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तिलस्वां महादेव की अनूठी महिमा...तिल के समान शिवलिंग की पूजा का है काफी महत्व...भोलेनाथ हरते हैं हर भक्त की पीड़ा - तिलस्वां महादेव मंदिर

सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए भक्त मंदिरों में विशेष-पूजा अर्चना कर रहे हैं. हर शिव मंदिर में बोल बम के साथ ही हर-हर महादेव के जयकारे की गूंज सुनाई देती है. इस बीच भीलवाड़ा का तिलस्वां महादेव मंदिर (Tilswan Mahadev of Bhilwara) भई काफी अनूठा है. तिल के समान स्वयंभू शिवलिंग यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं.

Tilswan Mahadev of Bhilwara
तिलस्वां महादेव मंदिर
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Published : Jul 29, 2022, 6:04 AM IST

भीलवाड़ा. सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना का दौर जारी है. हर छोटे-बड़े शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की आस्था का अनूठा नजारा देखने को मिल रहा है. इसी कड़ी में भीलवाड़ा के तिलस्वा महादेव मंदिर (Tilswan Mahadev of Bhilwara) में भी हर दिन भक्तों का तांता लगा हुआ है. भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया क्षेत्र में तिलस्वां महादेव का प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहां मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो तिल के समान है. जहां भक्त भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति समृद्धि की कामना करते हैं.

जिले के ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजौलियां उपखंड में अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य ऐरु नदी किनारे स्थित जन-जन की आस्था का केंद्र तिलस्वां महादेव मंदिर काफा अनूठा है. यहां भोले की आस्था में डूबे भक्तों का हर दिन मेला लगा रहता है. मान्यता है कि भगवान शंकर की पूजा करने व सामने स्थित कुंड में नहाने व उसकी मिट्टी लगाने से कैंसर समेत सभी लाइलाज बीमारियों के साथ ही असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है.

तिलस्वां महादेव की अनूठी महिमा

पढ़ें Jai Mahadev: सैपऊ में हैं राम रामेश्वर, एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग यहां

10वीं से 12वीं सदी के बीच हुई स्थापनाः ऊपर माल क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध तिलस्वां महादेव मंदिर की स्थापना 10 वीं से 12 वीं सदी के बीच आज से 2024 वर्ष पूर्व राजा हवन ने की थी. राजा हवन ने ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजोलिया क्षेत्र में 12 मंदाकिनीय बनाई. उसमें से तिलस्वां महादेव प्रमुख मंदाकनी के नाम से शिव मंदिर प्रसिद्ध है. जहां सावन माह में देश व प्रदेश से काफी संख्या में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां तक की कोई भक्त जो कुष्ठ रोग से ग्रसित होता है व भक्त भगवान भोलेनाथ को न्यायाधिपति मानते हुए मंदिर परिसर में कैदी के रूप में रहकर प्रतिदिन पवित्र कुंड में स्नान कर भगवान भोलेनाथ के मंदिर की परिक्रमा करते हैं. मान्यता है कि इससे असाध्य रोग दूर हो जाते हैं. सावन जैसे पवित्र माह में प्रतिदिन ब्राह्मण भगवान भोलेनाथ का पाठ करते हैं और भगवान शंकर का प्रतिदिन श्रृंगार किया जाता है.

Tilswan Mahadev of Bhilwara
मंदिर की है अनूठी कहानी

एक तिल के समान हैंः तिलस्वां महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो एक तिल के समान है. तिल के समान शिवलिंग होने से यहां का धार्मिक महत्व काफी है. सावन जैसे पवित्र माह में यहां बालिकाएं व युवतियां अच्छा जीवन साथी मिलने की कामना लेकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए भजन गाती हुई आती हैं.

पढ़ें Hireshwar Mahadev Temple: पिता की इच्छा पूरी करने के लिए बेटों ने बनाया भव्य शिव मंदिर...उड़ीसा के कारीगरों ने की नक्काशी

कुंड के जल और मिट्टी है खासः तिलस्वां महादेव मन्दिर का निर्माण पौराणिक काल का माना जाता है . मंदिर के ठीक सामने विशाल गोलाकार कुण्ड बना हुआ है. मध्य में गंगा माता का मन्दिर हैं यहां दर्शनार्थियों के स्नान के लिए चारों ओर घाट बने हुए हैं. मुख्य मंदिर के दोनों ओर गणेश व अन्नपूर्णा के मन्दिर हैं . मन्दिर के प्रवेश द्वार के समीप ही सभा मण्डप है. यहां रहने वाले रोगी सुबह-शाम भजन-कीर्तन करते हैं. यहां बने तीन विशाल सिंहद्वार भी आकर्षण के केंद्र हैं. मंदिर की सेवा-पूजा का कार्य पाराशर परिवार की ओर से 16 पीढ़ियों से किया जा रहा है. पुजारी स्व.भंवरलाल पाराशर की ओर से भक्तों के सहयोग से कुण्ड का निर्माण करवाया गया था.

Tilswan Mahadev of Bhilwara
भक्तों की लगती है भीड़

कैसे पड़ा तिलस्वा महादेव का नामः 'तिलस्वां' नाम के पीछे भी एक जनश्रुति है. माना जाता है कि मेनाल के राजा हवन को एक बार कुष्ठ रोग हो गया तो एक सिद्ध योगी ने उसे बिजौलियां के मन्दाकिनी महादेव के कुण्ड में स्नान करने का आदेश दिया .जिससे सम्पूर्ण शरीर का कोढ़ तो मिट गया, लेकिन 'तिल' मात्र कोढ़ शेष रह गया. इस पर योगी ने राजा को यहां से थोड़ी दूर दक्षिण दिशा में स्थित जल कुण्ड में स्नान करने और वहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने का आदेश दिया. राजा के ऐसा करने पर 'तिल' मात्र कुष्ठ भी ठीक हो गया .तभी से 'तिलस्वां' नाम का विख्यात हुआ और राजा ने यहां विशाल शिव मन्दिर का निर्माण करवाया. मान्यता है कि यहां के पवित्र कुण्ड में स्नान करने और यहां की मिट्टी जिसे स्थानीय भाषा में 'केसर गार' कहा जाता है का लेपन करने से असाध्य और दुष्कर रोग भी दूर हो जाते हैं.

यहाँ रोग निवारण के लिए आने वाले रोगियों को तिलस्वां महादेव के 'कैदी' के नाम से पुकारा जाता है. ऐसे सभी रोगी यहां रोग निवारण होने तक निवास करते हैं. रोगियों के लिए सुबह-शाम आरती में उपस्थिति अनिवार्य है. रोगियों की ओर से सर पर पत्थर रख कर विशाल कुण्ड की परिक्रमा भी लगाई जाती है. रोगियों और दर्शनार्थियों के लिए विभिन्न समाजों की ओर से कई धर्मशालाएं बनी हुई है. इनमें से कई धर्मशालाएं आधुनिक सुविधाओं से युक्त भी हैं. मन्दिर के प्रबंधन और विकास कार्य तथा रोगियों के भोजन-आवास की व्यवस्था 'श्री तिलस्वां महादेव मन्दिर ट्रस्ट' की ओर से की जाती है.

पढ़ें Sawan 2022 : नर्मदेश्वर महादेव मंदिर का स्वरूप है अलवर का त्रिपोलिया मंदिर, दिन में तीन बार रूप बदलते हैं 'शिव'

शिवरात्रि पर सात दिवसीय विशाल मेलाः यहां हर शिवरात्रि पर सात दिवसीय मेला लगता है. जिसमें देश के कई प्रांतों से लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं. वहीं पूरे श्रावण मास और प्रत्येक सोमवार, पूर्णिमा व अमावस्या को भी दर्शनार्थियों की भारी भीड़ रहती है.

पुजारी स्व.भंवरलाल पाराशर महादेव के अनन्य भक्त थेः पुजारी स्व. भंवरलाल पाराशर भगवान भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे. इनकी ओर से श्रद्धा और समर्पण पूर्वक की गई सेवा-पूजा तथा विकास में योगदान से ही यहां की महिमा और ख्याति बढ़ी है. मुख्य मन्दिर के सामने इनकी भी प्रतिमा की स्थापना की गई है. यहां मान्यता है कि उनका महादेव से साक्षात् वार्तालाप होता था. इसी वजह से उनको मृत्यु तिथि का भी पूर्वाभास हो गया था.

पढ़ें Om Namah Shivay: चंबल के बीहड़ों में बसे हैं अचलेश्वर महादेव, दिन में तीन बार बदलते है रंग

तिलस्वां महादेव के पुजारी पूर्णा शंकर पाराशर ने कहा कि सावन माह में भक्त तिलस्वां महादेव के दर्शन करने काफी संख्या में आ रहे हैं. यहां आए भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं वह पूरी होती है. वर्तमान में यहां सुबह 4:00 बजे मंगला आरती और शाम को 7:00 बजे संध्या आरती होती है. वहीं रात्रि 9:00 बजे श्रृंगार आरती होती है. उन्होंने कहा कि यहां आए सभी भक्तों की भगवान हर मनोकामना पूरी करते हैं. जो भक्त यहां पर आते हैं, उनको तिलस्वां महादेव ट्रस्ट की ओर से रहने व निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है.

मंदिर के पुजारी गिरधर पाराशर ने कहा कि तिलस्वां महादेव के नाम से प्राचीन शिव मंदिर है, जो रमणीय व पर्यटन की दृष्टि से भी काफी प्रसिद्ध है. यह 2024 वर्ष पुराना मंदिर है. यहां सावन मास में काफी भगवान भोले के भक्त पहुंचते हैं. प्रतिमहा अमावस्या को विशाल मेला लगता है. उन्होंने बताया कि यहां आए कुष्ठ रोग जैसी बीमारी वाले भक्तों की पीड़ा भगवान भोलेनाथ हरते हैं.

वही ऊपरमाल क्षेत्र के रहने वाले विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के प्रांत प्रमुख भगवान सिंह राठौड़ ने कहा कि तिलस्वां महादेव मंदिर ऊपरमाल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजोलिया क्षेत्र में प्रसिद्ध शिव मंदिर है. ऊपरमाल क्षेत्र में 108 कुल मंदिर है उनमें से तिलस्वां महादेव के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर है. जहां तिल के समान शिवलिंग है. यहां मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र काफी संख्या में भगवान भोलेनाथ के भक्त पहुंचते हैं.

भीलवाड़ा. सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना का दौर जारी है. हर छोटे-बड़े शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की आस्था का अनूठा नजारा देखने को मिल रहा है. इसी कड़ी में भीलवाड़ा के तिलस्वा महादेव मंदिर (Tilswan Mahadev of Bhilwara) में भी हर दिन भक्तों का तांता लगा हुआ है. भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया क्षेत्र में तिलस्वां महादेव का प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहां मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो तिल के समान है. जहां भक्त भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति समृद्धि की कामना करते हैं.

जिले के ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजौलियां उपखंड में अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य ऐरु नदी किनारे स्थित जन-जन की आस्था का केंद्र तिलस्वां महादेव मंदिर काफा अनूठा है. यहां भोले की आस्था में डूबे भक्तों का हर दिन मेला लगा रहता है. मान्यता है कि भगवान शंकर की पूजा करने व सामने स्थित कुंड में नहाने व उसकी मिट्टी लगाने से कैंसर समेत सभी लाइलाज बीमारियों के साथ ही असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है.

