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हरणी जहां 'सोने के प्रह्लाद' 'चांदी की होलिका' की गोद में बैठते हैं - holi celebration in Bhilwara

भीलवाड़ा का एक गांव अनोखी और बेहद खास परंपरा (unique holika worship in bhilwara) के लिए दूर दूर तक ख्याति प्राप्त कर चुका है. यहां सोने के प्रह्लाद चांदी की होलिका के गोद में विराजते हैं और फिर नियत समय पर पूरे रस्मों रिवाज के साथ पूजा सम्पन्न होती है. सवाल उठता है कि क्या इसके पीछे कोई दंत कथा है या कुछ और! आईए जानते हैं.

unique holika worship in bhilwara
विवाद ने बदली परंपरा
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Published : Mar 17, 2022, 2:21 PM IST

Updated : Mar 17, 2022, 9:48 PM IST

भीलवाड़ा: होलिका दहन (holika dahan in Bhilwara) के दिन प्रत्येक वर्ष ग्रामीण चारभुजा मंदिर पर लोग जुटते हैं फिर ढोल के साथ ठाट - बाट से सोने - चांदी की मूर्तियों की शोभा यात्रा निकाली जाती है. सब होलिका दहन के नियत स्थान पर जाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद फिर से इसे मंदिर में ले जाकर स्थापित (unique holika worship in bhilwara) कर देते हैं. इस दौरान गांव के सभी लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं.आखिर क्यों करते हैं लोग ऐसी अनोखी परम्परा का निर्वहन?

तो कहानी कुछ यूं हैं: लोग बताते हैं- भीलवाड़ा शहर के 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित हरणी गांव में एक विवाद हो गया था जिसके कारण आग लग गई. तब बुजुर्गों ने चामुंडा माता मंदिर में एक पंचायत रखी. आज से करीब 71 साल पहले गांव के बुजुर्गों ने मिलकर एक निर्णय लिया. जिसमें पूरे गांव से चंदा जमा कर सोने और चांदी की होलिका बनाई गई. जिसमें सोने के प्रह्लाद और चांदी की होलिका बनाई गई. फिर होलिका दहन के दिन गांव के ही चारभुजा नाथ मंदिर से ठाठ-बाट और गाजे- बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जाया गया. आम लोगों से गुजारिश की गई कि प्रकृति के साथ अति न करें, पेड़ न काटें और विधि विधान से पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें.

विवाद ने बदली परंपरा

पढ़ें:Jaipur Holi Special : विलुप्त हो रही प्राचीन लोक परंपराओं के बीच जयपुर का 'तमाशा' आज भी जिंदा...

चंदे से बनी मूरत: इस इको फ्रेंडली होलिका पूजा में सही सहयोग पूरे गांव ने दिया. तब निर्णय हुआ था कि गांव के प्रत्येक घर से चंदा एकत्रित कर प्रतीकात्मक रूप से सोने के भक्त प्रहलाद और चांदी की होलिका बनाई जाए. बुजुर्गों के इस निर्णय से सभी ग्रामीण राजी हो गए और सोना और चांदी की होलिका बनवाकर उसे चारभुजा नाथ मंदिर में रखवा दी गई. संकल्प लिया गया कि आज के बाद से इस गांव में कभी भी पेड़ नहीं काटे जाएंगे और ना ही होलिका दहन किया जाएगा.

अनोखी परम्परा के सब गवाह: हरणी महादेव मंदिर के पुजारी शंकर गिरी गोस्वामी यहां भी उत्साह ,उमंग और श्रद्धापूर्वक होली पर्व मनाया जाता है. अंतर बस इतना है कि पेड़ बचाने के लिए होली पर लकड़ियां न जलाकर पर्यावरण संरक्षण के लिए चांदी से निर्मित होलिका और सोने के प्रह्लाद की पूजा की जाती है. इस परंपरा में सकल हिंदू समाज का छोटे से छोटा बच्चा और बुजुर्ग तक शामिल होता है. इससे आग लगने और आपसी झगड़ों की संभावना भी कम होती है.

पर्यावरण संरक्षण का सुखद संदेश ये गांव देता है. लकड़ियों को जलाकर, पेड़ काटकर परम्परा नहीं निभाता बल्कि वो करता है जो बहुतों को प्रेरित करता है. विवाद का सुखांत कैसा हो इसकी सच्ची और अच्छी तस्वीर भला इससे अलग क्या हो सकती है!

भीलवाड़ा: होलिका दहन (holika dahan in Bhilwara) के दिन प्रत्येक वर्ष ग्रामीण चारभुजा मंदिर पर लोग जुटते हैं फिर ढोल के साथ ठाट - बाट से सोने - चांदी की मूर्तियों की शोभा यात्रा निकाली जाती है. सब होलिका दहन के नियत स्थान पर जाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद फिर से इसे मंदिर में ले जाकर स्थापित (unique holika worship in bhilwara) कर देते हैं. इस दौरान गांव के सभी लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं.आखिर क्यों करते हैं लोग ऐसी अनोखी परम्परा का निर्वहन?

तो कहानी कुछ यूं हैं: लोग बताते हैं- भीलवाड़ा शहर के 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित हरणी गांव में एक विवाद हो गया था जिसके कारण आग लग गई. तब बुजुर्गों ने चामुंडा माता मंदिर में एक पंचायत रखी. आज से करीब 71 साल पहले गांव के बुजुर्गों ने मिलकर एक निर्णय लिया. जिसमें पूरे गांव से चंदा जमा कर सोने और चांदी की होलिका बनाई गई. जिसमें सोने के प्रह्लाद और चांदी की होलिका बनाई गई. फिर होलिका दहन के दिन गांव के ही चारभुजा नाथ मंदिर से ठाठ-बाट और गाजे- बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जाया गया. आम लोगों से गुजारिश की गई कि प्रकृति के साथ अति न करें, पेड़ न काटें और विधि विधान से पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें.

विवाद ने बदली परंपरा

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चंदे से बनी मूरत: इस इको फ्रेंडली होलिका पूजा में सही सहयोग पूरे गांव ने दिया. तब निर्णय हुआ था कि गांव के प्रत्येक घर से चंदा एकत्रित कर प्रतीकात्मक रूप से सोने के भक्त प्रहलाद और चांदी की होलिका बनाई जाए. बुजुर्गों के इस निर्णय से सभी ग्रामीण राजी हो गए और सोना और चांदी की होलिका बनवाकर उसे चारभुजा नाथ मंदिर में रखवा दी गई. संकल्प लिया गया कि आज के बाद से इस गांव में कभी भी पेड़ नहीं काटे जाएंगे और ना ही होलिका दहन किया जाएगा.

अनोखी परम्परा के सब गवाह: हरणी महादेव मंदिर के पुजारी शंकर गिरी गोस्वामी यहां भी उत्साह ,उमंग और श्रद्धापूर्वक होली पर्व मनाया जाता है. अंतर बस इतना है कि पेड़ बचाने के लिए होली पर लकड़ियां न जलाकर पर्यावरण संरक्षण के लिए चांदी से निर्मित होलिका और सोने के प्रह्लाद की पूजा की जाती है. इस परंपरा में सकल हिंदू समाज का छोटे से छोटा बच्चा और बुजुर्ग तक शामिल होता है. इससे आग लगने और आपसी झगड़ों की संभावना भी कम होती है.

पर्यावरण संरक्षण का सुखद संदेश ये गांव देता है. लकड़ियों को जलाकर, पेड़ काटकर परम्परा नहीं निभाता बल्कि वो करता है जो बहुतों को प्रेरित करता है. विवाद का सुखांत कैसा हो इसकी सच्ची और अच्छी तस्वीर भला इससे अलग क्या हो सकती है!

Last Updated : Mar 17, 2022, 9:48 PM IST
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