अलवर. पूरे देश में नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्र के मौके पर माता के नौ रूपों की पूजा होती है. नवरात्र के मौके पर माता की विशेष पूजा-अर्चना का खास महत्व है. कुछ लोग नौ दिन व्रत रहकर मां की अखंड पूजा करते हैं.
कोरोना के कारण इस बार मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं है. ऐसे में लोगों को घरों में रहकर माता की पूजा करनी पड़ रही है. आज आपको अलवर के एक ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बताते हैं, जो करीब 300 साल पुराना मंदिर है. इस मंदिर में आसपास के कई जिलों और राज्यों से भी लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं.
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राजस्थान के सिंह द्वार अलवर को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है. अलवर में पांडुपोल हनुमान मंदिर, भर्तहरि धाम, नारायणी माता मंदिर, नीलकंठ महादेव, करणी माता मंदिर और मनसा माता मंदिर प्रसिद्ध है. इन मंदिरों में साल भर लोग पूजा-अर्चना करते हैं. अलवर के अलावा आसपास के जिलों और राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. नवरात्र के समय मनसा माता मंदिर में खास पूजा-अर्चना होती है.
सिटी पैलेस और सागर जलाशय के पास एक पहाड़ी पर मनसा माता का मंदिर है. यह मंदिर 300 साल पुराना है. मंदिर की खूबसूरती और सुंदरता अन्य मंदिरों से अलग है. यहां आने वाले सभी लोगों की मुरादें पूरी होती है.
क्या है कहानी...
जानकार बताते हैं कि एक दिन अलवर के महाराज बख्तावर सिंह को सपने में मनसा माता नजर आईं. इस पर उन्होंने सिटी पैलेस के पास इस पहाड़ को खुदवाया और इसमें खुदाई के दौरान माता की मूर्ति मिली. इस मूर्ति को इसी जगह पर स्थापित किया गया. उसके बाद से लगातार यहां माता की पूजा-अर्चना होती है.
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मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि लोगों का माता में अटूट विश्वास है. इसलिए जो व्यक्ति एक बार यहां आना शुरु करता है, वो सालों तक आता है. मंदिर से पहले पूरे शहर का नजारा नजर आता था, लेकिन अब बड़े भवन और आबादी बढ़ने के साथ ही शहर का कुछ हिस्सा ही मंदिर से दिखाई देता है. मंदिर के पुजारी का कहना है कि पहले मंदिर में पूजा राजपरिवार किया करते थे, लेकिन अब पंडितों की ओर से से मंदिर की पूजा की जाती है.
नवरात्र का मान्यता...
भारतीय संस्कृति में देवी को ऊर्जा का स्रोत माना गया है. अपने पसंद की ऊर्जा को जागृत करना ही देवी उपासना का मुख्य उप प्रयोजन है. नवरात्र मानसिक शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है. इसके लिए हजारों वर्षों से लोग नवरात्र की पूजा-अर्चना करते हैं. नवरात्रि का त्योहार मनाने के लिए कई तरह की रोचक कथाएं प्रचलित हैं.
बताया जाता है कि देवी ने कई असुरों का अंत करने के लिए बार-बार अवतार लिए. कहा जाता है कि गुरु शुक्राचार्य के कहने पर असुरों ने घोर तप कर भगवाव ब्रह्मा को प्रसन्न किया और वर मांगा कि उन्हें कोई पुरुष जानवर और शत्रु नहीं मार सके. वरदान मिलते ही असुर अत्याचार करने लगे, तब देवताओं की रक्षा के लिए ब्रह्मा जी ने वरदान का भेद खोलते हुए बताया कि असुरों का अंत स्त्री शक्ति ही कर सकती है. ब्रह्मा जी के आदेश पर देवताओं ने 9 दिनों तक मां पार्वती को प्रसन्न किया और उनसे असुरों के संघार का वचन लिया. असुरों के संघार के लिए देवी ने रौद्र रूप धारण किया और असुरों का अंत किया.
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दूसरी मान्यता है कि शारदीय नवरात्रों की शुरुआत भगवान राम ने की थी. भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के तट पर शारदीय नवरात्र की शुरुआत की और 9 दिन तक शक्ति की पूजा की थी, तब जाकर उन्हें लंका पर विजय प्राप्त हुई. यही मूल वजह है कि शारदीय नवरात्रों में 9 दिन तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है.