तिलस्वां महादेव की अनूठी महिमा

पढ़ें Jai Mahadev: सैपऊ में हैं राम रामेश्वर, एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग यहां

10वीं से 12वीं सदी के बीच हुई स्थापनाः ऊपर माल क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध तिलस्वां महादेव मंदिर की स्थापना 10 वीं से 12 वीं सदी के बीच आज से 2024 वर्ष पूर्व राजा हवन ने की थी. राजा हवन ने ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजोलिया क्षेत्र में 12 मंदाकिनीय बनाई. उसमें से तिलस्वां महादेव प्रमुख मंदाकनी के नाम से शिव मंदिर प्रसिद्ध है. जहां सावन माह में देश व प्रदेश से काफी संख्या में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां तक की कोई भक्त जो कुष्ठ रोग से ग्रसित होता है व भक्त भगवान भोलेनाथ को न्यायाधिपति मानते हुए मंदिर परिसर में कैदी के रूप में रहकर प्रतिदिन पवित्र कुंड में स्नान कर भगवान भोलेनाथ के मंदिर की परिक्रमा करते हैं. मान्यता है कि इससे असाध्य रोग दूर हो जाते हैं. सावन जैसे पवित्र माह में प्रतिदिन ब्राह्मण भगवान भोलेनाथ का पाठ करते हैं और भगवान शंकर का प्रतिदिन श्रृंगार किया जाता है.

Tilswan Mahadev of Bhilwara
मंदिर की है अनूठी कहानी

एक तिल के समान हैंः तिलस्वां महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो एक तिल के समान है. तिल के समान शिवलिंग होने से यहां का धार्मिक महत्व काफी है. सावन जैसे पवित्र माह में यहां बालिकाएं व युवतियां अच्छा जीवन साथी मिलने की कामना लेकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए भजन गाती हुई आती हैं.

पढ़ें Hireshwar Mahadev Temple: पिता की इच्छा पूरी करने के लिए बेटों ने बनाया भव्य शिव मंदिर...उड़ीसा के कारीगरों ने की नक्काशी

कुंड के जल और मिट्टी है खासः तिलस्वां महादेव मन्दिर का निर्माण पौराणिक काल का माना जाता है . मंदिर के ठीक सामने विशाल गोलाकार कुण्ड बना हुआ है. मध्य में गंगा माता का मन्दिर हैं यहां दर्शनार्थियों के स्नान के लिए चारों ओर घाट बने हुए हैं. मुख्य मंदिर के दोनों ओर गणेश व अन्नपूर्णा के मन्दिर हैं . मन्दिर के प्रवेश द्वार के समीप ही सभा मण्डप है. यहां रहने वाले रोगी सुबह-शाम भजन-कीर्तन करते हैं. यहां बने तीन विशाल सिंहद्वार भी आकर्षण के केंद्र हैं. मंदिर की सेवा-पूजा का कार्य पाराशर परिवार की ओर से 16 पीढ़ियों से किया जा रहा है. पुजारी स्व.भंवरलाल पाराशर की ओर से भक्तों के सहयोग से कुण्ड का निर्माण करवाया गया था.

Tilswan Mahadev of Bhilwara
भक्तों की लगती है भीड़

कैसे पड़ा तिलस्वा महादेव का नामः 'तिलस्वां' नाम के पीछे भी एक जनश्रुति है. माना जाता है कि मेनाल के राजा हवन को एक बार कुष्ठ रोग हो गया तो एक सिद्ध योगी ने उसे बिजौलियां के मन्दाकिनी महादेव के कुण्ड में स्नान करने का आदेश दिया .जिससे सम्पूर्ण शरीर का कोढ़ तो मिट गया, लेकिन 'तिल' मात्र कोढ़ शेष रह गया. इस पर योगी ने राजा को यहां से थोड़ी दूर दक्षिण दिशा में स्थित जल कुण्ड में स्नान करने और वहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने का आदेश दिया. राजा के ऐसा करने पर 'तिल' मात्र कुष्ठ भी ठीक हो गया .तभी से 'तिलस्वां' नाम का विख्यात हुआ और राजा ने यहां विशाल शिव मन्दिर का निर्माण करवाया. मान्यता है कि यहां के पवित्र कुण्ड में स्नान करने और यहां की मिट्टी जिसे स्थानीय भाषा में 'केसर गार' कहा जाता है का लेपन करने से असाध्य और दुष्कर रोग भी दूर हो जाते हैं.

