ETV Bharat / city

प्रदेश में दल निरपेक्ष पंचायती राज चुनाव के खिलाफ भाजपा ने जताई नाराजगी

प्रदेश की कांग्रेस सरकार अब राजस्थान में पंचायतों की तर्ज पर पंचायत समिति, जिला परिषद चुनाव बिना सिंबल के करवाने की तैयारी कर रही है. ऐसे में भाजपा इसका विरोध कर रही है.

Zilla Parishad election without symbol, बिना सिंबल चुनाव का भाजपा का विरोध
बिना सिंबल चुनाव का भाजपा का विरोध
author img

By

Published : Oct 24, 2020, 3:10 PM IST

जयपुर. राजस्थान में एक ओर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस भाजपा आमने-सामने हैं. वहीं दूसरी ओर अब प्रदेश की कांग्रेस सरकार राजस्थान में पंचायतों की तर्ज पर पंचायत समिति, जिला परिषद चुनाव बिना सिंबल के करवाने की तैयारी कर रही है. मुख्यमंत्री ने इसे लेकर कांग्रेस और समर्थित विधायकों से राय भी ली है.

बिना सिंबल चुनाव का भाजपा का विरोध

हालांकि इस पर अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन जैसे ही यह चर्चा सामने आई कि कांग्रेस सरकार राजस्थान में 25 साल से चल रहे प्रावधान को कभी भी अध्यादेश लाकर बदल सकती है, भाजपा ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. दरअसल प्रदेश में सभी पंचायत समितियों और जिला परिषदों के चुनाव जल्द ही करवाए जाने हैं. जिनमें सरकार की ओर से यह चुनाव बिना सिंबल के करवाने पर विचार चल रहा है.

पढ़ेंः 26 अक्टूबर से शुरू होगा राजस्थान पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा के मूल दस्तावेजों का सत्यापन

वहीं अभी सरकार ने इस पर विधायकों की राय मांगी है और अंतिम निर्णय होना बाकी है, लेकिन प्रदेश की भाजपा इस निर्णय के विरोध में उतर आई है. इस कड़ी में शनिवार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि 20 महीने की कांग्रेस सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश है और जिस तरीके से जोड़-तोड़ और जुगाड़ कर नगर निगम में चुनाव जीतने के कांग्रेस ने प्रयास किया और परिसीमन में गड़बड़ियां कर अपने वोट बैंक को इंटैक्ट करने का प्रयास कांग्रेस पार्टी ने किया, उसमें तो वह विफल होंगे.

अब कांग्रेस गांव में भी ऐसा ही प्रयास करने की सोच रही है, लेकिन गांवों में शहरों से भी ज्यादा कांग्रेस पार्टी के 20 महीने के शासन के खिलाफ विरोध है. जिस तरीके से कांग्रेस सरकार ने किसान विरोधी काम किए हैं और बिजली के बिलों को लेकर किसानों में आक्रोश है. ऐसे में अगर चुनाव चिन्ह पर चुनाव होता है, तो संख्यात्मक हिसाब से यह मैंडेट सरकार के खिलाफ जाता है और अगर चुनाव बिना सिंबल के चुनाव होते हैं, तो यह गिनती नहीं हो सकती. कांग्रेस कितनी जगह जीती और भाजपा कितनी जगह.

ऐसे में फेस सेविंग के लिए कांग्रेस पार्टी इस तरीके से चुनाव कराने पर विचार कर रही है, जो सही नहीं है, उन्होंने कहा कि नब्बे के दशक में जब यह निर्णय लिया गया था, तो उससे लोगों को लाभ भी हुआ था. ग्रास रूट की पॉलिटिक्स भी अब राजनीतिक पार्टी के साथ जुड़कर होती है. गौरतलब है कि 1995 से पहले पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव बिना सिंबल के होते थे और उस समय पंच, सरपंच मिलकर प्रधान चुनते थे और सरपंच, प्रधान, विधायक मिलकर जिला प्रमुख बनाते थे.

पढ़ेंः धोखाधड़ी के आरोप में शक्ति भोग आटा कंपनी के एमडी व उसके दोनों बेटे गिरफ्तार

पंचायत समिति और जिला परिषद के सदस्य नहीं होते थे. तत्कालीन सीएम दिवंगत भैरों सिंह शेखावत ने ही सबसे पहले थ्री टियर पंचायती राज व्यवस्था में पंचायत समिति सदस्य, प्रधान, जिला परिषद सदस्य और जिला प्रमुख का चुनाव पार्टी सिंबल पर कराने का फैसला लिया था. हालांकि अभी इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है क्योंकि विधायकों की राय इस पर सरकार को मिली जुली मिल रही है.

