हटे पीछे
मेजर शैतान सिंह ने इस बात की जानकारी अपने उच्च अधिकारियों को दी, जिन्होंने मेजर शैतान सिंह को पीछे हटने के लिए कह दिया, लेकिन मेजर शैतान सिंह ने पीछे हटकर अपनी रेजीमेंट को शर्मसार करने की जगह लड़ने की ठान ली. इस दौरान मेजर के तमाम 123 सैनिकों ने भी मेजर शैतान सिंह के साथ वहीं रहने का फैसला किया और निश्चय किया, कि हर गोली को चीनी सैनिकों का निशाना बनाना है. इसी विश्वास के साथ वह 123 सैनिक दो हजार चीनी सैनिकों से भिड़ गए.
पैरों पर लाइट मशीन गन बांधकर आखिरी सांस तक लड़े मेजर
चीनी सेना के भयंकर हमले के बाद इस रेजीमेंट का हर सैनिक 10 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मारता हुआ शहीद होता गया. अंत में मेजर शैतान सिंह के साथ मात्र कुछ सैनिक बुरी तरह घायल होकर बचे. जिनमें से 2 सैनिक मेजर शैतान सिंह को बचाकर एक पहाड़ी पर ले आए. इस दौरान मेजर के दोनों हाथ घायल हो चुके थे और सैनिकों ने उन्हें नीचे जाने का आग्रह किया, लेकिन बहादुर शैतान सिंह ने नीचे जाने के बजाय दोनों सैनिकों से कहा, कि उनके पैरों पर लाइट मशीन गन बांध दें ताकि वह दुश्मन पर मरते दम तक फायर करते रहें. फिर क्या था हुआ भी ऐसा ही मेजर शैतान सिंह तब तक अपने पैरों से फायरिंग करते रहे, जब तक कि वह शहीद नहीं हो गए.
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3 महीने के बाद उसी हालत में मिला मृत शरीर
युद्ध के 3 महीने के बाद मेजर शैतान सिंह के परिजनों ने उनके मृत शरीर को खोजने का आग्रह किया तो रेड क्रॉस सोसाइटी के सदस्यों ने उनको खोजने का प्रयास किया. एक गडरिया की सूचना पर मेजर शैतान सिंह का शव जब मिला तो वो उसी हालत में अपनी एलएमजी के साथ मिला. जिस हालत में दोनों सैनिकों ने मेजर को छोड़ा था. यही नहीं उनके तमाम सैनिक भी उसी तरह से अपने हथियारों के साथ मिले.
आपको बता दें, कि बाद में चीनी सेना ने भी यह स्वीकार किया, कि उसे सबसे ज्यादा सैनिक रेजांग ला दर्रे पर ही खोने पड़े. जहां 114 सैनिकों को मारने के लिए उसे 2000 में से 1800 सैनिकों को खोना पड़ा. इस युद्ध में 123 में से 109 सैनिक इस लड़ाई में शहीद हुए थे. मेजर शैतान सिंह के इसी अदम्य साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र दिया गया था. भारत के ऐसे योद्धाओं को ईटीवी भारत सलाम करता है.