जयपुर/सीकर.
ख़ुदा तौफीक़ देता है जिन्हें, वो यह समझते हैं,
कि ख़ुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तक़दीरें.
प्रसिद्ध शायर अफ़सर मराठी की इन पंक्तियों को आज सीकर की 14 साल की शालिनी चौधरी सही मायने में चरितार्थ कर रही है. शालिनी जन्म के साथ ही देख नहीं सकती थी. लेकिन, आज जो वो देख सकती है वो दोनों आंखों वाला भी नहीं देख सकता.
शालिनी को राजस्थान की पहली दृष्टिहीन चैंपियन एथलीट होने का गौरव हासिल है. छह माह पूर्व स्विट्जरलैंड में आयोजन हुई पैरा जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शालिनी ने अपने प्रदर्शन का लोहा मनवाया था.
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इस चैंपियनशिप में शालिनी ने 400 मीटर, 800 मीटर और 1500 मीटर दौड़ में देश का प्रतिनिधित्व किया था. इसके अलावा शालिनी ने साल 2016 में सातवीं पैरा एथलीट चैंपियनशिप में 100 मीटर, 200 मीटर और रिले में भाग लिया था. यहां उन्होंने तीन गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता था.
शालिनी की उपलब्धियों की फेहरिस्त काफी लंबी है. साल 2017 में उन्होंने उदयपुर में आयोजित हुई राजस्थान पैरा एथलीट चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था.
सामान्य बच्चों के साथ करती है पढ़ाई..
हर मां की तरह ही शालिनी की मां को भी अपनी बेटी पर गर्व है. शालिनी की मां सरोज ने बताया, कि परिवार ने खेल के लिए हमेशा उसे प्रेरित किया है. इतना ही नहीं शालिनी खेल के साथ ही हमेशा पढ़ाई में भी अव्वल रही है.
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शालिनी की मां का कहना है, कि उन्होंने बचपन से ही शालिनी को प्रेरित किया है. दृष्टिहीन होने के बावजूद वह सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ाई करती है और उन्हीं के साथ खेलती-कूदती भी है.
चुनौतियों का करना चाहिए मुकाबला...
अपनी सफलता के बारे में शालिनी का कहना है, कि चुनौतियों का हमेशा मुकाबला करना चाहिए. जब मैंने खेल की शुरुआत की तो मुझे कुछ भी पता नहीं था. लेकिन, इन चुनौतियों का सामना करते हुए आज मैंने अपना एक मुकाम हासिल किया है.
मैं कर सकती हूँ तो कोई भी कर सकता है....
नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के विशेष मौके पर शालिनी ने कहा, कि जब मैं कर सकती हूँ तो कोई भी कर सकता है. शालिनी का मानना है, कि सभी माता-पिताओं को अपनी बच्चियों को बढ़ाना-लिखाना चाहिए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें.