बीकानेर. देश को आजाद हुए 75 साल होने को हैं और इन 75 सालों में देश काफी आगे बढ़ा है. आज भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शुमार है जो अपनी अलग पहचान रखते हैं. लेकिन आजादी लंबी लड़ाई के बाद मिली और उस वक्त आजादी के इस संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की महिलाओं ने भी अपने परिजनों का बखूबी साथ दिया.
कुछ महिलाएं अपने स्तर पर अपने परिवार से इत्तर स्वाधीनता आंदोलन के संग्राम में कूद पड़ीं. बीकानेर की राजस्थान राज्य अभिलेखागार ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्षों को डिजिटलाइज करते हुए आम लोगों तक पहुंचाने का एक प्रयास किया है. अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खडगावत के प्रयासों से स्वतंत्रा सेनानियों के साक्षात्कार और संघर्ष की कहानी को रिकॉर्ड किया गया और आम लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म का भी सहारा लिया जा रहा है.
इस रिकॉर्ड की मानें तो स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों में बड़ी संख्या महिलाओं की भी थी. आज हम आपको रू-ब-रू करवा रहे हैं ऐसे ही महिला स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष से. राजस्थान के इतिहास को स्वतंत्रता आंदोलन के नजरिए से देखा जाए तो कई महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने इसमें भाग लिया. ईटीवी भारत की स्वाधीनता दिवस के मौके पर इस खास पेशकश में आप भी सुनिए उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की कहानी.
स्नेह लता वर्मा : स्वतंत्रता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा की पुत्री स्नेह लता ने अपनी दादी के साथ बिजोलिया किसान आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस कारण से उन्हें छोटी सी उम्र में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. उन्हें मिर्च की कोठरी में बंद कर दिया गया. देश को स्वतंत्र कराने और मेवाड़ के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष और काम किया.
शकुंतला त्रिवेदी : अपने पति भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी के साथ रतलाम और बांसवाड़ा क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाने में शकुंतला त्रिवेदी का बड़ा योगदान रहा. भूपेंद्र नाथ उस समय के प्रख्यात क्रांतिकारी और पत्रकार थे, जो मुंबई से संग्राम नामक समाचार पत्र का संपादन करते थे. अपने पति के मजबूत इरादों के साथ खुद शकुंतला त्रिवेदी कदम से कदम मिलाकर साथ रहीं और क्रांतिकारियों को बंदूक-बम पहुंचाना, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना और उन्हें शरण देने का काम किया.
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अपने पति के साथ कई बार उन्होंने जेल की यातनाओं को भी सहन किया. जय नारायण व्यास मथुरा दास माथुर, धूल जी भावसार और द्वारका प्रसाद जैसे बड़े स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर उन्होंने निचले तबके के उत्थान को लेकर काफी काम किया. इस दौरान सामंतों एवं जागीरदारों का विरोध करने के कारण कई बार इन पर आत्मघाती हमले भी हुए.
रतन देवी शास्त्री : राजस्थान की प्रसिद्ध वनस्थली विद्यापीठ की संस्थापिका रतनदेवी ने अपने पति और राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री के स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास में काफी संघर्ष किए. तत्कालीन समय में महिलाओं की शिक्षा को लेकर वनस्थली विद्यापीठ जैसा दुष्कर कार्य सफल करने का बड़ा श्रेय उन्हीं को जाता है. यही कारण है कि आज भी वनस्थली विद्यापीठ शास्त्री दंपती के बताए सिद्धांतों पर चल रही है.
भगवती देवी विश्नोई : स्वतंत्रता सेनानी हरि भाई किनकर की प्रेरणा से गोविंदगढ़ में एक आदि का प्रशिक्षण देने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए निर्देशों के अनुसार भगवती देवी ने नारी आश्रम वर्धा में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाते हुए स्वतंत्रता आंदोलन के पर्चे वितरित किए और भाषण दिए. वहीं, समाज सुधार को लेकर उन्होंने कहा कई कार्य किए. अपने पति चंद विश्नोई के साथ विवाह के बाद देश सेवा का वचन लेकर उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. यहां तक कि जेल में छोटा बच्चा साथ होने पर भी विचलित नहीं हुईं और क्षमा याचना करने पर उन्हें रिहा करने का लालच दिया गया, लेकिन उन्होंने अपने पांव पीछे नहीं किए.
हालांकि, राजस्थान के इतिहास में कई महिला स्वतंत्रता सेनानी हुईं, लेकिन आजादी की लड़ाई में इनका योगदान अहम माना जाता है. राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खडगावत कहते हैं कि निश्चित रूप से आजादी के आंदोलन में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने काफी संघर्ष किया और महिला स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष भी कमतर नहीं है. लेकिन काफी लोग आज भी आजादी की इन वीरांगनाओं को नहीं जानते. यही कारण है कि आम आदमी के सामने अभिलेखागार रखकर हम हमारी युवा पीढ़ी को संघर्ष के दिनों से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं.