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चौबुर्जा गणेश मंदिर, जहां रणभूमि में जाने से पहले महाराजा सूरजमल की सेना झुकाती थी शीश

दुनिया भर में अजेय किले के रूप में पहचाने जाने वाले लोहागढ़ के प्रवेश द्वार पर श्री गणेश का एक मंदिर स्थापित है. जब महाराजा सूरजमल की सेना किसी युद्ध पर जाती थी, तो उससे पहले इसी मंदिर में आकर गणेश जी की दोनों प्रतिमाओं की पूजा करती थी और उसके बाद युद्ध पर निकलती. क्यों है ये मंदिर खास, क्या है इसमें अनोखी बात? आइए जानते हैं.

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Published : Sep 1, 2022, 10:54 AM IST

Updated : Sep 1, 2022, 11:23 AM IST

भरतपुर. चौबुर्जा मंदिर में लोहागढ़ की स्थापना काल से ही गणेश जी की दो प्रतिमाएं विराजमान हैं (Chauburja Ganesh Temple). माना जाता है कि इसी मंदिर के गणेश जी का प्रताप था कि महाराजा सूरजमल की सेना हमेशा युद्ध जीतकर वापस लौटी. अमूमन किसी भी एक जगह या धार्मिक स्थल पर भगवान गणेश की दो प्रतिमाएं विराजमान नहीं होती हैं (Unique divine Place with 2 Ganesha), लेकिन यहां तो कुछ ऐसा ही है. लोहागढ़ दुर्ग के मुख्य द्वार पर स्थापित ये मंदिर इतिहास का एक सुनहरे अध्याय का उदाहरण है.

ऐसे हुई गणेश जी की स्थापना: मंदिर के पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण हो गया तो दुर्ग के बाहर यहां जंगल था. महाराजा सूरजमल लोहागढ़ दुर्ग से बाहर निकलते हैं तो उन्हें जंगली जानवर नजर पड़ते. ऐसे में महाराजा सूरजमल ने सोचा कि क्यों ना लोहागढ़ दुर्ग के मुख्य द्वार पर एक मंदिर का निर्माण कराया जाए, ताकि दुर्ग से बाहर निकलते समय भगवान के दर्शन हों? इसी सोच के साथ महाराजा सूरजमल ने लोहागढ़ दुर्ग के दक्षिणी द्वार के बाहर मंदिर का निर्माण करा दिया लेकिन मंदिर निर्माण के बाद जब मूर्ति स्थापना की बात आई, तो पूरे दरबारीजनों ने विचार-विमर्श किया कि मंदिर में कौन से भगवान की मूर्ति स्थापित कराई जाए? आखिर में सभी की सहमति से मंदिर में श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करा दी गई.

महाराजा सूरजमल की सेना झुकाती थी शीश

पढ़ें- Special : बोहरा गणेश मंदिर में लोगों की मनोकामना होती है पूरी, भक्त ले जाते थे उधार रुपये

एक मंदिर में दो प्रतिमा: संतोष पंडा ने बताया कि किले के बाहर मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जा रही थी. उसी समय मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली. एक और अन्य मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करने के लिए अतिरिक्त प्रतिमा भी मंगाई गई थी लेकिन जैसे ही मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली तो गणेश जी की दूसरी प्रतिमा भी इसी मंदिर में स्थापित करा दी. शास्त्रों में मान्यता है कि एक देवालय में एक देवता की एक ही प्रतिमा स्थापित की जा सकती है. यदि एक देवालय में एक देवता की दो प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी, तो एक प्रतिमा स्वतः खंडित हो जाएगी. लेकिन इस गणेश मंदिर में ऐसा नहीं हुआ. इस मंदिर में स्थापित की गई गणेश जी की दोनों प्रतिमाएं सही सलामत हैं. मंदिर के पुजारी इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं.

ये भी पढ़ें- घर देने वाले गणेश जी के नाम से मशहूर है जैसलमेर का चूंधी गणेश मंदिर

युद्ध पर जाने से पहले सेना करती थी पूजा: मंदिर के पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब महाराजा सूरजमल की सेना किसी युद्ध पर जाती थी, तो लोहागढ़ दुर्ग के दक्षिण द्वार से निकलकर सबसे पहले चौबुर्जा स्थित श्री गणेश जी के मंदिर में पूजा करती. उसके बाद ही युद्ध के लिए रवाना होती. मान्यता है कि श्री गणेश जी का ही प्रताप था कि महाराजा सूरजमल की सेना हमेशा युद्ध जीतकर ही वापस लौटी.

पढ़ें-सिंदूरी चोला, स्वर्ण मुकुट, नौलखा हार धारण कर चांदी के सिंहासन पर विराजे गणपति, दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालु

हाथी अभिषेक के लिए लाता गंगाजल: पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब मंदिर में शाम के वक्त आरती होती तो उसी समय महल से चल कर एक हाथी बाल्टी में गंगाजल भरकर मंदिर पहुंचता. आरती हो जाने पर मंदिर का पुजारी उस गंगाजल से गणेश जी का अभिषेक करता और उस बाल्टी में प्रसाद भरकर वापस हाथी के सामने रख देता. हाथी प्रसाद से भरी उस बाल्टी को उठाकर वापस महल ले जाता.

पढ़ें- 165 करोड़ की देनदारी, 'ऋणहर्ता' गणेश की शरण में निगम

होती हैं सभी मनोकामना पूरी: संतोष पंडा ने बताया कि गणेश मंदिर की बड़ी मान्यता है. यहां जो भी श्रद्धालु बुधवार को पान के पत्ते पर एक मोतीचूर का लड्डू रखकर, दो लौंग लगाकर सच्चे मन से गणेश जी को चढ़ाता है, गणेश जी उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. संतोष पंडा ने बताया कि गणेश चतुर्थी के अवसर पर शाम के वक्त गणेश जी का भव्य अभिषेक किया जाता है और झांकी सजाई जाती है.

भरतपुर. चौबुर्जा मंदिर में लोहागढ़ की स्थापना काल से ही गणेश जी की दो प्रतिमाएं विराजमान हैं (Chauburja Ganesh Temple). माना जाता है कि इसी मंदिर के गणेश जी का प्रताप था कि महाराजा सूरजमल की सेना हमेशा युद्ध जीतकर वापस लौटी. अमूमन किसी भी एक जगह या धार्मिक स्थल पर भगवान गणेश की दो प्रतिमाएं विराजमान नहीं होती हैं (Unique divine Place with 2 Ganesha), लेकिन यहां तो कुछ ऐसा ही है. लोहागढ़ दुर्ग के मुख्य द्वार पर स्थापित ये मंदिर इतिहास का एक सुनहरे अध्याय का उदाहरण है.

ऐसे हुई गणेश जी की स्थापना: मंदिर के पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण हो गया तो दुर्ग के बाहर यहां जंगल था. महाराजा सूरजमल लोहागढ़ दुर्ग से बाहर निकलते हैं तो उन्हें जंगली जानवर नजर पड़ते. ऐसे में महाराजा सूरजमल ने सोचा कि क्यों ना लोहागढ़ दुर्ग के मुख्य द्वार पर एक मंदिर का निर्माण कराया जाए, ताकि दुर्ग से बाहर निकलते समय भगवान के दर्शन हों? इसी सोच के साथ महाराजा सूरजमल ने लोहागढ़ दुर्ग के दक्षिणी द्वार के बाहर मंदिर का निर्माण करा दिया लेकिन मंदिर निर्माण के बाद जब मूर्ति स्थापना की बात आई, तो पूरे दरबारीजनों ने विचार-विमर्श किया कि मंदिर में कौन से भगवान की मूर्ति स्थापित कराई जाए? आखिर में सभी की सहमति से मंदिर में श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करा दी गई.

महाराजा सूरजमल की सेना झुकाती थी शीश

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एक मंदिर में दो प्रतिमा: संतोष पंडा ने बताया कि किले के बाहर मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जा रही थी. उसी समय मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली. एक और अन्य मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करने के लिए अतिरिक्त प्रतिमा भी मंगाई गई थी लेकिन जैसे ही मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली तो गणेश जी की दूसरी प्रतिमा भी इसी मंदिर में स्थापित करा दी. शास्त्रों में मान्यता है कि एक देवालय में एक देवता की एक ही प्रतिमा स्थापित की जा सकती है. यदि एक देवालय में एक देवता की दो प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी, तो एक प्रतिमा स्वतः खंडित हो जाएगी. लेकिन इस गणेश मंदिर में ऐसा नहीं हुआ. इस मंदिर में स्थापित की गई गणेश जी की दोनों प्रतिमाएं सही सलामत हैं. मंदिर के पुजारी इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं.

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युद्ध पर जाने से पहले सेना करती थी पूजा: मंदिर के पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब महाराजा सूरजमल की सेना किसी युद्ध पर जाती थी, तो लोहागढ़ दुर्ग के दक्षिण द्वार से निकलकर सबसे पहले चौबुर्जा स्थित श्री गणेश जी के मंदिर में पूजा करती. उसके बाद ही युद्ध के लिए रवाना होती. मान्यता है कि श्री गणेश जी का ही प्रताप था कि महाराजा सूरजमल की सेना हमेशा युद्ध जीतकर ही वापस लौटी.

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हाथी अभिषेक के लिए लाता गंगाजल: पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब मंदिर में शाम के वक्त आरती होती तो उसी समय महल से चल कर एक हाथी बाल्टी में गंगाजल भरकर मंदिर पहुंचता. आरती हो जाने पर मंदिर का पुजारी उस गंगाजल से गणेश जी का अभिषेक करता और उस बाल्टी में प्रसाद भरकर वापस हाथी के सामने रख देता. हाथी प्रसाद से भरी उस बाल्टी को उठाकर वापस महल ले जाता.

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होती हैं सभी मनोकामना पूरी: संतोष पंडा ने बताया कि गणेश मंदिर की बड़ी मान्यता है. यहां जो भी श्रद्धालु बुधवार को पान के पत्ते पर एक मोतीचूर का लड्डू रखकर, दो लौंग लगाकर सच्चे मन से गणेश जी को चढ़ाता है, गणेश जी उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. संतोष पंडा ने बताया कि गणेश चतुर्थी के अवसर पर शाम के वक्त गणेश जी का भव्य अभिषेक किया जाता है और झांकी सजाई जाती है.

Last Updated : Sep 1, 2022, 11:23 AM IST
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