भरतपुर. भारत की जुगाड़ तकनीक बड़ी काम की है. जुगाड़ तकनीक छोटे कारोबारियों से लेकर बड़े बिजनेसमैन तक और अन्य क्षेत्र से जुड़े लोग भी इस्तेमाल में लाते हैं. अब भरतपुर के 2 जरूरतमंद लोगों की ही बात करें तो कोरोना संक्रमण काल में परिवार पालने के लिए उन्होंने जुगाड़ से ही खुद के लिए रोजगार का साधन तैयार कर लिया जो फिलहाल शहर में चर्चा का विषय बन गया है. ईटीवी भारत ने इन दोनों लोगों से मिलकर इनकी जुगाड़ तकनीक और उसके पीछे की सोच के बारे में बातचीत की.
ऑटो को बना दिया पंक्चर जोड़ने की दुकान
जिले के कुम्हेर क्षेत्र के गांव अस्तावन निवासी भोलाराम ने बताया कि पहले वह जगह-जगह स्थाई दुकान लगाकर पंचर बनाते थे. लेकिन कभी कोई किराया बढ़ा देता तो कभी कोई उनकी दुकान को हटवा देता था. सड़क किनारे यदि कहीं पर वह अपनी पंचर की दुकान लगाते थे तो उसे भी नगर निगम या प्रशासन की ओर से हटवा दिया जाता था. बाद में फिर कोरोना संक्रमण काल आया जिसमें पूरा धंधा ही चौपट हो गया. उसके बाद ऑटो में चलती फिरती पंक्चर की दुकान तैयार करने का विचार मन में आया.
30 हजार में बन गई चलती फिरती दुकान
भोलाराम ने बताया कि चलती फिरती दुकान बनाने के लिए सबसे पहले एक सेकेंड हैंड ऑटो खरीदा और उसी के अंदर हवा भरने की मशीन, पंचर जोड़ने के उपकरण और साइकिल व बाइक ठीक करने के जरूरी सामान सजा लिए. इस पूरी दुकान को तैयार करने में मात्र 30 हजार रुपए का खर्चा आया. दुकान का सबसे बड़ा फायदा यह है कि भोलाराम जब चाहे, जहां चाहे अपनी दुकान लगा सकते हैं.
ना चोरी का डर, ना कार्रवाई का
चलती फिरती दुकान का फायदा ये है कि अब ना तो किसी को किराया देना पड़ता है और ना ही किसी विभाग की कार्रवाई का डर सताता है. दिन भर काम करने के बाद चलती फिरती दुकान को अपने साथ ही घर ले जाते हैं. ऐसे में दुकान में चोरी होने का डर भी नहीं रहता. जबकि पहले स्थाई दुकान लगाते समय हर महीने कम से कम 5 हजार रुपए तो किराया देना पड़ता था और उसमें भी अनिश्चितता बनी रहती थी, लेकिन इस जुगाड़ तकनीक ने अब भोलाराम की काफी समस्याएं समाप्त कर दी हैं. भोलाराम के इस जुगाड़ से उसके परिवार के चार सदस्यों का जीवनयापन हो रहा है.
बाइक पर दुकान : शहर के हर कोने में पहुंच जाती है
शहर के जयवीर ने बताया कि कोरोना संक्रमण से पहले वह सब्जी की दुकान लगाता था. लेकिन लॉकडाउन में सब्जी की दुकान बंद कर दी गई और ऐसे में परिवार पालना मुश्किल हो गया. परिवार पर आर्थिक संकट आया, तो उसने काफी सोचने के बाद एक मोटरसाइकिल पर ही जरूरत के सामान की छोटी सी चलती फिरती दुकान तैयार कर ली। अब जयवीर शहर के किसी भी कोने में ले जाकर अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर देते हैं और मजे से दुकान चलाते हैं.
ऐसे तैयार की 43 हजार में दुकान
जयवीर ने बताया कि कोरोना संक्रमण के दौर में काफी आर्थिक संकट आ गया और घर खर्च चलाने के लिए भी पैसे नहीं बचे. ऐसे में किसी पहचान वाले से कर्ज पर रुपए उधार लिए और 15 हजार रुपए में सेकंड हैंड मोटरसाइकिल खरीदी. उसके बाद 26 हजार रुपए की लागत से मोटरसाइकिल के पीछे ही एक छोटा सा लोहे का बॉक्सनुमा दुकान सेट कराई. कुल मिलाकर इस पूरी दुकान को तैयार कराने में जयवीर को 43 हजार रुपए खर्च करने पड़े. लेकिन अब जयवीर आसानी से शहर में किसी भी जगह पर जाकर दुकान लगा लेते हैं और पूरे परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण काल में हजारों लाखों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा था. ऐसे में भरतपुर के इन दो लोगों ने जुगाड़ तकनीक से अपने परिवार के पालन पोषण का रास्ता निकाला और अब दोनों ही लोग आसानी से गुजर वसर कर रहे हैं.