यहाँ रोग निवारण के लिए आने वाले रोगियों को तिलस्वां महादेव के 'कैदी' के नाम से पुकारा जाता है. ऐसे सभी रोगी यहां रोग निवारण होने तक निवास करते हैं. रोगियों के लिए सुबह-शाम आरती में उपस्थिति अनिवार्य है. रोगियों की ओर से सर पर पत्थर रख कर विशाल कुण्ड की परिक्रमा भी लगाई जाती है. रोगियों और दर्शनार्थियों के लिए विभिन्न समाजों की ओर से कई धर्मशालाएं बनी हुई है. इनमें से कई धर्मशालाएं आधुनिक सुविधाओं से युक्त भी हैं. मन्दिर के प्रबंधन और विकास कार्य तथा रोगियों के भोजन-आवास की व्यवस्था 'श्री तिलस्वां महादेव मन्दिर ट्रस्ट' की ओर से की जाती है.

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शिवरात्रि पर सात दिवसीय विशाल मेलाः यहां हर शिवरात्रि पर सात दिवसीय मेला लगता है. जिसमें देश के कई प्रांतों से लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं. वहीं पूरे श्रावण मास और प्रत्येक सोमवार, पूर्णिमा व अमावस्या को भी दर्शनार्थियों की भारी भीड़ रहती है.

पुजारी स्व.भंवरलाल पाराशर महादेव के अनन्य भक्त थेः पुजारी स्व. भंवरलाल पाराशर भगवान भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे. इनकी ओर से श्रद्धा और समर्पण पूर्वक की गई सेवा-पूजा तथा विकास में योगदान से ही यहां की महिमा और ख्याति बढ़ी है. मुख्य मन्दिर के सामने इनकी भी प्रतिमा की स्थापना की गई है. यहां मान्यता है कि उनका महादेव से साक्षात् वार्तालाप होता था. इसी वजह से उनको मृत्यु तिथि का भी पूर्वाभास हो गया था.

पढ़ें Om Namah Shivay: चंबल के बीहड़ों में बसे हैं अचलेश्वर महादेव, दिन में तीन बार बदलते है रंग

तिलस्वां महादेव के पुजारी पूर्णा शंकर पाराशर ने कहा कि सावन माह में भक्त तिलस्वां महादेव के दर्शन करने काफी संख्या में आ रहे हैं. यहां आए भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं वह पूरी होती है. वर्तमान में यहां सुबह 4:00 बजे मंगला आरती और शाम को 7:00 बजे संध्या आरती होती है. वहीं रात्रि 9:00 बजे श्रृंगार आरती होती है. उन्होंने कहा कि यहां आए सभी भक्तों की भगवान हर मनोकामना पूरी करते हैं. जो भक्त यहां पर आते हैं, उनको तिलस्वां महादेव ट्रस्ट की ओर से रहने व निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है.

मंदिर के पुजारी गिरधर पाराशर ने कहा कि तिलस्वां महादेव के नाम से प्राचीन शिव मंदिर है, जो रमणीय व पर्यटन की दृष्टि से भी काफी प्रसिद्ध है. यह 2024 वर्ष पुराना मंदिर है. यहां सावन मास में काफी भगवान भोले के भक्त पहुंचते हैं. प्रतिमहा अमावस्या को विशाल मेला लगता है. उन्होंने बताया कि यहां आए कुष्ठ रोग जैसी बीमारी वाले भक्तों की पीड़ा भगवान भोलेनाथ हरते हैं.

वही ऊपरमाल क्षेत्र के रहने वाले विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के प्रांत प्रमुख भगवान सिंह राठौड़ ने कहा कि तिलस्वां महादेव मंदिर ऊपरमाल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजोलिया क्षेत्र में प्रसिद्ध शिव मंदिर है. ऊपरमाल क्षेत्र में 108 कुल मंदिर है उनमें से तिलस्वां महादेव के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर है. जहां तिल के समान शिवलिंग है. यहां मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र काफी संख्या में भगवान भोलेनाथ के भक्त पहुंचते हैं.

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