अजमेर. राजस्थान की गर्म सुलगती रेत महज धूल का कतरा नहीं है, बल्कि यह उन रणबांकुरों की कहानियां हैं, जो इसकी जमीन में बिखरी पड़ी हैं. 'धरती धोरां री' कहलाने वाले राजस्थान में 11वीं सदी में हुए वीर तेजाजी, जिन्हें उनकी महानता ने देवताओं जैसा बना दिया. देश भर में उनके कई मंदिर मिल जाएंगे. राजस्थान के गांवों-कस्बों में इनकी संख्या काफी है. माना जाता है कि तेजाजी महादेव शिव के 11वें अवतार थे, यह बात कितनी सही, इस आंकलन को परे रख ऐतिहासिक दस्तावेज इस बात की हामी भरते हैं कि वाकई 11वीं सदी के लोगों का दौर सुनहरा रहा है. क्योंकि उन्होंने तेजाजी महाराज को देखा है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बीते दिन शनिवार को रूपनगढ़ में किसान रैली को संबोधित करने पहुंचे थे. उससे पहले उन्होंने सुरसुरा गांव में लोक देवता तेजाजी महाराज के दर्शन किए. आज हम आपको बताएंगे लोक देवता तेजाजी महाराज कौन हैं? सुरसुरा और किसानों से तेजाजी का क्या संबंध है? तेजाजी को भगवान शिव का 11वां अवतार क्यों माना जाता है?
यह भी पढ़ें: तबादलों का दौर : एक IAS और 18 RAS अधिकारियों के तबादले...IAS मयंक मनीष को वल्लभनगर से मावली SDO लगाया
वीर तेजाजी मंदिर का इतिहास
राजस्थान, हरियाणा, यूपी और मध्य प्रदेश में तेजाजी को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है. जाट समुदाय के लोग तेजाजी को न सिर्फ अपना आराध्य देव मानते हैं. बल्कि उन्हें अपना आदर्श भी मानते हैं. तेजाजी वचन के पक्के थे और वचन निभाने के लिए ही उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया था. तेजाजी को वनपालक मानने के पीछे लोक कथा प्रचलित है.
बचपन में हुआ था वीर तेजाजी का विवाह
हुआ यूं कि वीर तेजाजी का विवाह उनके बचपन में ही पनेर गांव की रायमलजी की बेटी पेमल से हो गई थी. पेमल के मामा इस रिश्ते के खिलाफ था और जलन में तेजा के पिता ताहड़ जी पर हमला कर दिए. ताहड़ को बचाव के लिए तलवार चलानी पड़ी, जिससे पेमल का मामा मर गया. यह बात पेमल की मां को बुरी लगी और इस रिश्ते की बात तेजाजी से छिपा ली गई. बहुत बाद में तेजाजी को अपनी पत्नी के बारे में पता चला तो वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गए. वहां ससुराल में उनकी अवज्ञा हो गई.
यह भी पढ़ें: Valentines day Special : इतिहास की अनसुनी सिसकी है जवाहर-गन्ना की प्रेम कहानी...भरतपुर में आज भी प्रचलित है ये किस्सा
लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं वीर तेजाजी
तेजाजी का ससुराल सुरसुरा के पास पनेर गांव में था, वह अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए ससुराल आए हुए थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात लाचा गुजरी नामक महिला से हुई. लाचा, तेजाजी की पत्नी पेमल की सहेली थी. लाचा गुजरी की गाय लुटेरे ले गए थे. वह अपनी गायों की रक्षा के लिए तेजाजी से मदद मांगी. वीर तेजाजी गाएं छुड़ाने के लिए निकल पड़े. रास्ते में आग में जलता सांप मिला, जिसे तेजाजी ने बचाया. लेकिन सांप अपना जोड़ा बिछुड़ने से दुखी था. इसलिए उसने डंसने के लिए फुंफकारा. वीर तेजाजी ने वचन दिया कि पहले मैं लाछा की गाएं छुड़ा लाऊं फिर डंसना. लुटेरों से युद्ध में तेजाजी गंभीर घायल हो गए.
लेकिन इसके बाद भी वह सांप के बिल के पास पहुंचे. पूरा शरीर घायल होने के कारण तेजाजी ने अपनी जीभ पर डंसवाया और भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को उनका निर्वाण हो गया. यह देख पेमल सती हो गई. इसी के बाद से राजस्थान के लोकरंग में तेजाजी की मान्यता हो गई. गायों की रक्षा के कारण उन्हें लोक देवता या ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है. नाग ने भी उन्हें वरदान दिया था.
क्या मिलेगी राहुल गांधी को?
राहुल गांधी अजमेर के किशनगढ़ स्थित सुरसुरा पहुंचे तो तेजाजी की पूजा में भी शामिल हुए. यहां उन्होंने उनका इतिहास भी जाना. ऐसे में देखना यह है कि लोक और लोक की मान्यताओं के बीच शामिल होकर राहुल गांधी और कांग्रेस किसान आंदोलन को कितनी और कैसी धार दे पाते हैं.