अलवर. राजस्थान की औद्योगिक राजधानी के रूप में अलवर फेमस है. अलवर को सिंहद्वार, देवभूमि भी कहा जाता है. यहां के पर्यटन स्थलों को देखने देश-विदेश के लोग आते हैं. लेकिन एक वजह और है जिसके बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं है. अकेले अलवर से 158 जवान शहीद हुए हैं. राजस्थान में झुंझुनू के बाद सबसे ज्यादा शहीद अलवर में ही हुए हैं. अक्सर अपराध की घटनाओं के चलते सुर्खियों में आने वाले अलवर की माटी में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है.
पढ़ें: अलवर: 15 अगस्त के मौके पर शहीदों को किया नमन
अब तक अलवर जिले से 158 सैनिक शहीद हो चुके हैं. जिले में सबसे ज्यादा बहरोड, बानसूर, मंडावर व नीमराणा क्षेत्र से 106 जवान शहीद हुए हैं. जबकि अन्य 58 सैनिक जिले के अन्य हिस्से से हैं. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो अलवर तहसील से 12, कोटकासिम से 11, तिजारा से 12, किशनगढ़ बास से 5, कठूमर से 4, लक्ष्मणगढ़ से 4, राजगढ़ से 2, रामगढ़ से 2 सैनिक सीमा पर शहीद हो चुके हैं.
अलवर में होता है सेना की विशेष भर्ती का आयोजन
अलवर में सेना की तरफ से विशेष भर्ती का आयोजन किया जाता है. अलवर में सेना को योग्यता के हिसाब से बेहतर युवा मिलते हैं. इसलिए साल में दो बार सेना भर्ती होती है. सेना की तरफ से अलवर में कई नए प्रयास किए जाते हैं. राजस्थान में देश की बड़ी सेना भर्तियों में अलवर की सेना भर्ती भी शामिल है. जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत की हिफाजत करने में अलवर के वीर सपूत डटे हुए हैं.