अजमेर. विकास की दौड़ में रेगिस्तान का जहाज ऊंट समय के साथ अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है. मशीनरी युग में उपयोगिता कम होने से ऊंटों के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है. हालात यह है कि अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बने ऊंटों की संख्या लगातार गिरती जा रही. यही हाल रहा तो आने वाले कुछ वर्षों में मेले से ऊंट ही गायब हो जाएंगे.
विदेशी सैलानियों के लिए ऊंट आकर्षण का केंद्र
अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में ऊंट देखने को ना मिले तो क्या मेले का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर का रह पाएगा. अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में देसी विदेशी पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण ऊंट ही रहता है. धोरों पर एक हजारों ऊंटों को देखना पर्यटकों के लिए जितना रोमांचकारी होता है. उतना ही ऊंटों के साथ आए पशुपालकों का रहन सहन, वेशभूषा सतरंगी लोक संस्कृति उन्हें प्रभावित करती है. हालांकि कैनाडा से पहली बार पुष्कर आई लाइडा बताती है कि उन्हें ऊंटों से प्यार है. जीवन में ऊंटो की इतनी संख्या उन्होंने पहले कभी नहीं देखी. उन्होंने सुबह मेला क्षेत्र में ऊंटों की तस्वीरें ली. उगते सूरज के साथ ऊंटों के साथ पशुपालकों के रहन सहन को उन्होंने देखा. जिससे देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगा.
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ऊंटों की संख्या में 66 फीसदी गिरावट
उधर जब अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में ऊंटों की गिरती संख्या को लेकर ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पाया कि 2007 से पहले तक मेले में ऊंटों की अच्छी-खासी तादाद थी. लेकिन इसके बाद लगातार ऊंटों की संख्या में गिरावट आने लगी. साल 2001 से पहले तक करीब बीस हजार ऊंट मेले में आए थे. वहीं 2018 में यह संख्या घटकर साढ़े तीन हजार रह गई यानी 2007 के बाद ऊंटों की संख्या में 66 फीसदी गिरावट आई है.
2001 से 2018 तक मेले में आए ऊंटों की संख्या पर एक नजर
- 2001- 15460
- 2002- 10291
- 2003- 12042
- 2004- 14997
- 2005- 14142
- 2006- 14086
- 2007- 11967
- 2008- 9874
- 2009- 8762
- 2010- 9419
- 2011- 8238
- 2012- 6953
- 2013- 5170
- 2014- 4772
- 2015- 5215
- 2016- 3919
- 2017- 3954
- 2018- 3954
- 2019 नवंबर तक- 1 हजार
पशुपालन विभाग के अधिकारी ने बताई ये बड़ी वजह
वहीं पशुपालन विभाग के अधिकारी डॉ. अजय अरोड़ा बताते है कि जितने संसाधनों का विकास हो रहा है. उतनी ही ऊंटो की उपयोगिता कम होती जा रही है. पहले ऊंट बेचने और खरीदने के लिए ही नहीं बल्कि कृषि और परिवहन में भी इनका उपयोग होता था. दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि ऊंटों को सरकार ने राज्य पशु घोषित कर दिया है. जिससे राज्य के बाहर ऊंट ले जाने पर पाबंदी है. लिहाजा मेले में राज्य के बाहर से खरीदारों का आना बंद हो गया है.
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पशुपालकों की सुनें समस्या
पशुपालन विभाग की अपनी दलीलें हैं लेकिन पशुपालकों कि अपनी समस्याएं हैं. नोहर भादरा से आए पशुपालक सलीम ने बताया कि ऊंटों को पालना बहुत ही मुश्किल हो गया है. उनके लिए चारा जुटाना सबसे ज्यादा टेडी खीर है. वहीं अब उन्हें बेचने पर भी उचित दाम नहीं मिल पाता है. बाहर से खरीदार आते नहीं है. वहीं उदयपुर से आये पशुपालक नंदा राम बताते हैं कि ऊंटों को पालने में कई मुसीबतें झेलनी पड़ती है. ऊंट को चराने के लिए जगह नहीं है. जंगल में ऊंटों को ले जाने पर पाबंदी है. खुद के खेत के अलावा दूसरे के खेत में भी ऊंटो को प्रवेश नहीं दिया जाता. उन्होंने बताया कि वे 50 वर्षो से मेले में आ रहे है. मेले ऊंटो की संख्या काफी कम हो गई है. भविष्य में मेले ऊंट दिखाई भी नहीं देंगे. उन्होंने बताया कि सरकार ने ऊंटों को राज्य पशु तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया. यही वजह है कि कई पशुपालक अपने ऊंट पालन छोड़ उन्हें बेचने के लिए आए हैं.