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भीलवाड़ा में केसर की खेती, किसान की राय- कम लागत में बड़े फायदे की गारंटी

भीलवाड़ा में मुख्य तौर पर मक्का और कपास की फसल लहलहाती रही है. इस बरसों पुरानी रिवायत को बदलने का हौसला दिखाया है एक किसान ने. जिसने केसर उत्पादन (Kesar Farming in Bhilwara) का फैसला लिया और उसे सफलता से पूरा भी किया.

Kesar Farming in Bhilwara
भीलवाड़ा में केसर की खेती
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Published : Mar 19, 2022, 11:03 AM IST

भीलवाड़ा. भीलवाड़ा शहर के पास स्थित धूल खेड़ा. यहीं रहते हैं किसान गिरधारी लाल माली. जिन्होंने पथरीली जमीन पर केसर उगाने (Kesar Farming in Bhilwara) का हौसला दिखाया और अपनी सोच को पूरा भी किया. मेहनत खेत में लहलहा रही है.

गिरधारी लाल माली कुछ अलग करना चाहते थे. कहते हैं कि परंपरागत खेती से कुछ खास हासिल भी नहीं हो रहा था. सुन रखा था तो सोचा हम भी केसर उगाते हैं. पहले मैं यहां खलियान में सब्जियां ,गेहूं और मक्के की फसल बोता था. चिंता की बात ये थी कि उनमें लागत के बराबर मेहनताना नहीं मिलता था. फिर केसर की ओर रुख किया. अपने रिश्तेदार से जम्मू कश्मीर से बीज मंगवाए और खेत में बो दिया.

भीलवाड़ा में केसर की खेती

अक्टूबर-नवंबर में रबी की फसल बोई जाती है. माली ने फसल से जुड़ी जानकारी इकट्ठा की और फिर केसर की फसल की बुवाई कर दी. जानकारी साझा करते हैं कि 1 माह बाद फसल पर फूल आने लगेंगे फिर कुछ दिन बाद फूल से ही केसर निकलेगा. सबसे अच्छी बात कि केसर की फसल में न खाद चाहिए ना कीटनाशक. किसान के मुताबिक इस फसल में न के बराबर खर्चा होता है और उपज भी अच्छी मिलती है.

ये भी पढ़ें- राजस्थान के किसान ने मरुधरा में उगा दी 'कश्मीरी केसर'

माली ने 2 बिस्वा जमीन में केसर की फसल बो रखी है. कहते हैं इससे अंदाजा लग जाएगा कि कितना उत्पादन होता है फिर अगली बार उसी हिसाब से बोएंगे. खुशी जाहिर करते हैं और हैरानी भी. बताया कि उम्मीद नहीं थी कि मेहनत का फल इतना सुंदर होगा. केसर की एक बीघा फसल में किसान को अच्छा मेहनताना मिलता है. ये केसर 3 लाख रुपये प्रति किलो के भाव से बिकती है.

मरुभूमि में अक्सर लोग पानी की किल्लत को लेकर फिक्रमंद रहते हैं. सवाल बर्फीले कश्मीर में उगने वाले केसर को लेकर भी उठता है. आखिर पानी को कैसे मैनेज करते हैं? इस सवाल पर माली कहते हैं- जिस प्रकार गेहूं, मक्का और कपास की फसल में सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार केसर की फसल में भी पानी की जरूरत होती है. इस फसल की बुआई भी रबी की फसल के समय ही होती है. सिचांई के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है.

माली को विश्वास है कि अगर किसान मॉर्डन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें परंपरागत की बजाए आधुनिक खेती का रुख करें (kesar farming better than traditional one in Rajasthan) तो तरक्की निश्चित होगी. कहते हैं जिस तरह मैंने केसर की फसल की बुवाई की है उसी तरह अन्य किसान भी केसर, चंदन और सब्जियों की खेती करेंगे तो अच्छा फायदा होगा. उनके बच्चे भी ऊंची और महंगी शिक्षा हासिल कर पाएंगे और किसान के मन की हर ख्वाहिश पूरी होगी.

भीलवाड़ा. भीलवाड़ा शहर के पास स्थित धूल खेड़ा. यहीं रहते हैं किसान गिरधारी लाल माली. जिन्होंने पथरीली जमीन पर केसर उगाने (Kesar Farming in Bhilwara) का हौसला दिखाया और अपनी सोच को पूरा भी किया. मेहनत खेत में लहलहा रही है.

गिरधारी लाल माली कुछ अलग करना चाहते थे. कहते हैं कि परंपरागत खेती से कुछ खास हासिल भी नहीं हो रहा था. सुन रखा था तो सोचा हम भी केसर उगाते हैं. पहले मैं यहां खलियान में सब्जियां ,गेहूं और मक्के की फसल बोता था. चिंता की बात ये थी कि उनमें लागत के बराबर मेहनताना नहीं मिलता था. फिर केसर की ओर रुख किया. अपने रिश्तेदार से जम्मू कश्मीर से बीज मंगवाए और खेत में बो दिया.

भीलवाड़ा में केसर की खेती

अक्टूबर-नवंबर में रबी की फसल बोई जाती है. माली ने फसल से जुड़ी जानकारी इकट्ठा की और फिर केसर की फसल की बुवाई कर दी. जानकारी साझा करते हैं कि 1 माह बाद फसल पर फूल आने लगेंगे फिर कुछ दिन बाद फूल से ही केसर निकलेगा. सबसे अच्छी बात कि केसर की फसल में न खाद चाहिए ना कीटनाशक. किसान के मुताबिक इस फसल में न के बराबर खर्चा होता है और उपज भी अच्छी मिलती है.

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माली ने 2 बिस्वा जमीन में केसर की फसल बो रखी है. कहते हैं इससे अंदाजा लग जाएगा कि कितना उत्पादन होता है फिर अगली बार उसी हिसाब से बोएंगे. खुशी जाहिर करते हैं और हैरानी भी. बताया कि उम्मीद नहीं थी कि मेहनत का फल इतना सुंदर होगा. केसर की एक बीघा फसल में किसान को अच्छा मेहनताना मिलता है. ये केसर 3 लाख रुपये प्रति किलो के भाव से बिकती है.

मरुभूमि में अक्सर लोग पानी की किल्लत को लेकर फिक्रमंद रहते हैं. सवाल बर्फीले कश्मीर में उगने वाले केसर को लेकर भी उठता है. आखिर पानी को कैसे मैनेज करते हैं? इस सवाल पर माली कहते हैं- जिस प्रकार गेहूं, मक्का और कपास की फसल में सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार केसर की फसल में भी पानी की जरूरत होती है. इस फसल की बुआई भी रबी की फसल के समय ही होती है. सिचांई के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है.

माली को विश्वास है कि अगर किसान मॉर्डन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें परंपरागत की बजाए आधुनिक खेती का रुख करें (kesar farming better than traditional one in Rajasthan) तो तरक्की निश्चित होगी. कहते हैं जिस तरह मैंने केसर की फसल की बुवाई की है उसी तरह अन्य किसान भी केसर, चंदन और सब्जियों की खेती करेंगे तो अच्छा फायदा होगा. उनके बच्चे भी ऊंची और महंगी शिक्षा हासिल कर पाएंगे और किसान के मन की हर ख्वाहिश पूरी होगी.

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