बीकानेर. 'दे दी तूने आजादी बिना खड़ग, बिना ढाल..साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल..' ये पंक्तियां उस व्यक्ति के लिए हैं, जिसने सारी जिंदगी अहिंसा को परम धर्म माना और अहिंसा को किसी भी लड़ाई के लिए सबसे बड़ा हथियार.
ब्रिटिश हुकूमत को हिलाने के लिए गांधी ने सत्य और अहिंसा की ताकतों का सहारा लिया. अपने सिद्धांतों और आदर्शों के जरिए एक अकेले साधारण आदमी ने पूरे देश को एक साथ मिलकर आवाज उठाने का हौसला दिया, महात्मा गांधी ऐसा करने में सफल भी रहे. राष्ट्रपिता के रूप में पूरे देश की जनता उन्हें मानती है और स्वाधीनता आंदोलन के उस दौर में पूरे देश में महात्मा गांधी घूमे.
इतिहास के पन्नों से जानकारी मिलती है कि राजस्थान में बापू तकरीबन दो से तीन बार आए और तीनों ही बार अजमेर का दौरा किया. बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार में बापू के हाथ का लिखा एक मूल पत्र आज भी संरक्षित है, जो बिजौलिया किसान आंदोलन के अगुवा विजय सिंह पथिक को लिखा गया था. इस पत्र में बापू ने विजय सिंह पथिक को पत्र लिखने और मिलने की बात कही थी.
बीकानेर राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खड़गावत कहते हैं कि अभिलेखागार के दस्तावेजों के मुताबिक बापू अपने जीवन काल में राजस्थान में सिर्फ अजमेर आए थे और इस दौरान स्वाधीनता संग्राम से जुड़े लोगों से मिले थे. उन लोगों ने बाद में बापू से मुलाकात के संस्मरण भी लिखे हैं.
उन्होंने कहा कि बापू सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और जीवन भर उन आदर्शों को कैसे जिया, इसकी जानकारी उन स्वाधीनता आंदोलन के जुड़े लोगों ने बापू से मुलाकात के बाद लिखे संस्मरण में बताई है. वे कहते हैं कि बापू ने हमेशा हिंदी को बढ़ावा दिया और इसका उल्लेख इस बात से भी मिलता है कि बीकानेर रियासत के तत्कालीन दीवान के एम. पणिकर को पत्र लिखकर हिंदी में पत्राचार करने की सलाह दी.
दरअसल उस वक्त बीकानेर रियासत की ओर से कुछ पत्र अंग्रेजी में लिखे गए थे, जिसको लेकर बापू ने पणिकर को पत्र लिखा था और इसका उल्लेख अभिलेखागार के दस्तावेजों में मिलता है. कुल मिलाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है, आज बीकानेर में उनके हाथ का लिखा पत्र संरक्षित है, और बापू के इन्हीं शब्दों से बीकानेर का गहरा जुड़ाव हो गया है.