अजमेर. अजमेर में एक ऐसा पहाड़ है जो अल्लाह के बंदे की याद में इतना रोया की इंसानी दिल भी पसीज गया. यहीं कारण है कि आज भी खुदा के बंदे की याद में रोए पहाड़ के आंसू देखने के लिए हजारों की तादाद में जायरीन ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले पर पहुंचते हैं और पहाड़ जैसी बंदगी मिलने की मन्नत मांगते हैं.
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900 बरस के बाद भी ये आसूं कायम है. दरअसल, ये वो ही पहाड़ है, जहां पर बैठकर 900 बरस पहले ख्वाजा गरीब नवाज ने अल्लाह की इबादत की थी. बात उस वक्त की है जब ख्वाजा साहब अरब से ईरान और अफगानिस्तान की सरहदों को पार करते हुए भारत में आए. यहां अल्लाह के हुक्म से गरीब नवाज ने 40 दिन से ज्यादा अजमेर की आनासागर पहाड़ी की गुफा में कयाम किया. दिन-रात अल्लाह की इबादत में इतने मशरूफ हुए की भूख-प्यास भी भूल गए और इसी के बीच अल्लाह के हुक्म से अपने मुरीदों को देश के कोने-कोने में आवाम की खिदमत के लिए भेज दिया.
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मान्यता है कि अल्लाह का संदेश मिलने पर पहाड़ की गुफा छोड़कर ख्वाजा गरीब नवाज अपने एक मुरीद ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के साथ जाने लगे. तभी अचानक ख्वाजा साहब की मोहब्बत में कैद इस पहाड़ ने रोना शुरू कर दिया. पहाड़ से आंसू टपकने लगे तो इस मंजर को देखकर मौजूद लोग सोच में पड़ गए क्या कभी कोई पहाड़ भी आंसू बहा सकता है. अल्लाह के नेक बंदे ने खूब इबादत की थी और इसी बंदे कि मोहब्बत में यह आंसू आज तक सदाबाहर पहाड़ी की गुफा में उसी तरह कायम है जिस तरह 900 साल पहले थे.
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इन आंसुओं को देखकर ऐसा लगता है कि बस अभी-अभी टपकने वाले हैं. ख्वाजा की याद में आंसू बहाने वाले पहाड़ को देखने आज भी देश के कोने-कोने से सैकड़ों जायरीन ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले पर पहुंचते हैं. जहां आने वाले जायरीन को आकर सुकून और शांति का अहसास होता है. अल्लाह की इबादत का कारनामा ऐसा कि पहाड़ भी पसीज गया और खुदा के बंदे से अलग होने के गम में रो पड़ा. इस पहाड़ के आंसू आज भी ख्वाजा गरीब नवाज की यादों को अपने दिल में समेटे हुए हैं और इसी के चलते देश के कोने-कोने से हजारों अकीदतमंद इन आंसुओं के दीदार को अजमेर आते हैं.