जयपुर. राजस्थान में एक ओर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस भाजपा आमने-सामने हैं. वहीं दूसरी ओर अब प्रदेश की कांग्रेस सरकार राजस्थान में पंचायतों की तर्ज पर पंचायत समिति, जिला परिषद चुनाव बिना सिंबल के करवाने की तैयारी कर रही है. मुख्यमंत्री ने इसे लेकर कांग्रेस और समर्थित विधायकों से राय भी ली है.

बिना सिंबल चुनाव का भाजपा का विरोध

हालांकि इस पर अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन जैसे ही यह चर्चा सामने आई कि कांग्रेस सरकार राजस्थान में 25 साल से चल रहे प्रावधान को कभी भी अध्यादेश लाकर बदल सकती है, भाजपा ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. दरअसल प्रदेश में सभी पंचायत समितियों और जिला परिषदों के चुनाव जल्द ही करवाए जाने हैं. जिनमें सरकार की ओर से यह चुनाव बिना सिंबल के करवाने पर विचार चल रहा है.

पढ़ेंः 26 अक्टूबर से शुरू होगा राजस्थान पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा के मूल दस्तावेजों का सत्यापन

वहीं अभी सरकार ने इस पर विधायकों की राय मांगी है और अंतिम निर्णय होना बाकी है, लेकिन प्रदेश की भाजपा इस निर्णय के विरोध में उतर आई है. इस कड़ी में शनिवार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि 20 महीने की कांग्रेस सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश है और जिस तरीके से जोड़-तोड़ और जुगाड़ कर नगर निगम में चुनाव जीतने के कांग्रेस ने प्रयास किया और परिसीमन में गड़बड़ियां कर अपने वोट बैंक को इंटैक्ट करने का प्रयास कांग्रेस पार्टी ने किया, उसमें तो वह विफल होंगे.

अब कांग्रेस गांव में भी ऐसा ही प्रयास करने की सोच रही है, लेकिन गांवों में शहरों से भी ज्यादा कांग्रेस पार्टी के 20 महीने के शासन के खिलाफ विरोध है. जिस तरीके से कांग्रेस सरकार ने किसान विरोधी काम किए हैं और बिजली के बिलों को लेकर किसानों में आक्रोश है. ऐसे में अगर चुनाव चिन्ह पर चुनाव होता है, तो संख्यात्मक हिसाब से यह मैंडेट सरकार के खिलाफ जाता है और अगर चुनाव बिना सिंबल के चुनाव होते हैं, तो यह गिनती नहीं हो सकती. कांग्रेस कितनी जगह जीती और भाजपा कितनी जगह.

ऐसे में फेस सेविंग के लिए कांग्रेस पार्टी इस तरीके से चुनाव कराने पर विचार कर रही है, जो सही नहीं है, उन्होंने कहा कि नब्बे के दशक में जब यह निर्णय लिया गया था, तो उससे लोगों को लाभ भी हुआ था. ग्रास रूट की पॉलिटिक्स भी अब राजनीतिक पार्टी के साथ जुड़कर होती है. गौरतलब है कि 1995 से पहले पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव बिना सिंबल के होते थे और उस समय पंच, सरपंच मिलकर प्रधान चुनते थे और सरपंच, प्रधान, विधायक मिलकर जिला प्रमुख बनाते थे.

पढ़ेंः धोखाधड़ी के आरोप में शक्ति भोग आटा कंपनी के एमडी व उसके दोनों बेटे गिरफ्तार

पंचायत समिति और जिला परिषद के सदस्य नहीं होते थे. तत्कालीन सीएम दिवंगत भैरों सिंह शेखावत ने ही सबसे पहले थ्री टियर पंचायती राज व्यवस्था में पंचायत समिति सदस्य, प्रधान, जिला परिषद सदस्य और जिला प्रमुख का चुनाव पार्टी सिंबल पर कराने का फैसला लिया था. हालांकि अभी इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है क्योंकि विधायकों की राय इस पर सरकार को मिली जुली मिल रही है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.