भरतपुर: जिले से 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंढेरा गांव से हर दिन एक 78 वर्षीय बुजुर्ग सिर पर सेना की कैप लगाए, साइकिल चलाकर एमएसजे कॉलेज के पुस्तकालय पहुंचता है. दिनभर बिना थके पुस्तकालय की किताबों को व्यवस्थित करता है. विद्यार्थियों को पुस्तक उपलब्ध कराता है. शाम को ड्यूटी पूरी होने पर उसी साइकिल से वापस गांव लौट जाता है.
इस 78 वर्षीय बुजुर्ग का नाम केसरिया राम धाकड़ है. वे भूतपूर्व सैनिक हैं. सेना में बतौर व्हीकल मैकेनिक काम किया. केसरियाराम बीते 41 साल से रोजाना 50 किलोमीटर साइकिल चला कर कॉलेज आते हैं और लौट जाते हैं. यानी केसरियाराम बीते 41 साल में करीब साढ़े सात लाख किलोमीटर साइकिल चला चुके हैं. यह पृथ्वी के 18 चक्कर लगाने के बराबर है.
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भूतपूर्व सैनिक केसरिया राम ने बताया कि सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद साल 1980 में अलवर महाविद्यालय से भरतपुर के एमएसजे कॉलेज में बुक लिफ्टर के रूप में स्थानांतरण हुआ. तभी से हर दिन गांव मुंढेरा से 25 किलोमीटर साइकिल चलकर कॉलेज पहुंचते हैं. वे 25 किलोमीटर साइकिल चलाकर वापस गांव लौट जाते हैं.
केसरियाराम कहते हैं कि मेरी मोटरसाइकिल तो मेरी साइकिल ही है और मेरा पेट्रोल हर दिन 50 रुपए प्रति लीटर वाला दूध है. दूध पीने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और पेट्रोल का खर्च भी बच जाता है.
केसरिया राम बताते हैं कि आधुनिक दौर में युवा और अन्य लोग मोटरसाइकिल के बिना सफर नहीं करते हैं. वे महंगा पेट्रोल जलाते हैं. इससे उनका स्वास्थ्य खराब होता है और आर्थिक बोझ भी बढ़ता है.
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केसरियाराम आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से साइकिल नहीं चलाते हैं, बल्कि वे अच्छी सेहत के लिए नियमित साइकिल का इस्तेमाल करते हैं. केसरियाराम के दो बेटे हैं. बड़ा बेटा वरिष्ठ अध्यापक और छोटा बेटा खेती-बाड़ी संभालता है. घर में बेटे मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते हैं लेकिन केसरियाराम कभी किसी मोटरसाइकिल वाले से लिफ्ट भी नहीं मांगते हैं.
केसरिया राम धाकड़ की मानें तो साल 1980 से वह हर दिन करीब 50 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं. बीते 41 साल में कुल 14,965 दिन हुए. हर दिन 50 किलोमीटर साइकिल चलाने के हिसाब से अब तक 7 लाख 48 हजार 250 किलोमीटर साइकिल चला चुके हैं.
गणित की भाषा में पृथ्वी का एक चक्कर करीब 40 हजार किलोमीटर का होता है. इस हिसाब से केसरियाराम अब तक पृथ्वी के करीब 18 चक्कर लगाने के बराबर साइकिल चला चुके हैं.
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भूतपूर्व सैनिक केसरिया राम ने बताया कि बीते 41 वर्ष से नियमित साइकिल चलाने की वजह से उनका स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है. खूब भूख लगती है और भरपूर नींद आती है. उन्हें यह तक याद नहीं कि वह कभी बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुए हों. मेडिकल डायरी से मिलने वाली आयुर्वेदिक दवाइयां भी वे जरूरतमंदों को नि:शुल्क बांट देते हैं. रिटायरमेंट के 20 साल बाद भी दिन भर, बिना थके पुस्तकालय में पुस्तकों के रखरखाव और वितरण का काम करते रहते हैं.
केसरिया राम ने बताया कि साल 1964 में वे भारतीय सेना में व्हीकल मैकेनिक के रूप में भर्ती हुए. एक साल बाद ही साल 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में देश सेवा करने का मौका मिला. इसी दौरान जम्मू-कश्मीर की सांबा पोस्ट पर एक वाहन को ठीक करने के दौरान पाकिस्तान ने बमबारी कर दी. उससे निकली गैस की चपेट में आने की वजह से उनकी दाहिनी आंख खराब हो गई. उसके बाद साल 1968 में सीने में चोट लगने की वजह से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी.